TFP/DESK : झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने कमर कस ली है. इसी कड़ी में बीते शनिवार को एके राय की पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति मासस का भाकपा (माले) में विलय हो गया. शनिवार को रांची प्रेस क्लब में माले व मासस की बैठक हुई.
इस बैठक में आरा से माले सांसद राजाराम सिंह व मासस के कार्यकारी अध्यक्ष अरूप चटर्जी शामिल हुए. बैठक के बाद मीडिया को यह जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि माले और मासस का विलय झारखंड के विधानसभा चुनाव में कॉरपोरेट परस्त एवं सांप्रदायिक ताकतों की हार की गारंटी है. दोनों संगठनों के केंद्रीय स्तर से ग्रास रूट स्तर के ढांचों के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
मीडिया रिर्पोट्स की माने तो मासस भाकपा माले में विलय करने के लिए विगत पिछले चार सालों से कोशिश कर रहा था. इसके पीछ क्या वजह थी, ये भी बताएंगे आपको. लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि भाकपा (मार्क्सवादी ) मे जब ए.के रॉय को निष्कासित कर दिया, तब उन्होंने जे.के.एस.एस यानी जनवादी किसान संग्राम समिति का गठन किया . हालांकि बाद में इसका नाम बदलकर एम सी. सी(मासस) कर दिया गया.
मुद्दे पर आते हैं मासस का माले में विलय की सबसे बड़ी वजह है कि वामपंथी पार्टी होने के नाते झारखंड -बिहार में अपना जनाधार बढ़ाने के साथ-साथ इंडिया गठबंधन में शामिल होना. इसके अलावे माले के शीर्ष नेतृत्व को समझाने की कोशिश हो रही थी कि विलय से वामपंथी ताकतें एकजुट होकर भाजपा गठबंधन को बेहतर चुनौती दे पाएंगी.
साथ ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हो जाएगी और निरसा, सिंदरी जैसी विधानसभा सीटों पर भाजपा के अलावा झामुमो या कांग्रेस से भी जूझना नहीं होगा. इन दोनों सीटों में मासस का मजबूत पकड़ है. जबकि बगोदर, धनबार विधानसभा क्षेत्र में भाकपा माले की मजबूत पकड़ है. ऐसे में भाकपा माले को भी अपनी दखल वाली बगोदर, धनवार, जमुआ, मांडू और पांकी जैसी सीटें इंडिया गठबंधन के कोटे से मांगने में आसानी होगी.
मीडिया रिर्पोट्स के मुताबित माले में मासस का विलय करने की अगुवाई निरसा के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी और माले से बगोदर विधायक विनोद सिंह व आरा से सांसद राजाराम सिंह ही कर रहे थे.
निरसा विधानसभा सीट लाल गढ़ से भी जाना जाता है. 1952 से लेकर अब तक वामदल के प्रत्याशी यहां से विधायक बनते रहे हैं. यहां पूर्व विधायक अरूप चटर्जी लगातार तीन बार चुनाव जीतक विधानसभा पहुंचे हैं. उनके पिता दिंवगत गुरुदास चटर्जी भी यहां के विधायक रहे है. बता दें कि साल 2000 में जब उनके पिता की हत्या कर दी गई जिसके बाद निरसा सीट पर उपचुनाव हुआ. उस दौरान अरूप चटर्जी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि 2005 और 2019 के विधानसभा चुनाव में मासस के खाते से यह सीट निकल गई थी.
पिछला चुनाव में निरसा विधानसभा सीट भाजपा के खाते में गई. यहां भाजपा विधायक अर्पणा सेनगुप्ता ने 89082 वोट से जीत हासिल की थी. वहीं मासस प्रत्याशी अरूप चर्टजी को 63624 वोट मिले थे जबकि झामुमो के अशोर मंडल को 47168 वोट प्राप्त हुए थे. दोनों के वोट को जुड़कर 110792 होते है, ऐसे में अगर यह सीट इंडिया गठबंधन के कोटे से माले को मिली तो भाजपा के लिए यहां चुनौती बढ़ सकती है.
वहीं हम बात करें सिंदरी विधानसभा सीट की तो, यहां भी मासस का मजबूत पकड़ है. हालांकि 2005 से लेकर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां मासस लगभग पांच हजार के वोट से दूसरे स्थान पर रही है. पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को 80967 वोट मिले थे जबकि मासस के आनंद महतो 72714 वोट से दूसरे स्थान पर रहे थे.
वहीं झामुमो के फूलचंद मंडल 33583 वोट से तीसरे स्थान पर थे. ओर अगर इस बार सिंदरी सीट माले के खाते में जाती है तो यह मुकाबला काफी दिलचस्प हो जाएगा, क्योंकि दोनो को मिले मतो को जोड़े तो 106297 होते है ऐसे इंडिया गठबंधन भाजपा के लिए यहां मुश्किल खड़ा कर सकती है.