मंईयां सम्मान योजना

मंईयां सम्मान की कीमत चुका रहे झारखंड के 34 लाख भैया, बहनों पर भी आफत!

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क्या झारखंड की कई जनकल्याणकारी योजनाएं मंईया सम्मान योजना की भेंट चढ़ गयी है.

क्या मंईयां सम्मान योजना के शोर में प्रदेश की बच्चियों, बुजुर्गों, दिव्यांग, विधवा महिलाओं और छात्रों की आवाज दबाई जा रही है. क्या मंईयां सम्मान योजना की खातिर बाकी जनकल्याणकारी योजनाओं की तिलांजलि देने की तैयारी है.

क्या मंईयां सम्मान योजना को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर राज्य की हेमंत सोरेन सरकार, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना, सर्वजन पेंशन योजना, मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना और स्कूली छात्रों को मिलने वाली स्टाइपेंड योजना पर ध्यान नहीं दे रही है.

क्या यह सच है कि बुजुर्गों, दिव्यांगों और विधवा महिलाओं के पेंशन की राशि रोककर मंईयां सम्मान योजना का लाभ दिया जा रहा है.

हालांकि, मंईयां सम्मान योजना की बढ़ी हुई राशि भी कुछ ही जिलों में कुछ लाभार्थियों तक पहुंची है.

सरकार का तर्क है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन को लेकर जारी 7 दिवसीय राष्ट्रीय शोक की वजह से मंईयां सम्मान योजना के समारोह में देरी हुयी.

आंकड़े मंईयां सम्मान को लेकर क्या कहते हैं
दरअसल, यह सवाल केवल हमारे नहीं हैं बल्कि विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के जरिये सामने आये आंकड़े, आम लोगों की शिकायतों और विपक्ष के आरोपों ने हेमंत सोरेन सरकार की महात्वाकांक्षी मंईयां सम्मान योजना की प्रासंगिकता और ड्यूरेबिलिटी पर सवाल खड़ा कर दिया है.

सवाल उठने लगे हैं कि क्या चुनाव जिताने में कारगर साबित हुयी इस योजना को किसी भी कीमत पर जारी रखने की जिद में राज्य की हेमंत सोरेन सरकार बाकी योजनाओं और उनके प्रभाव को नजरअंदाज कर रही है.

बाबूलाल मरांडी ने लगाया योजना में भेदभाव का आरोप
दरअसल, हिंदी दैनिक अखबार दैनिक भास्कर की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुये प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने दावा किया है कि झारखंड में 34 लाख एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों को पिछले 9 महीने से छात्रवृत्ति नहीं मिली है.

ये निम्न मध्यम आय वर्ग के बच्चे हैं जिनकी पढ़ाई लिखाई जारी रखने के लिए छात्रवृत्ति बहुत मायने रखती है.

यदि उनको 9 महीने से यह पैसे नहीं मिले तो फिर उनकी पढ़ाई का क्या होगा. बाबूलाल मरांडी ने यही सवाल राज्य के मुख्यमंत्री से पूछा है.

इसी अखबार की रिपोर्ट के हवाले से बाबूलाल मरांडी ने कहा कि ग्रीन राशन कार्ड धारकों को 7 महीने से अनाज नहीं मिला. अब पूर्ववर्ती सरकार पर लोगों को भूख से मार देने का आरोप लगाने वाली मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार इस बात को कैसे जस्टिफाई करेगी कि राशन क्यों नहीं मिला है?

हालांकि, हेमंत सोरेन सरकार ने कई बार यह दावा किया है कि राशन वितरण को लेकर केंद्र की ओर से पर्याप्त मदद नहीं मिल पाती है. इस वजह से योजना को सुचारू रूप से जारी रखने में परेशानी का सामना करना पड़ता है.

