भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे को अर्जुन अवॉर्ड मिलेगा.
झारखंड के अति नक्सल प्रभावित सिमडेगा जिला के बड़कीछापर गांव की रहने वाली सलीमा टेटे को अर्जुन अवॉर्ड मिलना पूरे झारखंड के लिए बहुत गर्व का क्षण है. सलीमा टेटे की इस उपलब्धि पर हमने उनके बचपन के कोच मनोज कोनबेगी से बातचीत की.
जानना चाहा कि बड़कीछापर जैसे अति पिछड़े गांव से महिला हॉकी टीम की कप्तान और फिर अर्जुन अवॉर्ड जीतने तक सलीमा टेटे का सफर कैसा रहा.
सिमडेगा जिला के ठेठईटांगर प्रखंड अंतर्गत लट्ठाखमन गांव के रहने वाले मनोज कोनबेगी ने हमें विस्तार से जानकारी दी कि कब उन्होंने पहली बार सलीमा टेटे को देखा? सलीमा टेटे के खेल में ऐसा क्या था जो उन्हें बाकी लड़कियों से अलग बनाता है? सलीमा टेटे बड़कीछापर से निकलकर कैसे सिमडेगा पहुंची? इस राह में किस तरह की मुश्किलें आईं? उनको अर्जुन अवॉर्ड मिलने की जानकारी कैसे मिली?
लट्ठाखमन गांव में कोच ने देखी थी सलीमा टेटे की प्रतिभा
मनोज कोनबेगी बताते हैं कि वह ठेठईटांगर प्रखंड में जंगलों के बीच बसे गांव लट्ठाखमन में वर्ष 1996 से ही साथियों के साथ मिलकर नवयुवक संघ नाम से संस्था चलाते हैं जो जिले में युवा महिला और पुरुष हॉकी प्रतिभाओं को मंच देने और उनको तराशने का काम करता है.
इसी संस्था की ओर से प्रतिवर्ष नवयुवक संघ हॉकी चैंपियनशिप का आयोजन किया जाता है जिसमें विभिन्न गांवों की पुरुष और महिला टीमें हिस्सा लेने आया करती हैं. इसी टूर्नामेंट में बड़कीछापर गांव की पुरुष टीम की ओर से सलीमा के पिता सुलक्षण टेटे हिस्सा लेने आया करते थे.
वर्ष 2010 में भी लट्ठाखमन गांव में यह प्रतियोगिता हुई.
इस बार बड़कीछापर गांव की ओर से सलीमा टेटे भी हिस्सा लेने आईं. मनोज कोबनेगी याद करते हैं कि तब सलीमा टेटे महज 9 साल की थीं.
सलीमा टेटे के खेल में क्या अलग था? इस सवाल के जवाब में मनोज बताते हैं कि 9 साल की उस बच्ची की मैदान पर तेजी देखकर मैं हैरान था. उसका स्टिक के साथ बॉल पर कंट्रोल शानदार था. केवल डिफेंस ही नहीं बल्कि मिडफील्ड से फॉरवर्ड लाइन तक सलीमा टेटे की तेजी और कंट्रोल अविस्मरणीय था.
मैंने उसकी प्रतिभा पहचान ली थी.
मैंने उसे झारखंड सरकार द्वारा सिमडेगा में संचालित स्पोर्ट्स सेंटर में चयन के लिए ट्रायल देने को कहा. उसने ट्रायल दिया लेकिन चयन नहीं हुआ.
सिमडेगा के इस स्कूल में पढ़ती थीं सलीमा टेटे
मनोज कोनबेगी बताते हैं कि सलीमा टेटे 2010 से लेकर 2013 तक प्रतिवर्ष लट्ठाखमन गांव में हॉकी चैंपियनशिप में हिस्सा लेने आती रही. मैं उनके पिता को समझाता था कि आपकी बेटी बहुत प्रतिभाशाली है लेकिन इस टूर्नामेंट से बहुत आगे नहीं बढ़ पायेगी.
किसी कोच, अधिकारी या मेंटॉर की निगाह पड़े, इसके लिए जरूरी है कि उसका चयन स्पोर्ट्स सेंटर में हो जाये.
