गोड्डा लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक और उतार-चढ़ाव भरा रहा है। यह सीट 1962 में अस्तित्व में आई और तब से अब तक कई बार अपने रंग बदलते हुए देखी गई है। यहां के मतदाताओं ने कई बार कांग्रेस और भाजपा जैसी प्रमुख पार्टियों को जीत दिलाई है, साथ ही कुछ बार क्षेत्रीय दलों को भी मौका दिया है।
1962 से 1977 तक: कांग्रेस का दबदबा
1962 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में गोड्डा से कांग्रेस के प्रभु दयाल हिम्मतसिंहका विजयी हुए। उन्हें 40.6% वोट मिले। इसके बाद 1967 और 1971 में भी कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की। लेकिन 1977 में जनता लहर के चलते कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के पूर्व अवतार भारतीय लोक दल के जगदंबी प्रसाद यादव ने जीत हासिल की।
1980 से 1991 तक: कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का दौर
1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर गोड्डा पर कब्जा जमाया। लेकिन 1984 के बाद यहां क्षेत्रीय दलों का उभार देखने को मिला। 1989 में भाजपा ने पहली बार यहां जीत दर्ज की, जबकि 1991 में झामुमो ने बाजी मार ली।
1996 से 2004 तक: भाजपा का दबदबा
1996 में भाजपा ने गोड्डा पर कब्जा जमाया और इसके बाद 1998, 1999 में भी यहां से जीत दर्ज की। झारखंड के बंटवारे के बाद 2004 में हुए चुनाव में कांग्रेस के फुरकान अंसारी ने जीत हासिल की, लेकिन यह सीट भाजपा के कब्जे में ही रही।
2009 से 2019 तक: भाजपा का दबदबा कायम
2009 और 2014 में भाजपा के डॉ. निशिकांत दुबे ने गोड्डा से जीत दर्ज की। 2019 में भी उन्होंने तीसरी बार जीत हासिल की। 2019 में भाजपा को 53.4% वोट मिले।
गोड्डा लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन बंटवारे के बाद यह सीट भाजपा के कब्जे में आ गई। भाजपा ने 1996 से लगातार इस सीट पर कब्जा जमाए रखा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के चुनाव में यहां का सियासी समीकरण क्या होता है।