झारखंड मे स्वास्थ्य व्यवस्था काफी बदहाल है, राज्य मे चिकित्सकों की कमी भी एक बड़ी समस्या है. झारखंड लोक सेवा आयोग ने स्वास्थ्य विभाग के अधीन विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति को लेकर विज्ञापन प्रकाशित किया था.771 पदों के लिए नियुक्ति निकाली गई थी. जिसमें से मात्र 193 डॉक्टरों को चयनित किया गया और 578 पद खाली रह गए. चयनित हुए 19 चिकित्सकों ने अपनी सेवा देने से इंकार कर दिया है .
हाल ही में राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रिम्स में 100 सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाले गए और इंटरव्यू प्रक्रिया पूरी होने के बाद मात्र 33 डॉक्टरों का ही चयन किया जा सका. वहीं नॉन टीचिंग स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 771 पदों में मात्र 266 उम्मीदवार ही इंटरव्यू में शामिल हुए.
इससे पूर्व भी आयोग की ओर से साल 2015 में 654 पदों पर नियुक्ति के लिए इंटरव्यू लिया गया था, लेकिन उम्मीदवारों की अनुपस्तिथि के कारण 492 पद खाली रह गए. डॉक्टरों के सरकारी नौकरी में दिलचस्पी न लेने की पीछे कई वजह हैं. एक तो ज्यादातर डॉक्टरों को कॉरपोरेट और प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ऊंचे पैकेज दिए जाते हैं, दूसरी वजह यह है कि उन्हें झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों और संसाधनविहीन हॉस्पिटलों में पोस्टिंग पसंद नहीं है. कई डॉक्टर्स बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. यहीं वजह है कि चयनित चिकित्सक अपनी सेवा दूसरे प्रदेश मे देंगे.
ऐसे मे झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने झारखंड मेडिकल काउंसिल से इन चिकित्सको की रजिस्ट्रेशन रद्द करने की मांग की है. यही नहीं राज्य की मेडिकल काउंसिल ने झारखंड राज्य से निबंधित चार चिकित्सको को शोकॉज भी किया है.
इस समस्या को लेकर झारखंड मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ बिमलेश सिंह ने कहा कि राज्य की मेडिकल काउंसिल से स्पष्टीकरण मांगा गया है. 19 में से चार डॉक्टर झारखंड मेडिकल काउंसिल से रजिस्टर्ड हैं. शेष 15 डॉक्टर दूसरे प्रदेशों से रजिस्टर्ड हैं ऐसे मे उनका रजिस्ट्रेशन कैंसिल करना हमारे हाथ में नहीं है .
साथ ही राज्य के स्वास्थ्य संघ के राज्य सचिव डॉ मृत्युंजय सिंह ने कहा कि यहां पर प्राइवेट प्रैक्टिस पर कई नियम और शर्तों को लगा कर ,जिस तरीके से बैन लगाया है इससे डॉक्टरों में निराशा है क्योंकि राज्य की तरफ से उन्हें नॉन प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं हैं.
चिकित्सकों को सैलरी भी अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड में काफी कम है .इससे चिकित्सक यहां काम नहीं करना चाहते.केंद्र की तर्ज पर पिछले 10 सालों से डायनेमिक एसीपी की मांग की जा रही है लेकिन अभी तक लागू नहीं किया गया. जबकि बिहार ने इसे अपनाया है उन्होंने कहा कि तीनों विषयों को लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ मंथन चल रहा है ताकि राज्य में चिकित्सकों की कमी को दूर किया जा सके.