आखिरकार, अक्टूबर 2013 में उसका दाखिला सिमडेगा के एसएस बालिका उच्च विद्यालय में हो गया.
यहां 2 तरह की व्यवस्था थी. एक तो स्पोर्ट्स सेंटर था जो खेल विभाग द्वारा संचालित था. यहां खिलाड़ियों को रहने के साथ-साथ भोजन और प्रैक्टिस की सुविधा दी जाती थी. दूसरा था स्कूल के साथ संचालित कल्याण छात्रावास, जहां रहने की सुविधा थी. मैदान में खिलाड़ी प्रैक्टिस कर सकते थे लेकिन, उनको भोजन का इंतजाम खुद भी करना था.
मनोज कोनबेगी बताते हैं कि अक्टूबर 2013 में 9 साल की सलीमा टेटे सामान बांधकर, कल्याण विभाग के छात्रावास में रहने आ गयीं. यहां वह पढ़ाई करतीं. घर से दाल और चावल लातीं और आसपास से लकड़ी चुनकर खुद ही खाना बनाती थीं.
साथ-साथ हॉकी की प्रैक्टिस भी सलीमा ने जारी रखी.
महिला कोच प्रतिमा बरवा ने सलीमा टेटे को तराशा
एसएस बालिका उच्च विद्यालय में सलीमा टेटे को कोच प्रतिमा बरवा का सानिध्य हासिल हुआ. प्रतिमा बरवा को सलीमा टेटे के बारे में मनोज कोनबेगी ने ही बताया था.
मनोज बताते हैं कि मैंने कोच प्रतिमा बरवा से कहा कि इस लड़की में बहुत प्रतिभा है.
सही प्रशिक्षण और प्रैक्टिस मिले तो यह झारखंड ही नहीं बल्कि इंडियन वूमेन हॉ़की का भविष्य साबित होंगी. प्रतिमा बरवा ने सलीमा टेटे का खेल देखा और निखारने का फैसला किया.
लट्ठाखमन से इंडियन ड्रेसिंग रूम तक ऐसे पहुंची सलीमा
मनोज कोनबेगी बताते हैं कि अक्टूबर 2013 में सेंटर आने के केवल 2 महीने बाद दिसंबर 2013 में सलीमा टेटे स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SGFI) के लिए चुन ली गयीं. उस साल रांची में ही टूर्नामेंट खेला गया था.
अप्रैल 2014 में सलीमा टेटे का चयन सब जूनियर राष्ट्रीय हॉकी चैंपियनशिप के लिए झारखंड की टीम में हो गया. सलीमा टेटे का खेल दिनों-दिन निखरता जा रहा था.
वर्ष 2016 में सलीमा टेटे भारतीय जूनियर महिला हॉकी टीम में चुनी गयीं.
इसी बीच नवंबर 2016 में उन्होंने सीनियर टीम के साथ द्विपक्षीय सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया.
2018 में सलीमा टेटे को यूथ ओलंपिक्स में जूनियर महिला टीम का कप्तान बनाया गया. दिसंबर 2018 में सलीमा टेटे का चयन सीनियर वूमेन हॉकी टीम में हो गया. तब से वह टीम की नियमित सदस्य हैं.
बड़कीछापर की बिटिया अब अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित होंगी
2021 टोक्यो ओलंपिक्स में वूमेन हॉकी टीम ने चौथे नंबर पर फिनिश किया. यह भी भारतीय महिला हॉकी के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी.
2024 के पेरिस ओलंपिक्स में भी सलीमा भारतीय टीम की अहम सदस्य थीं.
नवंबर 2023 में महिला हॉकी टीम ने रांची के मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में जापान को 4-0 से हराकर एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी अपने नाम की थी. तब भी सलीमा टेटे ने शानदार प्रदर्शन किया था.
मई 2024 में सलीमा टेटे को महिला हॉकी टीम का कप्तान बना दिया गया.
मनोज कोनबेगी इसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं. वह खुश हैं कि उनकी खोज सलीमा टेटे अब अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित होने जा रही हैं. उन्होंने सलीमा की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए उनको बधाई दी है.
हम भी झारखंड की बेटी सलीमा टेटे को बधाई देते हैं.