जयराम महतो

सियासी कहानियां : गिरिडीह में कौन करेगा मैदान फ़तेह, जयराम महतो, सीपी चौधरी या मथुराप्रसाद महतो ?

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झारखंड की एक ऐसी सीट जहां सभी राजनीतिक गणितज्ञों का गणित फेल हो जा रहा है। ये हो सकता है, वो हो सकता है के चक्कर में कोई बता ही नहीं पा रहा है कि आखिर यहां होने क्या वाला है? एक तरफ मोदी जी का चेहरा है, दूसरी तरफ हेमंत सोरेन के नाम की सहानुभूति और तीसरी तरफ है युवा छात्रों की एक फौज, जो दावा कर रहे हैं कि एक आंधी चली है, जिसमें सारे सियासी समीकरण धरासायी हो जाएंगे। जी हां, आप सही सोंच रहे हैं – हम बात कर रहे हैं झारखंड में अब तक सबसे अधिक चर्चा और कहें कि विवादों में भी रही लोकसभा सीट गिरिडीह की। गिरिडीह में कांग्रेस पांच पर जीती, छोटानागपुर, संथाल परगना पार्टी और स्वतंत्रता पार्टी के साथ जनता पार्टी और झामुमो ने भी यहां से जीत का स्वाद चखा है। लेकिन 1996 के बाद जिस पार्टी का यहां से दबदबा रहा है, वो है देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा। अभी यह सीट भाजपा के साथी आजसू के पास हैं, लेकिन लोग कह रहे हैं यहां भी चेहरा तो मोदी ही हैं।

मोदी मैजिक के अलावा एक और चीज जो यहां हावी है

लेकिन, लेकिन, लेकिन। मोदी मैजिक के अलावा एक और चीज जो यहां हावी है, प्रभावी और जिसने नई बयार चलाई है, वो है युवा नेता जयराम महतो। चुनावी घोषणा के इतने दिन बीते, हमने भी कई दिनों तक यहां के तमाम स्थानों में जाकर लोगों से बात-चीत की। हम अभी भी गिरिडीह में हैं। लेकिन पल-पल बदलते समीकरण और रुख बदलती चुनावी हवा में कुछ भी साफ नजर नहीं आ रहा है। लेकिन इतिहास गवाह है कि जब भी आसमान धुंधला होता है, तो कुछ अप्रत्याशित ही होता है।

तो क्या आजसू बचा पाएगी देश में अपनी इकलौती सीट

तो क्या आजसू बचा पाएगी देश में अपनी इकलौती सीट, या फिर मोदी फैक्टर के बावजूद हो जाएगा उनका सूपड़ा साफ? क्या हेमंत के प्रति होगी लोगों की सहानुभूति या फिर पहली बार यहां से चुनाव लड़ रहे मथुरा महतो को देखना होगा चेहरा? और क्या आंदोलनों से उपजे एक साधारण से लड़के को मिल सकेगा जनता का आशीर्वाद या फिर सिर्फ सोशल मीडिया सेंसन बनकर रह जाएंगे जयराम महतो?

इन सभी सवालों का देंगे जवाब और बताएंगे आपको चुनाव के मुहाने पर क्या है गिरिडीह का मूड और किस तरफ जाने वाला है यहां का चुनावी परिणाम?

गिरिडीह उन सीटों में से हैं, जहां एनडीए ने पिछली बार बड़े अंतर से चुनाव जीता था। मार्जिन था 22 प्रतिशत का यानी ढ़ाई लाख वोटों का। हालांकि तब मुकाबला दो लोगों के बीच था। इस बार मैदान में तीन धुरंधर है। दूसरी बात 2019 जैसा माहौल तो वाकई इस बार नहीं है। इसलिए जरूरी है कि गिरिडीह पर नए सिरे से विश्लेषण किया जाए।

गिरिडीह के छह विधानसभा

सबसे पहले हम आपको गिरिडीह के छह विधानसभाओं के बारे में बताते हैं। देखिए गिरिडीह, डुमरी और टुंडी में अभी झामुमो के विधायक हैं। बेरमो में कांग्रेस, गोमिया में आजसू और बाघमारा में भाजपा के विधायक हैं। इन सभी सीटों पर जगरनाथ महतो सीपी चौधरी से पीछे रहे थी। यहां कि इनमें से किसी विधानसभा में झामुमो 1 लाख का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। दूसरी तरफ आजसू को गिरिडीह को छोड़कर सभी पांच विधानसभाओं में 1 लाख से ऊपर वोट मिले थे। लेकिन यह तब थी, जब राज्य में भाजपा की सरकार थी। और इस साल प्रचंड मोदी लहर थी।

इस बार चूंकि सरकार बदल गई है, ऐसा अनुमान है कि स्थितियां भी बदलेंगी। यह तो तय है कि यह आंकड़ा रिपीट नहीं होने वाला है। गिरिडीह चूंकि शहरी सीट है, संभव है कि आजसू को वहां से बढ़त मिले, लेकिन अन्य विधानसभाओं में आजसू को पिछली बार से काफी लॉस होने वाला है।

