sita soren joined bjp

सीता सोरेन के भाजपा में जाने की क्या है असल वजह, क्या दुमका से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी ?

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लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) के ठीक पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा की महासचिव और जामा से विधायक सीता सोरेन (Sita Soren) के इस्तीफे और तुरंत बाद दिल्ली जाकर भाजपा ज्वाइन करने से झारखंड मे सियासी भूचाल आ गया है. आज दिल्ली स्थित बीजेपी दफ्तर में प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की भाभी सीता सोरेन को बीजेपी की सदस्यता दिलवाई है. सीता सोरेन भाजपा ज्वाइन करते ही पीएम मोदी की तारीफों के पुल बांधती नजर आयीं. इस बात से तो हम सभी वाकिफ थे कि सीता सोरेन झामुमो से कई सालों से नाराज चल रही थीं, कई स्तरों पर वे यह नाराजगी जाहिर भी कर चुकी थीं, लेकिन इस घटनाक्रम में सबसे अहम है झामुमो छोड़ने और भाजपा ज्वाइन करने की सीता सोरेन की टाइमिंग.

कई हलकों में चर्चा है कि झारखंड की सीता सोरेन मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की बहू अपर्णा यादव साबित हुई जिन्होंने समाजवादी को पार्टी छोड़कर 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया था.
बहरहाल सीता सोरेन की झामुमो छोड़ने और भाजपा ज्वाइन करने की टाइमिंग से यह तो तय है कि सीता सोरेन लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रही है. सवाल है किस संसदीय सीट से? क्योंकि जिस जामा विधानसभा सीट से वे 3 बार की विधायक हैं, वह जामा विधानसभा की सीट दुमका लोकसभा में आता है. और दुमका लोकसभा सीट शिबू सोरेन की पांरपरिक सीट रही है और जहां से यह बात लगभग स्पष्ट है कि हेमंत सोरेन लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले हैं या चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं. यह बात झामुमो की तरफ से भी अनऑफिसियली आ चुकी है की दुमका से हेमंत सोरेन पर्चा भरकर जेल से ही चुनाव लड़ सकते हैं.

यानी अगर भाजपा दुमका से सुनील सोरेन का नाम बतौर प्रयाशी हटाकर सीता सोरेन को आगे करती है, तो दुमका सीट से हेमंत का मुकाबला सीधा अब भाजपा की प्रत्याशी सीता सारेन से होगा. हालांकि यह सिर्फ कयास हैं, क्योंकि इस समय सीता सोरेन का भाजपा ज्वाइन करने का कोई अर्थ नहीं निकल रहा है और दुमका के अलावा कोई और सीट उनके लिए उपयुक्त नजर भी नहीं आती. परिणाम क्या होगा, यह तो कहना बहुत मुश्किल है, लेकिन यह मुकाबला जरूर झारखंड के सियासी इतिहास का सबसे रोमांचक मुकाबला हो जाएगा.

हालांकि अभी तक न तो दुमका से हेमंत के चुनाव लड़ने पर मुहर लगी है और न ही सीता सोरेन के दुमका संसदीय सीट से चुनाव लड़ने को लेकर भाजपा ने ऑफिसिलयली कुछ कहा है.

आगे बढ़ते हैं और समझते हैं कि सीता सोरेन के भाजपा में जाने से झारखंड में क्या कुछ बदलाव संभव है। मेरा व्यक्तिगत आकलन है कि यहां से समीकरण बदले या न बदले, नैरेटिव जरूर बदलेगा. पहली बात तो यह कि जिस तरह झामुमो कल्पना सोरेन को आगे प्रोजेक्ट कर रही है, उन्हें मुंबई में आयोजित इंडिया गठबंधन के कार्यक्रम में भेज रही है, उन्हें नई जिम्मेवारियां दे रही है, उसी कल्पना सोरेन के खिलाफ भाजपा सीता सोरेन को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बखुबी इस्तेमाल करने जा रही है.

एक तरफ कल्पना लोगों से कहेंगी कि उनके पति को जेल भेजा गया, षड्यंत्र किया गया, उनके साथ अन्याय हुआ है। दूसरी तरफ सीता सोरेन कह रही होंगी कि झामुमो और उनके परिवार ने उनके साथ बुरा किया, बड़ी बहु को दरकिनार किया, उनकी उपेक्षा की, परिवार के सबसे सिनियर सदस्य शिबू सोरेन बड़ी बहू से साथ निरंतर हो रही उपेक्षा पर भी मुक दर्शक बने रहे और अंत में उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी. यह भाजपा का मास्टर प्लान हो सकता है, जो झामुमो के करेंट नैरेटिव को काटने में बहुत प्रभावी साबित होगा.

