झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को शुक्रवार को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए कथित ज़मीन घोटाला मामले में में जमानत मिल गई है. अदालत में 13 जून को जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई थी. इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. जस्टिस आर मुखोपाध्याय ने 28 जून को हेमंत सोरेन को जमानत देने का फैसला सुनाया. यहाँ तक तो आपको पता होगा ही. लेकिन इस वीडियो में समझने कि कोशिश करेंगे कि हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने पर झारखण्ड के राजनीतिक समीकरणों में क्या बदलाव आएगा और भाजपा पर इसका क्या असर पड़ेगा.
इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले हेमंत सोरेन की रिहाई ने राज्य के सियासी समीकरणों में बड़ा बदलाव ला दिया है, क्योंकि राज्य की झामुमो-कांग्रेस गठबंधन सरकार को नैतिक तौर पर हेमंत सोरेन की रिहाई से ताकत मिली है। इसकी वजह यह है कि हेमंत सोरेन झारखण्ड के सबसे बड़े और प्रभावी नेता माने जाते हैं.
बता दें कि हेमंत सोरेन को 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी से पहले उन्होंने राज्य के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था, और चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता घोषित करके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन झामुमो का चेहरा बन कर उभरीं. उन्होंने अपने भाषणों के जरिए महिलाओं के बीच एक मजबूत छवि बना ली है. साथ ही राज्य के आदिवासी जनता तक बड़े ही मज़बूती से यह सन्देश पहुँचाने में कामयाब हुईं कि उनके नेता को केंद्र की मोदी सरकार ने जानबूझ कर गिरफ्तार कर लिया है.
कल्पना सोरेन ने इंडिया गठबंधन के विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के कैंपेन में भी भाग लिया और लोकसभा चुनावों के साथ ही गांडेय विधानसभा में हुए उपचुनाव में 26,000 वोटों से जीत हासिल की. बता दें कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन को 5 सीटें मिली. JMM तीन सीटों पर जीती, जबकि कांग्रेस को दो सीटें मिलीं. बीजेपी ने यहां 8 सीटें जीती थीं, जबकि उसकी सहयोगी दल AJSU को एक सीट मिली. खास बात यह है कि इंडिया गठबंधन ने सभी पांच एसटी-आरक्षित सीटों पर अपना परचम लहराया.
बीजेपी को आदिवासी बहुल सभी सीटों पर बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, आलम यह रहा कि केंद्र सरकार में जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. इतना ही नहीं पार्टी ने आदिवासी बहुल दुमका भी गंवा दी, जबकि इस सीट पर भाजपा ने जेएमएम से बगावत करके बीजेपी में आईं हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन को टिकट दिया था। यह बताता है कि झामुमो और उसके सहयोगियों की राज्य के आदिवासी इलाकों में पकड़ बनी हुई है- दूसरी तरफ आदिवासी वोटरों पर भाजपा की पकड़ ढीली पड़ गयी है. और अब हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद गठबंधन को उम्मीद है कि बीजेपी की हालत यहां और खराब हो जाएगी है.
सियासी समीकरणों पर राज्य के एक बीजेपी नेता ने कहा कि लोकसभा चुनाव में झारखंड की आदिवासी सीटों पर बीजेपी का प्रचार काम नहीं आया. ऐसे में अब पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए राज्य के 28 आदिवासी बहुल सीटों पर रणनीति में बदलाव करेगी. हेमंत सोरेन की रिहाई से राज्य में सियासी समीकरण बदल सकते हैं और उम्मीद है कि झामुमो सहानुभूति कार्ड के जरिए बीजेपी को और बैकफुट पर धकेल सकती है.
ऐसे में कल्पना सोरेन की भूमिका को लेकर एक जेएमएम नेता ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार के कैबिनेट में जगह मिल सकती है, क्योकि सभी को पता है कि हेमंत सोरेन की रिहाई पर ईडी उसका विरोध करेगी और वह इस जमानत को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकती है.
वहीं अब बीजेपी को भी लगता है कि हेमंत सोरेन को जमानत मिलने के बाद पार्टी को अपने चुनावी कैंपेन में बदलाव करना ही होगा. भाजपा ने कहा कि झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए के प्रभारी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं, जो कि नए सिरे से रणनीति बनाएंगे।
हालांकि बीजेपी के एक नेता ने यह स्वीकारा है कि सोरेन की जेल से रिहाई, पार्टी द्वारा चलाए जा रहे एजेंडे के लिए एक झटका है, आदिवासी आबादी के बीच अब यह सवाल पूछा जाएगा कि अचानक कोर्ट ने सोरेन को जमानत कैसे दे दी.
चलिए यह तो थी राजनीतिक समीकरण की बात अब संछिप्त में यह भी जानते हैं कि अदालत ने इस केस के बारे में क्या कहा है?
झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को ज़मानत देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया सबूतों को देखते हुए ये मानने के कारण हैं कि हेमंत सोरेन कथित अपराधों के लिए दोषी नहीं हैं.
कोर्ट ने कहा, “यह ध्यान देने योग्य है कि भानु प्रताप प्रसाद के परिसर से बरामद कई रजिस्टरों और रेवेन्यू रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता (हेमंत सोरेन) या उनके परिवार के सदस्यों का नाम नहीं है.”
“अगर व्यापक संभावनाओं पर भी जाएं तो स्पेसिफिक या अप्रत्यक्ष रूप से याचिकाकर्ता शांति नगर, बड़गाईं, रांची में 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्ज़े में शामिल नहीं लगते और ना ही ‘अपराध से की गई आय’ को छिपाने में शामिल दिखते हैं.”
“किसी भी रजिस्टर/रेवेन्यू रिकॉर्ड में उक्त ज़मीन के अधिग्रहण और कब्ज़े में याचिकाकर्ता यानि हेमंत सोरेन की प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई ज़िक्र नहीं है.”
“इस कोर्ट में दर्ज किए गए निष्कर्षों के आधार पर इस अदालत ने पाया है कि पीएमएलए की धारा 45 की शर्त पूरी करते हुए ये मानने का कारण हैं कि याचिकाकर्ता कथित अपराध का दोषी नहीं हैं.”
यानि कि कोर्ट ने कहा कि हेमंत सोरेन के खिलाफ पर्याप्त साबुत नहीं हैं और ED का केस संभावनाओं पर आधारित है. एक दफा सोचिये कि यह कितना खतरनाक है कि बिना साबुत के एक राज्य के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया जाता है और उसे पांच महीने तक जेल में रखा जाता है.