यहां तक तो मामला ठीक है, लेकिन असली पेंच जातिगत आंकड़ों पर आकर फंसता है। क्योंकि जयराम की एंट्री ने नया समीकरण बना दिया है। कैसे, हम समझाते हैं। देखिए, गिरिडीह लोकसभा सीट में सबसे अधिक संख्या महतो जाति के है, टाइटल के आधार पर वे 15 फीसदी से अधिक हैं। और तीनों प्रत्याशी महतो जाति से हैं। महतो जाति के युवाओं के वोट का बड़ा हिस्सा तो जयराम को जा रहा है, कुछ क्षेत्र में महिलाएं भी जयराम को वोट कर रही हैं। लेकिन अन्य महतो वोट किसे वोट करेंगे, यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन असली खेल तो मुस्लिम मतदाता करने जा रहे हैं। जी हां, गिरिडीह में मुस्लिम मतदाता 17 प्रतिशत हैं। और वे न भाजपा की तरफ हैं न ही झामुमो की तरफ। ऐसी सूचनाएं हैं कि मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या जयराम को वोट कर रही है। और इसकी वजह है जयराम महतो का लगातार मुस्लिम मतदाताओं के बीच जाना और उन्हें यकीन दिलाना कि वे उनके हितों की रक्षा करेंगे।

इकलौती JLKM है, जिसने धनबाद से मुस्लिम नेता को खड़ा किया

आप गौर करें कि जब झारखंड की 14 सीटों पर किसी भी पार्टी ने एक भी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया है, तब इकलौती JLKM है, जिसने धनबाद से मुस्लिम नेता को खड़ा किया है। यह संदेश बड़ा है, और शायद असर भी बड़ा रहे। आप सोचिए कि 2 लाख 86 हजार वोटरों का अगर 60 प्रतिशत वोटर भी जयराम की तरफ आते हैं, तो वे जीत के लिए जरूरी आंकड़े का लगभग आधा छू लेंगे। और ऐसा इसलिए है कि गिरिडीह के मुस्लिम वोटरों के पास वाकई कोई बेहतर विकल्प नहीं है।

गिरिडीह में तीसरा बड़ा खेमा है आदिवासी वोटरों का

गिरिडीह में तीसरा बड़ा खेमा है आदिवासी वोटरों का। 15 प्रतिशत यानी ढ़ाई लाख वोटर। और जिस तरह मुस्लिम वोटरों का जयराम के साथ जाने की उम्मीदें हैं, उसी तरह इस बात की पूरी संभावना है कि आदिवासी झामुमो यानी मथुरा महतो के साथ जाएंगे। और इसके पीछे का आधार है परंपरागत वोटिंग पैटर्न और हेमंत के प्रति सहानुभूति। यानी इस समीकरण से तो जयराम और मथुरा महतो बराबर दिख रहे हैं। जयराम को 17 प्रतिशत मुस्लिमों का लगभग 60 प्रतिशत वोट और मथुरा महतो को 15 प्रतिशत आदिवासियों का लगभग 70-80 फीसदी वोट। बाकी मेरे हिसाब से दोनों को महतो वोटर बराबर ही मिलेंगे या थोड़ा बहुत अंतर आ सकता है।

ओबीसी, दलित और सवर्ण जातियां सीपी चौधरी के साथ

गिरिडीह में आजसू के प्रत्याशी सीपी चौधरी के पास बाकी दोनों की तरह किसी जाति या समुदाय विशेष का वोट तो नहीं है। यहां तक कि जो उनके कोर वोटर रहे हैं, यानी महतो, उसमें दो तरफ से सेंधमारी हो चुकी है। लेकिन जो अन्य 50 प्रतिशत वोटर हैं, जिनमें ओबीसी, दलित और सवर्ण जातियां आती हैं, उनका एक बड़ा हिस्सा जरूर सीपी चौधरी के साथ है। और इसका आधार है नरेंद्र मोदी। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पूरे गिरिडीह लोक सभा में सीपी चौधरी को लेकर जबरदस्त नाराजगी है। लेकिन फिर मैं कह रहा हूं कि वही नाराज लोग सीपी चौधरी को वोट करेंगे मोदी के नाम पर। आप इसे जिस भी तरह से देखें, लेकिन इसका फायदा सीपी चौधरी को मिल रहा है।

वो कौन सा फैक्टर है, जो गिरिडीह में जीत-हार का फैसला करेगा

तो फिर वो कौन सा फैक्टर है, जो गिरिडीह में जीत-हार का फैसला करेगा। वो फैक्टर है इन पांच दिनों में बदलता हुआ समीकरण। सच कहूं, तो दो चीजें हैं, जिसका बहुत असर देखने को मिल सकता है। पहला है नरेंद्र मोदी की रैली। और दूसरा है जयराम महतो और कल्पना सोरेन की जनसभाएं। लेकिन कल्पना सोरेन के भाषणों का असर सिर्फ आदिवासियों तक सीमित रहेगा, जो कि पहले से ही झामुमो के साथ हैं। वे नए वोटरों को अपने साथ जोड़ पाएंगी, ऐसा लगता नहीं है। जबकि जयराम इस काम को करने में सफल हो रहे हैं। दूसरी तरफ मोदी की रैली का भी प्रभाव रहेगा और माहौल काफी हद तक भाजपा के पक्ष में जा सकता है।

हम किसी तरह की भविष्यवाणी पर यकीन नहीं करते, लेकिन आंकड़े और समीकरण कह रहे हैं कि गिरिडीह में भाजपा को ज्यादा बड़ी चुनौती जयराम महतो दे रहे हैं। लेकिन यह अभी नहीं कहा जा सकता कि ये चुनौती एक दीवार बनकर भाजपा को रोक सकेगा या नहीं।

हम अपनी बात यहीं खत्म करते हैं। लेकिन आपको बता दें कि गिरिडीह में इस बार का चुनाव ऐतिहासिक होगा।

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