 

सर्वजन पेंशन योजना रोककर मंईयां सम्मान का आरोप
आम जनों की शिकायतों और दावों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट्स के मुताबिक सर्वजन पेंशन योजना में भी लोकसभा से विधानसभा चुनाव के दरम्यान दिक्कतें आई है. चुनाव कवरेज के दौरान कई गांवों में बुजुर्ग महिला और पुरुषों ने बताया किसी को 3 तो किसी को 4 माह से पेंशन नहीं मिला.

ब्लॉक ऑफिस से इसकी कोई ठोस वजह भी नहीं बताई गयी.

इसी प्रकार दिव्यांगों और विधवा महिलाओं का पेंशन भी कई गांवों में रूका रहा. आरोप लगे कि मंईयां सम्मान योजना की लाभुकों को किश्तें जारी रखने की वजह से सर्वजन पेंशन योजना के लाभुकों को राशि से वंचित रखा गया.

बाबूलाल मरांडी भी कहते हैं कि राज्य सरकार मंईयां सम्मान योजना के भुगतान के लिए बच्चों की छात्रवृत्ति, बुजुर्गों की पेंशन और गरीबों के राशन जैसी बुनियादी सुविधाएं छीनने को मजबूर है.

बाबूलाल मरांडी ने यह भी आरोप लगाया है कि विभागों की राशि सरेंडर कराई गयी. विकास योजनाओं को रोका गया. राज्य में विकास की गति ठहर गयी.

अगस्त 2024 में लॉन्च की गयी थी मंईयां सम्मान योजना
गौरतलब है कि झारखंड विधानसभा चुनाव के ठीक 3 माह पहले अगस्त 2024 में हेमंत सरकार ने मंईयां सम्मान योजना लॉन्च की थी. इस योजना के तहत अगस्त से नवंबर तक महिलाओं को प्रतिमाह 1 हजार रुपये की राशि दी गयी.

चुनाव नतीजों के बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने माना कि मंईयां सम्मान योजना ने हेमंत सरकार की वापसी में बड़ी भूमिका निभाई.

चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले हेमंत सोरेन सरकार ने कैबिनेट में मंईयां सम्मान योजना की राशि को 1000 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये करने का प्रस्ताव पास किया था. यह राशि दिसंबर में मिलने वाली थी. चुनाव बाद सरकार गठन हुआ तो खबरें मिली कि 11 दिसंबर को 2500 रुपये की पहली किश्त लाभुकों के खाते में आयेगी. फिर यह 28 दिसंबर में बदल गया.

इसी बीच 26 दिसंबर को देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हो गया. 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा हुयी. 28 दिसंबर वाला समारोह टल गया. हालांकि, कुछ जिलों में मंईयां सम्मान की राशि भेजी गयी.

अब खबरें हैं कि 6 जनवरी को नामकुम में मंईयां सम्मान योजना को लेकर समारोह होगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन महिलाओं के बैंक खाते में योजना की राशि भेजेंगे.

मंईयां सम्मान योजना के औचित्य पर क्यों उठे सवाल
इस योजना को लेकर कई सवाल उठे हैं.

मसलन, चुनाव बाद खबरें आई कि हेमंत सोरेन सरकार, मंईयां सम्मान योजना के लाभुकों की समीक्षा करेगी. विभाग की ओर से सभी जिलों के उपायुक्त और फिर उपायुक्तों की ओर से प्रखंड विकास पदाधिकारी और कल्याण पदाधिकारी को यह निर्देश दिए गये कि योजना के लाभुकों की समीक्षा हो. देखा जाये कि जिन महिलाओं को योजना का लाभ मिल रहा है उनमें से कितने लोग अयोग्य हैं.

इसमें यह भी कहा गया कि जिनके घर में सरकारी नौकरी है. जो महिलाएं किसी भी प्रकार की तनख्वाह वाली नौकरी करती है. जो महिलाएं किसी दूसरे प्रदेश से ब्याह कर लाई गयी हैं. वह योजना की पात्र नहीं होंगी.