यानी इस बार के चुनाव में भाजपा कल्पना के खिलाफ सीता सोरेन को खड़ा करेगी, इस बात में कोई दो राय नहीं है। रानीतिक विशेसज्ञों के अनुसार सीता सोरेन के फेर बदल से इसका असर झामुमो की सभी सीटों पर पड़ेगा. कुछ न भी हो तो जनता झामुमो के वोटर, खासकर दुमका के वोटर कंफ्यूज जरूर होंगे कि वे किनके साथ हैं। सीता सोरेन भी गुरूजी का नाम लेगी, उनके नाम पर वोट मांगेंगी, कहेंगी कि उन्हें गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त है. और हेमंत औऱ कल्पना की झामुमो गुरुजी के आदर्शों को भूल चुकी है। क्योंकि यही बात सीता सोरेन ने अपनी चिट्ठी में लिखी है. उनकी पहले लाइन में लिखा है कि वे बेहद दुख हृदय से अपना इस्तीफा दे रही हैं. उन्होंने साफ-साफ लिखा है कि पार्टी ने अपने परिवार को अलग-थलग कर दिया है. वे कई सालों से उपेक्षित महसूस कर रही हैं। जब ये बातें वे इस्तीफे में लिख सकती हैं, तो निश्चित तौर पर राजनीतिक मंचों से भी बोलेंगी.

संभव है कि सीता सोरेन हेमंत पर सीधा हमला बोलना शुरू करे, ईडी द्वारा उनपर कार्रवाई को सही ठहराए और लोगों से कहे कि उन्होंने वाकई घोटाले को अंजाम दिया है. यह बात अब तक भाजपा कहती आई है, लेकिन परिवार की सदस्य जब यह बात राजनीतिक मंचो से कहे, तो इसका परिणाम कुछ और होगा.

लेकिन एक बात समझना जरूरी है. सीता सोरेन कई सालों से नाराज थीं, खुलकर बोलती भी आईं हैं, फिर उन्होंने इस समय अपना इस्तीफा क्यों दिया? एक एंगल तो भाजपा का है, जो हमने आपको बताया। दूसरा एंगल लोकसभा चुनाव का है. लेकिन एक तीसरा एंगल भी है.

दरअसल हेमंत के गिरफ्तार होने के बाद सीता सोरेन यह उम्मीद कर रही थी उन्हें उप मुख्यमंत्री या कोई मंत्रीपद मिले. बसंत सोरेन को मंत्रिपद मिला, लेकिन सीता सोरेन सिर्फ और सिर्फ एक विधायक ही रहीं. हेमंत के मुख्यमंत्री रहते हुए भी एक मंत्रीपद खाली रहा, लेकिन सीता सोरेन को तब भी मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिली, ना ही उन्हें चंपाई में मंत्रीमंडल में ही जगह मिल सकी. और अब कल्पना सोरेन को पार्टी ने आगे करना शुरू किया और उनके मुख्यमंत्री बनने तक की बातें सामने आने लगी, यह बात शायद सीता सोरेन के लिए चरम बिंदु था. क्योंकि इस बात से तो सभी इत्तेफाक रखते हैं कि परिवार की सबसे बड़ी बहु होने के बाद भी उन्हें सरकार में कोई अहम जिम्मेवारी नहीं दी गई। वर्षों की नाराजगी इस बिंदु पर आकर अपने सब्र के बांध को तोड़ गई और उन्होंने वह फैसला लिया, जिसने इस वक्त झारखंड ही नहीं, पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है. राजनीति में महत्वकांक्षाएं तो व्यक्तिगत ही होती है.

हम थोड़ा दुमका पर लौटते हैं, क्योंकि इस बात की प्रबल संभावना है कि अगर सीता सोरेन लोकसभा का चुनाव लड़ती हैं, तो वे दुमका से ही लड़ेंगी. नहीं लड़ती हैं तो दिसंबर में वे जामा से लड़ेंगी ही. लेकिन मुझे लगता है कि सिर्फ चुनाव प्रसार के लिए भाजपा सीता सोरेन को भाजपा ज्वाइन नहीं कराएगी. निश्चित तौर पर उन्हें चुनाव लड़ाने की तैयारी है, औऱ इसको लेकर डील पहले ही दिल्ली में पूरी हो चुकी है.

दुमका संसदीय सीट में विधानसभा की छह सीटें हैं, इनमें से चार में झामुमो, एक में काग्रेस और एक में भाजपा के विधायक हैं. झामुमो के चार विधायकों में से एक सीता सोरेन स्वयं थी. यहां आदिवासी सबसे अधिक लगभग 38 प्रतिशत हैं. यह क्षेत्र शिबूसोरेन के आंदोलन का गवाह है और उनके प्रति विशेष सम्मान भी रखता है. शिबू सोरेन जिनके कार्यक्रम में जाएंगे, जिनके साथ स्टेज शेयर करेंगे, उनका पलड़ा भारी हो जाएगा. हालांकि शिबू सोरेन झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष होने के नाते झामुमो के लिए ही प्रचार प्रसार करेंगे, लेकिन सीता सोरेन को उनके नाम का इस्तेमाल करने में कोई गुरेज नहीं होगा.

कुल मिला कर संभावनाओं के आधार पर ही सही, लेकिन दुमका सीट बेहद दिलचस्प होने वाला है. यहां तक कि भाजपा के अप्रत्याशित कदम का असर विधानसभा चुनाव पर भी देखने को मिलेगा.

संभव है कि अभी झारखंड की राजनीति में और भी बदलाव देखने को मिले। अभी तो सीता सोरेन मीडिया में आकर अपनी बात रखेंगी, मंचों से भाषण देंगी. तब स्थितियां और साफ होंगी। क्या संभव है कि आने वाले दिनों में ऐसे और सियासी झकटे देखने को मिले? संभव तो है, हम इंतजार भी कर रहे हैं.

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