JPSC-JSSC की परीक्षा में बैठे अभ्यर्थी बुरे फंसेंगे ?

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Ranchi : झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गयी. 13 और 20 नवंबर को वोटिंग होगी. प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है. माने कोई नया सरकारी काम नहीं हो सकता. पता है इसका खामियाजा कौन भुगतेगा. झारखंड के बेरोजगार युवा. दरअसल, चुनाव की घोषणा के बाद आदर्श आचार संहिता लागू होने से झारखंड में कई सरकारी नियुक्तियां लटक गयी हैं.

इसमें प्रमुख रूप से 11वीं जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा और जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा का नाम लिया जा सकता है. 11वीं जेपीएससी सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा जून महीने में ही संपन्न हो चुकी थी. तात्कालीन जेपीएससी अध्यक्ष नीलिमा केरकेट्टा का कार्यकाल 21 अगस्त तक ही था.

आयोग के पास पूरे 2 महीने थे परिणाम जारी करने के लिए लेकिन ऐसा नहीं किया गया. नीलिमा केरकेट्टा की सेवानिवृत्ति के बाद मुख्य परीक्षा का रिजल्ट लटक गया. अब आचार संहिता लागू हो चुकी है. अब नई सरकार के गठन के बाद ही परिणाम जारी होगा. अब हेमंत सरकार ही दोबारा आयेगी या फिर एनडीए की वापसी होगी, सब भविष्य के गर्भ में है.

ऐसे में जेपीएससी अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है. जाहिर है कि यह सरकार की नाकामी है. जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा का परिणाम भी अब लटक गया है. परीक्षा जांच के दायरे में भी है. दरअसल, 21 और 22 सितंबर को जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा हुई थी. परीक्षा में धांधली के आरोप लगे हैं.

आयोग ने जांच का आश्वासन दिया र ऑनर्स की जारी कर दिया. धांधली के आरोप, आरोपों के नकारना, आंदोलन, मशाल जुलूस और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच परिणाम जारी नहीं किया जा सका. अब नतीजे आयेंगे भी नहीं क्योंकि आदर्श आचार संहिता लागू है.

कुछ भी सरकार के हाथ में नहीं रहा. सवाल उठेंगे कि सरकार 5 साल तक रही. समय रहते क्यों परीक्षा नहीं ली गयी. क्यों वक्त रहते परिणाम जारी नहीं किया गया.

सरकार 11वीं जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा और जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा को अपनी उपलब्धि बता रही है लेकिन सवाल है कि इसका हासिल क्या है. परीक्षा संपन्न कराने में क्या कामयाबी है. वादा तो सरकारी नौकरी देने का था.

वह भी प्रतिवर्ष 5 लाख. कायदे से देखा जाये तो केवल 7वीं-10वीं जेपीएससी के माध्यम से ही 252 अधिकारियों की नियुक्ति हो पायी है. हेमंत सरकार ने 26001 पद पर सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था. परीक्षा का आयोजन भी किया गया.

अब इसमें सीटेट पास अभ्यर्थियों को मौका देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया. परिणाम जारी नहीं किए जा सके. दरअसल, सरकार पिछले 2 साल से सार्वजनिक मंचों से ऐलान कर रही थी कि जल्द ही 50,000 पदों पर सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति होगी.

आखिरकार 26001 पद पर नियुक्ति के लिए परीक्षा ली गयी. कब, जुलाई-अगस्त 2024 में. जब चुनाव के ऐलान को 3 माह से भी कम समय बचा था. क्या सरकार को जानकारी नहीं थी कि कभी भी आदर्श आचार संहिता लागू हो सकती है.

नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकेगी. सरकार के मंत्री इरफान अंसारी कहते हैं कि हमने गजब की तेजी दिखाई है. मुख्यमंत्री ने भी कहा कि हमारी सरकार की अब यही तेजी रहेगी. सवाल है कब और कब तक. अब तो चुनाव आ गया. कार्यकाल आपका खत्म हो चुका है.

यह तेजी आखिरी वक्त में क्यों आयी. क्या सहायक अध्यापकों की नियुक्ति परीक्षा भी उपलब्धि है.
झारखंड देश का 7वां सबसे बेरोजगार राज्य है.

2019 में हेमंत सरकार बेरोजगारी दूर करने का वादा करके ही आई थी. लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो सकी. कुछ भी वक्त पर नहीं हो सका. आखिर में सरकार भागते भूत की लंगोटी पकड़ने का प्रयास कर रही थी लेकिन हाथ न तो भूत आया और न ही लंगोटी. छात्र नाराज हैं. आंदोलन हो रहे हैं. रोजगार मांग रहे हैं.

गौरतलब है कि केवल जेपीएससी सिविल सेवा और जेएसएससी सीजीएल ही नहीं बल्कि सहायक अध्यापक, झारखंड नगरपालिका सेवा संवर्ग के अंतर्गत सेनेटरी और फूड इंस्पेक्टर, राजस्व निरीक्षक, वेटनरी ऑफिसर, विधि सहायक और गार्डेन निरीक्षक सहित अन्य नियुक्तियां भी लटक गयी है.

झारखंड में करीब पौने 3 लाख सरकारी पद खाली हैं. ये खाली ही रह गये. जो परीक्षायें हो गयी थीं उनका परिणाम जारी नहीं किए जाने से क्या दिक्कत है उदाहरण सहित समझिए.

पिछली रघुवर सरकार के कार्यकाल में पंचायत सचिव और हाईस्कूल टीचर नियुक्ति के लिए परीक्षा संपन्न हो चुकी थी. परिणाम भी जारी किया. डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन तक हो गया लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं मिला.

2019 के चुनाव में सरकार बदल गयी. अगले 3 साल तक पंचायत सचिव और हाईस्कूल टीचर की नियुक्तियां लटकी रहीं. बहुत कोर्ट कचहरी के बाद ही अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र मिल सका.
चुनाव में क्या मुद्दे हैं, क्या मुद्दे होने चाहिए. वोटर क्या मानते हैं. सियासी दल क्या कहेंगे.

यह तो चलता रहेगा. लेकिन इन सबमें सच है कि हजारों नियुक्तियां सरकार की उदासीनता की वजह से लटक गयी है.

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