झारखंड में भ्रष्टाचार का ग्राफ दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है. राज्य में रोजाना अफसरों द्वार किए करप्शन के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं. प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की रिपोर्ट अब झारखंड के भ्रष्ट अफसरों की पोल खोल रही है. ईडी लगातार झारखंड में कार्रवाई कर रही है. इसी बीच बीते कल ईडी के हाथों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पूर्व प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का के खिलाफ बड़े सबूत हाथ लगे हैं.
बता दें बीते मार्च के महिने में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी द्वारा एक वीडियो शेयर किया गया था जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के तत्कालीन प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का व्यवसायी विशाल चौधरी के घर में सरकारी फाइलों में साइन करते हुए नजर आ रहे थे. वीडियो शेयर करते हुए बाबूलाल मरांडी ने राजीव पर कार्रवाई करने की मांग की थी. जिसके बाद झारखंड सरकार ने करवाई करते हुए उन्हें तत्काल मुख्यमंत्री के मुख्य सचिव के पद से हटा कर उनका तबादला दुसरे विभाग में कर दिया गया था. तब से राजीव ईडी की रडार में थे.
अब ईडी ने व्यवसायी विशाल चौधरी के घर में छापेमारी की और वहां से राजीव के साथ करप्शन में मिलीभगत के सबूत ईडी के हाथ लगे हैं. ईडी को विशाल के घर से एक डायरी मिली है जिसमें कई तरह के करप्शन का कच्चा चिट्ठा है. ईडी के हाथ लगी इन सबूतों में इतने चौकानें वाले खुलासे हुए हैं कि जानकर आपके भी पैरों तले भी जमीन खिसक जाएगी.
ईडी को व्यवसायी विशाल चौधरी की डायरी से करोड़ों रुपये के लेन-देन के सबूत मिले हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव रहे राजीव अरुण एक्का ने टेंडर में गड़बड़ी कर विशाल चौधरी के साथ मिल कर बाजार से तीन गुना से भी अधिक कीमत पर सामान खरीदे थे. सामग्री के बाज़ार मूल्य और आपूर्ति किये गये मूल्य के अंतर का 50 प्रतिशत कमीश्न के तौर पर लिया था. विशाल चौधरी ने अपनी एफजीएस कंस्ट्रक्शन कंपनी में निशीथ केसरी को निदेशक बनाया. मुनाफे में निशीथ के हिस्से को राजीव अरुण एक्का के पत्नी और बेटी के बैंक खाते में जमा किया गया.
अब हम आपको बताते हैं झारखंड में भ्रष्टाचार किस स्तर पर पहुंच चुका है. ईडी की रिपोर्ट के अनुसार राजीव अरुण एक्का ने अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए बाज़ार से तीन गुना से ज़्यादा क़ीमत पर सामान ख़रीदने का पैसा सरकार से लिया है.
राजीव ने टेंडर के माध्यम से कुल 42 प्रकार की सामग्रियां ख़रीदने का विवरण दिया. सरकार से इसके लिए 1करोड़ 15 लाख रुपये का भुगतान लिया गया. लेकिन जांच में पाया गया कि बाज़ार में इन सभी सामग्रियों की क़ीमत सिर्फ़ 30 लाख 60 हजार रुपये है. यानी जो काम लगभग 30 लाख 60 हजार रुपए में हो सकता था उसके लिए राजीव ने सरकार से 1 करोड़ 15 लाख रुपए लिए थे. इस ख़रीद में जीएसटी, ढुलाई सहित अन्य प्रकार के ख़र्चों को काट कर 45 लाख 67 हजार रुपये बचे.
इसमें से 50% राजीव अरुण एक्का और 50% विशाल की पत्नी श्वेता सिंह चौधरी ने ले लिया. इन लोगों ने अधिक मूल्य पर सामान ख़रीद के बंटवारे का फ़ार्मूला तय कर रखा था. इसके तहत कुल रक़म में से 40%, 10%, 10% की दर से विशाल और उसकी कंपनियों को मिलता था. इसके बाद बाक़ी बची हुई रकम में से राजीव अरुण एक्का और श्वेता सिंह चौधरी के बीच 50-50 प्रतिशत बंटता था. जांच में यह भी पाया गया कि विशाल चौधरी अपने कर्मचारियों जैसे नीलोफर आरा, एम अनवर सहित अन्य के खातों में नक़द राशि जमा करवाता है और बाद में उनके खातों से अपने खातों में ट्रांसफ़र करवाता है.
