सरना धर्म कोड को लेकर अब झारखंड में बढ़ने वाला है सियासी तापमान !

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झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग अब तेज होती जा रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पीएम मोदी को खत लिखकर सरना धर्म कोड लागू करने की मांग की है वहीं अब झारखंड आदिवासी सेंगेल अभियान भी जल्द से जल्द सरना धर्म कोड लागू करने का दबाव सरकार पर डालने की तैयारी में है.

बीते शनिवार को आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने विधानसभा अतिथि गृह में पत्रकारों को संबोधित किया.अपने संबोधन में सालखन मुर्मू ने कहा कि सरना धर्म कोर्ड लागू नहीं कर के आदिवासियों को धार्मिक आजादी से वंचित किया जा रहा है इसके लिए आदिवासी रांची में 8 नवंबर को जनसभा करेंगे.

सालखन मुर्मू ने कहा कि प्रकृति पूजक आदिवासियों लिए सरना धर्म कोड नहीं देना, उन्हें हिंदू, मुसलमान, ईसाई बनने- बनाने के लिए मजबूर करना है. उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड की मान्यता देश के लगभग 15 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी के लिए अहम है. यह संवैधानिक मौलिक अधिकार भी है.

सालखन मुर्मू ने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 50 लाख आदिवासियों ने सरना धर्म लिखा था, जबकि मान्यता प्राप्त 44 लाख जैनों ने लिखा. तब भी सरना धर्म कोड की मान्यता नहीं देना भारत के आदिवासियों को उनकी धार्मिक आजादी से वंचित करना है.

सालखन मुर्मू लगातार राजनीतिक पार्टियों का विरोध करते आ रहे हैं लेकिन अब तक भाजपा के लिए उन्होंने नरम रुख अपनाया है. सालखन का कहना है कि आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को सर्वोच्च संवैधानिक पद राष्ट्रपति बनाने वाली बीजेपी के पास एक सुनहरा अवसर सरना धर्म कोड देकर भारत के आदिवासियों को अपने साथ जोड़ लेने का है. इसका प्रचंड प्रभाव झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे बड़े प्रदेशों में पड़ेगा. जब हिंदू के इर्द-गिर्द सिख, जैन, बौद्ध रह सकते हैं, तो सरना क्यों नहीं ?

उन्होंने कहा कि भाजपा के साथी सुदेश महतो की आजसू पार्टी द्वारा सरना धर्म कोड का समर्थन स्वागत योग्य है, बता दें आजसू पार्टी के महाधिवेशन में सुदेश महतो ने सरना धर्म कोड लागू करने को समर्थन दिया था.

जबकि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा इस चिर प्रतीक्षित और बहुचर्चित मांग को सिरे से खारीज करते हुए अर्जून मुंडा ने कहा है कि आदिवासीयों की पहचान उनकी धर्म से नहीं, बल्कि उनकी पंरपरा से होती है. हर आदिवासी समुदाय की अपनी विशिष्ट पंरपरा है, और इस परंपरा को किसी खास धर्म से जोड़ना उचित नहीं. पूरे देश में आज 700 से अधिक जनजातियां निवास करती हैं, जिनकी अपनी-अपनी परंपराएं हैं, इसकी मांग करने वालों की मंशा ही संदेहास्पद है. इस पर सालखन ने कहा कि अर्जुन मुंडा का सरना धर्म कोड विरोधी बयान निंदनीय, बेतुका और भ्रामक है.

बता दें आदिवासी सेंगेल अभियान द्वारा आठ नवंबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में सरना धर्म कोड जनसभा का आयोजन किया जाएगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस महासभा में देश-विदेश से लाखों आदिवासी शामिल होंगे. इसमें विशिष्ट अतिथि सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा, आजसू प्रमुख सुदेश महतो और असम से आदिवासी विकास काउंसिल के चेयरमैन असीम हांसदा आमंत्रित रहेंगे.

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