Ranchi : आदिवासियों में सरहुल नये साल की शुरूआत का प्रतीक माना जाता है. आदिवासियों का प्रमुख त्योहार में से एक सरहुल पर्व है. इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग तालाब से मछली और केकड़ा पकड़ने का काम करते हैं. सरहुल के पहले दिन मछली के जल से अभिषेक किया जाता है और उस जल को अभिषेक किए गए जल को घर में छिड़का जाता है. दूसरे दिन उपवास रखा जाता है. तीसरे दिन पाहन (पुजारी) उपवास रखते हैं.
सरना पूजा स्थल पर सखुआ के फूलों की पूजा की जाती है. रांची के चंदवे गांव के मुख्या गुरुचरण मुंडा ने बताया कि हम आदिवासी समाज के लोग धरती माता की पूजा किया करते हैं. भगवान और धरती माता से प्राथना करते हैं कि धरती पर मौजूद समस्त प्राणी और पेड़ पौधे स्वस्थ रहें. सभी जीव जंतुओं को दाना पानी मिलता रहे. बारिश ठीक से हो, ताकि हम खेती बाड़ी कर सकें.
सरहुल के दिन से आदिवासी समाज कृषि का कार्य शुरू करते हैं. इस दिन से ही गेहू की नई फसलों की कटाई का काम शुरू किया जाता है. इस दिन गांव के पुजारी जिसे पाहन कहा जाता है, वो भविष्यवाणी करते हैं कि इस साल अकाल पड़ेगा या अच्छी बारिश होगी.
ये परंपरा है कि पाहन मिट्टी के तीन बर्तन लेते हैं. फिर इन बर्तनों में ताजा पानी भर दिया जाता है. अगले दिन इन तीनों बर्तनों को बारी बारी से देखा जाता है. अगर पानी कम हो जाता है, तो माना जाता है कि बारिश कम होगी. यानी कि अकाल की संभावना होगी है. वहीं अगर पानी पहले जितना ही रहता है, तो ये माना जाता हैकि बारिश अच्छी होगी