दुमका सीट

दुमका सीट पर सीता सोरेन या नलिन सोरेन, क्या कहते हैं आंकड़े ?

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लोकसभा चुनाव 2024 में दुमका सीट पर इस बार जोरदार मुकाबला होने वाला है। भाजपा ने सीता सोरेन को उम्मीदवार बनाया है, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है। दोनों के बीच सीधा मुकाबला है और अभी तक की स्थिति से साफ है कि यह चुनाव काफी कांटे की टक्कर वाला है। दोनों ही प्रत्याशी जोर-शोर से प्रचार में जुटे हैं। दुमका सीट के पिछले चार-पांच दशकों के आंकड़े बताते हैं कि किसका पलड़ा भारी रह सकता है।

1980 से अब तक के आंकड़ों में झामुमो का दबदबा

1980 से अब तक दुमका में 12 लोकसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से 8 बार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जीत दर्ज की है, जबकि भाजपा ने 3 बार और कांग्रेस ने 1 बार जीत हासिल की है। खास बात यह है कि झामुमो की 8 जीतों में हर बार शिबू सोरेन सांसद बने। यही कारण है कि दुमका सीट को झामुमो का गढ़ माना जाता है।

शिबू सोरेन का दबदबा

शिबू सोरेन ने 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी। उन्होंने 6 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस प्रत्याशी को हराया।

 कांग्रेस की भी जीत

1984 में, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस की लहर में पृथ्वीचंद किस्कू ने झामुमो के शिबू सोरेन को लगभग एक लाख मतों से हराया था। हालांकि, 1989 में शिबू सोरेन ने पृथ्वीचंद किस्कू को हराया और सीट वापस जीत ली।

बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक करियर

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने 1991 में दुमका से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था। उन्होंने 1998 में पहली बार शिबू सोरेन को हराकर सांसद बने थे और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री बने थे।

 2024 की बदलती राजनीतिक परिस्थिति

2024 के लोकसभा चुनाव में दुमका सीट पर स्थिति बिल्कुल बदल गई है। भाजपा ने पहले सुनील सोरेन को टिकट दिया, लेकिन बाद में यह टिकट सीता सोरेन को दे दिया गया, जो पहले झामुमो में थीं। झामुमो ने भी बदलाव करते हुए शिबू सोरेन के परिवार के बजाय नलिन सोरेन को टिकट दिया है।

दो विधायकों के बीच मुकाबला

नलिन सोरेन शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से लगातार सात बार से विधायक हैं, जबकि सीता सोरेन जामा विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार की विधायक हैं। दोनों ने पहले कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है। इस बार का मुकाबला दो विधायकों के बीच है और कोई भी राजनीतिक विशेषज्ञ यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि कौन जीतेगा।

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