झारखंड की राजनीति में महिलाओं की कितनी है भागीदारी ?

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देश भर में चुनाव को लेकर माहौल बनने लगा है. पहले पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव और फिर लोकसभा का. अगले साल के अंत तक झारखंड में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं. इन चुनावों में अकसर जातियों के आधार पर प्रतिनिधित्व की बात होती है। किस जाति, धर्म, वर्ग के कितने नेताओं को टिकट मिली है, यह चर्चा सबसे महत्वपूर्ण होती है.लेकिन कभी भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर कोई बात नहीं होती. हजारों जातियों की जनसंख्या और उनके प्रभाव के आधार पर समीकरण बन जाते हैं, लेकिन सिर्फ दो जेंडर के बीच भी टिकट का बंटवारा अति पक्षपातपूर्ण होता है. इसमें ट्रांसजेंडर्स और क्वीर तो चर्चा से कोसो दूर है.

हाल में संसद में महिला आरक्षण बिल खूब चर्चा में रहा.लेकिन विडंबना देखिए कि राज्य के चुनाव में फिर से महिलाओं की हिस्सेदारी का सवाल ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा. आज हम आपको बताते हैं कि झारखंड की राजनीति में महिलाओं की क्या स्थिति है और उनकी कितनी भागीदारी है.
वर्तमान में झारखंड में 14 में से केवल 2 महिला सांसद हैं.उनमें से एक कोडरमा से सांसद अन्नपूर्णा देवी और दूसरी सिंहभूम से गीता कोड़ा हैं. यह स्थित पिछले 3 चुनावों में और गंभीर थी. 2014, 2009, और 2004 के लोकसभा चुनाव में झारखंड से एक भी महिला सांसद नहीं चुनी गई. इन तीनों चुनावों में झारखंड के 14 में 14 सीटों पर पुरुषों का ही कब्जा रहा.

न सिर्फ सांसदी, झारखंड में विधायिकी में भी महिलाओं की संख्या बेहद कम है। झारखंड में 2005 से 2019 के विधानसभा चुनाव में महिला विधायकों की भागीदारी महज 4 से 13 प्रतिशत तक ही रही. रिपोर्ट्स से प्राप्त आंकड़ों की बात करें तो 2005 के झारखंड विधानसभा चुनाव में 81 विधायकों में से केवल 4 महिलाएं अपनी जगह बना पाई. वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में झारखंड को 6 महिला विधायक मिली. इसी प्रकार 2014 के चुनाव में भी 6 महिला विधायक थी. 2019 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी जरूर थोड़ी बढ़ी. वर्तमान में महिला विधायकों की संख्या 12 है. लेकिन अब भी यह संख्या 81 विधायकों की तुलना में काफी कम है.

झारखंड के वर्तमान में कैबिनेट में कुल 11 मंत्री हैं, जिनमें से सिर्फ 2 महिला मंत्री है. शुरुआत में सिर्फ जोबा मांझी को कैबिनेट में जगह मिली थी, उन्हें महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग दिया है. वहीं शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के निधन के बाद उनकी पत्नी बेबी देवी को झारखंड कैबिनेट में मद्य निषेध मंत्री का जिम्मेवारी सौंपी गयी.

गौर करें तो झारखंड की राजनीति में महिलाओं की स्थिति बहुत प्रभावी नहीं है. जामा विधायक सीता सोरेन, झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, मनोहरपुर विधायक जोबा मांझी, मांडर विधायक शिल्पी नेहा तिर्की, डुमरी विधायक बेबी देवी और बड़काकाना से विधायक अंबा प्रसाद इत्यादि ऐसे नाम है, जिनको पति या पिता के उत्तराधिकार के तौर पर विधायक की कुर्सी मिली.यहां तक कि केंद्रीय मंत्री और राज्य से इकलौती सांसद भी पति के देहांत के बाद ही राजनीति में आईं. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि इनमें से कुछ महिला नेत्रियां शानदार काम कर रही हैं.

किसी भी समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए उनका राजनीतिक दखल जरूरी है. क्योंकि समाज के लगभग सभी पहलुओं पर राजनीति का प्रभाव रहता है.ऐसे में जरूरी है कि महिलाओं को उनका राजनितिक अधिकार मिले और उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो.

आइसलैंड का उदाहरण हमारे सामने है, जहां राजनीति में महिलाओं के आरक्षण, असमान वेतन और लिंग आधारित हिंसा को लेकर खुद प्रधानमंत्री कैटरीन भी प्रदर्शन में शामिल हो गई.जब दुनिया भर में बराबरी के लिए आंदोलन चल रहे हैं, झारखंड में यह चर्चा कम से कम शुरू तो होनी ही चाहिए.

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