हजारीबाग सीट से आजसू पेश कर सकती है दावा, क्या भाजपा फिर से जयंत सिंहा पर खेलेगी दांव ?

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झारखंड के हजारीबाग संसदीय सीट पर भी अब आगामी लोकसभा चुनाव के टिकट को लेकर बातें शुरु हो गई हैं. वैसे तो इस सीट पर फिलहाल भाजपा का बोलबाला है लेकिन अब चर्चा यह भी है कि आगामी लेकसभा चुनाव में आजसू पार्टी गिरिडीह छोड़ हजारीबाग शिफ्ट करना चाहती है.झारखंड में फिलहाल जो समीकरण बने है उससे यही लग रहा है कि भाजपा और आजसू एनडीए गठबंधन के तले ही चुनाव लड़ सकती हैं. ऐसे में दोनों पार्टियों का एक सीट पर दावा ठोकना चर्चा का विषय बन सकता है और बात दिल्ली तलक पहुंच सकती है.

बीते कुछ महिनों पहले दैनिक अखबार प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट के अनुसार हजारीबाग से आजसू के स्थानीय नेताओं ने तब साफ तौर पर कहा था कि हजारीबाग के सभी विधानसभा सीटों बरही, बड़कागांव, रामगढ़, मांडू और हजारीबाग के ज्यादातर हिस्सों में आजसू पार्टी का प्रभाव है. उनका स्पष्ट कहना था कि वर्तमान भाजपा सांसद जयंत सिन्हा ने आजसू कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की है.

हजारीबाग सीट पर ना केवल आजसू पार्टी दावेदारी पेश कर सकती है बल्कि रिपोर्ट्स की मानें तो भाजपा से अन्य नेता भी यहां से दावेदारी पेश कर सकते हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो हजारीबाग के वर्तमान विधायक मनीष जायसवाल और मांडू के विधायक जेपी पटेल को लेकर भी खुब चर्चा है. भाजपा के यदुनाथ पांडेय भी ताल ठोंक रहे हैं. वहीं मनोज यादव चतरा के साथ-साथ हजारीबाग सीट से भी दावेदारी कर रहे हैं.

वहीं एक बार हजारीबाग लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1957 से आज तक कांग्रेस और वामपंथियों को सिर्फ 2 बार ही जीत नसीब हुई है. हजारीबाग सीट पर पहली बार 1957 में आम चुनाव हुए. इस चुनाव में जनता पार्टी से ललिता राज्य लक्ष्मी ने जीत हासिल की थी इसके बाद 1962 में स्वतंत्र पार्टी के बसंत नारायण सिंह जीते थे वहीं 1967 के चुनाव में बसंत नारायण निर्दलीय से चुनाव जीते और सांसद बन दिल्ली पहुंचे थे. बात 1971 के लोकसभा चुनाव की करें तो 1971 में कांग्रेस के दामोदर पांडे को जीत मिली, इस जीत से ही कांग्रेस ने हजारीबाग में अपना खाता खोला था. 1977 और 1980 में बसंत नारायण सिंह ने जनता पार्टी से चुनाव लड़ा था और जीते थे. 1984 में कांग्रेस के दामोदर पांडे फिर यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे. 1991 में भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता यहां से सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे .वहीं अगर बात भाजपा की करें तो भाजपा ने यहां से अपना खाता 1996 में खोला. 1996 में महाबीर लाल विश्वकर्मा ने हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में कमल खिलाया था. 1998, 1999 में बीजेपी की टिकट पर यशवंत सिन्हा सांसद चुने गए. 2004 के चुनाव में भारतीय कम्यूनिष्ठ पार्टी के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता ने फिर से विजय पताका लहराया जिसके बाद 2009 में भाजपा के यशवंत सिंहा ने जीत हासिल की. वहीं 2014 से इस सीट से यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा सांसद बने. बीते लोकसभा चुनाव यानी 2019 में भी जयंत सिंहा ने ना सिर्फ अपनी सीट बचा ली जबकि अपनी शानदार जीत से यह स्पष्ट संकेत दिया कि हजारीबाग मतलब सिर्फ और सिर्फ भाजपा. हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में हजारीबाग सीट पर क्या होगा इसका फिलहाल सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है.
रिपोर्ट्स की मानें तो वर्तमान सांसद जयंत सिंहा ने हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के विकास में अपना पूरा योगदान दिया है. ऐसा उनके समर्थकों का दावा है. भाजपाई कार्यकर्ताओं का कहना है कि जयंत सिन्हा के कार्यकाल के दौरान हजारीबाग में शिक्षा, कृषि, सड़क के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ है. जयंत सिंहा की काम को उंगलियों पर गिनाते हुए उनके समर्थक कहते हैं कि तो हजारीबाग को नया मेडिकल कॉलेज ,नगवा में एयरपोर्ट मिला है. हजारीबाग-बड़कागांव सड़क बेहतरीन हो गई है. हजारीबाग से लंबी दूरी की ट्रेन सेवा की शुरूआत हुई है. गोरिया कर्मा में भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र का निर्माण हुआ. हजारीबाग-रामगढ़ ग्रामीण पाइपलाइन जलापूर्ति योजना की शुरुआत हुई. रामगढ़ में राज्य का पहला महिला इंजीनियरिंग कॉलेज बना. ऐसे कई कामों को गिना भाजपा कार्यकर्ता हजारीबाग सीट पर जयंत सिन्हा की दावेदारी को मजबूती से पेश करते हैं.
बहरहाल, mplads.gov.in पर मौजूद जनवरी, 2019 के आंकड़ों के अनुसार, जयंत सिन्हा ने अभी तक अपने सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 21.08 करोड़ रुपए खर्च किए है उन्हें सांसद निधि से अभी तक 21.54 करोड़ मिले हैं. यानि जयंत सिन्हा ने अपने सांसद निधि का 105 फीसदी हिस्सा खर्च किया है.

रिपोर्ट्स बताते हैं कि जयंत सिन्हा ने अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री हासिल की है. केंद्रीय नेतृत्व के सामने भी जयंत सिन्हा का प्रोफाइल बड़ा है. वह केंद्र में वित्तीय मामलों के जानकार नेताओं में शामिल हैं. केंद्रीय नेतृत्व ने इन्हें वित्तीय मामलों में बड़ी जिम्मेदारी देती रही है. जयंत सिंहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की टास्क टीम का हिस्सा हैं. वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के करीबी भी माने जाते हैं. ऐसे में पार्टी का एक खेमा मानकर चल रहा है कि जयंत सिन्हा का पत्ता काटना आसान नहीं होगा.

अब आने वाले समय में आलाकमान के फैसले के बाद ही तय होगा कि हजारीबाग से भाजपा चुनाव लड़ेगी या इस बार आजसू अपनी जगह बनाने में कामयाब होगी. फिलहाल कुछ कह पाना मुश्किल है.

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