इडी ने जांच में यह भी पाया कि राजीव अरुण एक्का कने अपनी काली कमाई को सफेद करने का एक जरिया निकाल रखा था.राजीव की काली कमाई को उनकी पत्नी डॉक्टर सुप्रिया मिंज और बेटी सराहना एक्का के खातों में वेतन के रूप में दिखाया जाता है. राजीव की पत्नी सुप्रिया मिंज को दिल्ली की डरमा प्यूरिटिज नामक क्लिनिक में कंसल्टेंट के रूप में दिखा कर वेतन के रूप में एक लाख रुपये प्रति महिने की दर से उनके अकाउंट में भेजा जाता था. हालांकि सुप्रिया मिंज कभी दिल्ली स्थित क्लिनिक में गई ही नहीं हैं. इसी तरह राजीव अरुण एक्का की बेटी सराहना एक्का को भी एक कंपनी में काम करते हुए दिखा कर काली कमाई को वेतन के रूप में दिखाया जाता था.बता दें पैसों के इस हेर फेर के पीछे सीए गौरव गुंजन का बड़ा हाथ है. रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली की डरमा प्यूरिटिज अस्पताल और विशाल चौधरी दोनों का ही सीए गौरव गुंजन ही है. सीए गौरव ने ही अपने मास्टर माइंड से पैसों के इस हेर फेर को अंजाम दिया है.
इडी की र्रिपोर्ट के अनुसार विशाल चौधरी ने पुनदाग में 21 अगस्त 2021 में 1.18 एकड़ ज़मीन ख़रीदी थी, जिसकी कीमत चार करोड़ रु थी. विशाल चौधरी ने इस ज़मीन पर भवन बनाने के लिए एनकेपीसीएल को डेवलपर बनाया.यह कंपनी निशीथ केसरी की है. बता दें नीसीथ राजीव का बहनोई है. विशाल ने इस काम में निशीथ को 60 प्रतिशत हिस्सा दिया. इन करप्शन के पीछे केवल एक दो नहीं बल्कि पूरे समूह का हाथ है.
ईडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि भ्रष्टाचार का पूरा खेल कोड में होता था. विशाल चौधरी के यहां से ईडी को जो डायरी मिली थी, उसमें राजीव अरुण एक्का के लिए आरएस व आरएई लिखा था. उसने अपनी पत्नी श्वेता सिंह चौधरी के लिए एसएससी जैसे कोड वर्ड का इस्तेमाल किया था. पैसों की लेन-देन में लाख के लिए फाइल और करोड़ के लिए फोल्डर जैसे कोड वर्ड का इस्तेमाल किया गया था.ईडी को वाट्स अप चैट के जरिए भी इन घोटालों का पता चला. ईडी को मिले वाट्सअप चैट में ट्रांसफ़र पोस्टिंग के लिए हुए लेन देन में लाख रुपये के लिए ‘फाइल’ और करोड़ के लिए ‘फ़ोल्डर’ शब्द का प्रयोग किया गया है. चैट में आइएएस मनोज कुमार को ज़ैप आइटी में सीइओ की पोस्टिंग के लिए 50 लाख और कामेश्वर सिंह को आदिवासी कल्याण आयुक्त बनाने के लिए एक करोड़ के लेन देन का उल्लेख है.
प्रवर्तन निदेशालय ने पीएमएलए की धारा 66(2) के तहत राजीव अरुण एक्का व अन्य के सिलसिले में राज्य सरकार के साथ साझा की गयी सूचना में इन तथ्यों का उल्लेख किया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में एक्का व अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया है. ईडी की ओर से सरकार को भेजे गये पत्र में कहा गया है कि पूजा सिंघल मामले की जांच के दौरान इस बात की जानकारी मिली कि विशाल चौधरी राज्य के वरीय अधिकारियों के लिए रिश्वत की वसूली करता है. इस सूचना के आधार पर विशाल के कार्यालय और घर पर छापामारी की गयी. इस दौरान गड़बड़ी से संबंधित दस्तावेज और डिजिटल डिवाइस ज़ब्त किये गये.
अब राज्य सरकार इस मामले पर क्या सला लेती है यह तो आने वाला समय में ही पता चल पाएगा. लेकिन यह सुनिश्चित है कि झारखंड में ईडी कार्रवाई अभी जारी रहेगी.