कांके विधायक समरीलाल के फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में राजभवन से मिली राहत

Share:

रांची के कांके विधानसभा सीट से भाजपा विधायक समरी लाल को राजभवन से बड़ी राहत मिली है. विधायक समरीलाल पर लंबे समय से फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए चुनाव लड़ने का आरोप लग रहा था. अब इस मामले में राजभवन ने झारखंड विधानसभा को पत्र लिखकर साफ कह दिया है कि यह मामला किसी तरह से विचार करने योग्य नहीं है. राजभवन ने कहा कि कांके विधायक समरी लाल पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र को लेकर कोई मामला नहीं बनता है.

दरअसल 2019 के विधानसभा चुनाव में समरी लाल रांची के कांके सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने थे. बता दें कांके सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. समरी लाल के जीत के बाद उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सुरेश बैठा ने समरी लाल के जाति प्रमाण पत्र को अवैध बताते हुए उनकी विधायिकी रद्द करने की मांग विधानसभा स्पीकर से की थी. सुरेश बैठा की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि समरी लाल मूल रूप से राजस्थान के निवासी हैं, उनके पूर्वज माइग्रेट होकर झारखंड आए हैं. राजस्थान का प्रवासी होने के कारण उनको झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. सुरेश बैठा के इस आवेदन के बाद राज्य सरकार ने इस मामले में छानबीन के लिए कमिटी बनाई थी. राज्य जाति जाति छानबीन कमिटी ने समरी लाल के प्रमाण पत्र को वैध नहीं माना था.

एक अप्रैल 2022 को जाति छानबीन समिति ने समरी लाल के जाति प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया था. जिसके खिलाफ समरी लाल की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. उन्होंने समिति के आदेश को चुनौती दी थी, समरी लाल ने याचिका में कहा था कि साजिश के तहत उन्हें पद से हटाने की कोशिश की जा रही है. बिना किसी गवाह और ठोस साक्ष्य आधार के उनके जाति प्रमाण पत्र को अवैध करार दिया गया है. उन्होंने कहा है कि जिस व्यक्ति का जाति प्रमाण पत्र जांच रिपोर्ट के आधर पर बना हो, उसके प्रमाण पत्र की जांच तो छानबीन समिति कर ही नहीं सकती.

समरी लाल का कहना है कि 1943 से उनके पूर्वज बाल्मीकि नगर हरमू रोड रांची में ही निवास करते ह .समरी लाल का जन्म व शिक्षा भी रांची में हुई. विधायक की दादी 1935 से ही रांची नगर पालि का में कार्यरत रही. इसी तरह परि वा र के सदस्य भी सरकारी नौकरी की और अभी पेंशनधारी है.समीर लाल 190 से राजनीति में एक्टिव हैं. 1990-95 में जनता दल ,2000 में राष्ट्रीय जनता दल, 2005- 2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा व 2019 में भाजपा से चुनाव लड़े. लेकिन जब वे विधायक का चुनाव जीत गए, तब उनके जाति प्रमाण पत्र को गलत बताया गया . अगर गलत था तो पहले ही रोक लगा देना चाहिए.जनता का समर्थन प्राप्त कर चुनाव जीतने के बाद ऐसा करना क्या न्यायसंगत है. अब सरकारी षडयंत्र के तहत ऐसा किया गया है.

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजेश शंकर की कोर्ट ने समरी लाल से संबंधित चुनावी याचिका को स्वीकार करते हुए जाति छानबीन समिति द्वारा समरी लाल के जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने को गलत करार दिया था. साथ ही जाति छानबीन समिति द्वारा समरी लाल के जाति प्रमाण पत्र को खारिज किए जाने के आदेश को रद्द कर दिया था. अदालत ने समरी लाल को राहत देते हुए जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने के आदेश को निरस्त कर दिया था.

विधानसभा स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने इस मामले में निर्णय के लिए तत्काली राज्यपाल रमेश बैस को भेज दिया था. स्पीकर ने पत्र भेजकर कहा था कि ऐसे मामलों में संविधान के अनुच्छेद 191 के तहत राज्यपाल को फैसला लेने का अधिकार है. स्पीकर ने अपने पत्र के साथ राज्य सरकार द्वारा गठित समिति की कॉपी भेजी थी.ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इसमें राजभवन किसी तरह से विचार नहीं कर सकता है. राजभवन ने राज्य के विधानसभा सचिवालय ने समरी लाल के फर्जी जाति प्रमाणपत्र के मामले को खारिज कर दिया है.

Tags:

Latest Updates