तब भी सवाल उठे कि यही नियम और शर्तें हेमंत सोरेन सरकार ने चुनाव से पहले लागू क्यों नहीं की. क्योंकि नियम और शर्तें पता होती तो लाभुकों की संख्या भी सीमित होती.

विपक्ष ने आरोप लगाया कि चुनाव पूर्व सभी 57 लाख महिलाओं को पैसे देकर सरकार अब लाभुकों की छंटाई कर रही है. लोगों ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाये.

वित्त मंत्री ने मंईयां सम्मान योजना के फंड पर क्या कहा
मंत्रिमंडल गठन के बाद राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने एक हिंदी न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में कहा था कि 1000 रुपये प्रतिमाह देने से साढ़े 7 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे थे. अब 2500 रुपये देने से प्रतिमाह 18,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

राशि कहां से आयेगी.

इस सवाल के जवाब में मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा था कि खनन, एक्साइज और वाणिज्य कर से पैसा आयेगा. हालांकि उन्होंने मंईयां सम्मान योजना के लिए जरूरी पैसा जुटाने का कोई लॉन्ग टर्म प्लान नहीं बताया.

राजस्व जुटाने को नीति बनानी है. उसमें वक्त लगेगा लेकिन मंईयां सम्मान योजना का लाभ तो हर महीने देना है. यदि आपको याद होगा तो हालिया संपन्न विधानसभा के 4 दिवसीय विशेष सत्र में जारी अनुपूरक बजट का 56 फीसदी हिस्सा मंईयां सम्मान योजना के लिए निर्धारित था.

यह तो पहली बार है लेकिन बार-बार कैसे चलेगा. यहां अस्पताल, स्कूल, आंगनबाड़ी, ग्रामीण विकास और फ्लाईओवर निर्माण सहित नई नियुक्ति और सरकारी कर्मियों के वेतन भत्ते के लिए भी पैसा चाहिए. कहां से आयेगा?

एक वर्ग को संतुष्ट करने के लिए बाकियों से गद्दारी
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि 34 लाख बच्चों को छात्रवृत्ति नहीं मिलना, सर्वजन पेंशन योजना में रुकावट, राशन कार्ड धारियों को 7 महीने का बकाया राशन सहित मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना में अनियमितता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आर्थिक कुप्रबंधन औऱ प्रशासनिक विफलता का प्रमाण है. उन्होंने कहा कि यह झारखंड के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़ा करता है.

बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि समाज के एक वर्ग को संतुष्ट करने के लिए बाकियों के हितों के अनदेखा करना कितना न्यायसंगत है.

महिलाओं के लिए फ्रीबिज स्कीम की भेड़चाल में सियासी दल
दरअसल, यह एक राज्य की समस्या है भी नहीं.

यहां बात झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन सरकार की हो रही है लेकिन, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में लाडली बहना योजना, महाराष्ट्र में चुनाव पूर्व लॉन्च की गयी माझी लाडकी बहिन योजना, ओडिशा में सुभद्रा योजना, छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना, दिल्ली में महिला सम्मान योजना और अभी-अभी बिहार में आरजेडी द्वारा घोषित माई बहिन योजना, चुनाव जीतने का बड़ा फॉर्मूला बन गया है.

समाज में बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि एक राज्य में सफलता के बाद दूसरे राज्यों में सियासी दलों के बीच महिला समर्पित इस फ्रीबीज स्कीम को लेकर भेड़चाल मची है. इसमें एक समग्र जनसंख्या के स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसे कामों पर नकारात्मक असर होता है. अस्पतालों में बेड नहीं है. स्कूलों में टीचर नहीं है. झारखंड में ही बच्चों को महीनों किताबें नहीं मिली.

खैर! सरकार ने योजना लॉन्च की है तो जाहिर है इसे चलायेगी भी. लेकिन सवाल तब भी जिंदा रहेगा कि आखिर किस कीमत पर?

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