झारखंड में कुड़मियों द्वारा लगातार एसटी में शामिल किए जाने की मांग की जा रही है. कुड़मी अपनी मांगों को लेकर बीते एक साल से रेल चक्का जाम कर रहे हैं. इस मामले में राज्य सरकार के तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है. वहीं केंद्र सरकार की तरफ से भी कुड़मियों की इस मांग को लेकर कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया जा रहा है.
बीते कल केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा मीडिया हाउस प्रभात खबर के कार्यालय पहुंचे और वहां उन्होंने पत्रकारों को सबोधित किया. अपने संबोधन में अर्जुन मुंडा ने पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए झारखंड में चल रही कुड़मियों की मांग पर अपनी प्रतिक्रिया दी. केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कुड़मियों के एसटी में शामिल होने की मांग को लेकर कहा कि- यह संवैधानिक मुद्दा है. इसकी अपनी औपचारिकताएं हैं. इसके आधार पर ही चीजों को देखा जाता है. इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं है. देश में कई संस्थाएं ऐसी हैं, जो स्वतंत्र रूप से काम करती हैं, जैसे चुनाव आयोग, सेंसस ऑफ इंडिया , न्यायपालिका आदि. इनकी अलग-अलग भूमिका है. ऐसे में हमें इन्हें उनके दायित्व पर छोड़ना चाहिए. फिलहाल केंद्र के पास कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने का कोई मामला लंबित नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने यह कहते हुए पत्र वापस ले लिया है कि इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है.
अर्जुन मुंडा ने एक बार फिर कुड़मियों की मांग का मामला राज्य सरकार के पाले में फेंक दिया है. वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है. इससे पहले भी अर्जुन मुंडा ने कुड़मियों की मांग पर इसी तरह का बयान देते हुए मामला राज्य सरकार के पाले में फेंका था. हालांकि कुड़मियों को एसटी में शामिल करना या नहीं करना इसकी शक्ति केंद्र के पास ही है. लेकिन केंद्र सरकार लगातार कुड़मियों की मांग से अपना पल्ला झाड़ते दिख रही है.
वहीं मंत्री ने झारखंड में सरना धर्म कोर्ड को लेकर भी बात कही, उन्होंने कहा कि- ट्राइबल की पहचान परंपरा और उसके आचरण से होती है, न कि सिर्फ धर्म से. देश में जनजातियों के 700 से अधिक समुदाय हैं. इनकी परंपरा व आचरण को परिभाषित किया गया है. इस तरह के विषय को सिर्फ एक प्रदेश से जोड़ कर देखना उचित नहीं है. सिर्फ झारखंड में ही ट्राइबल होते और यह विषय आता, तो निर्णय लिया जा सकता था. देश में ट्राइबल के 700 समूह हैं. सभी की अलग-अलग परंपराएं हैं. सभी को एक तरीके से धर्म के आधार पर जोड़ना सही नहीं है. यह न तो संवैधानिक होगा और न ही जनजातीय के हित में. इसके लिए देश में एक फोरम बना कर सारे ट्राइबल के हितों को ध्यान में रखते हुए समग्रता के साथ विचार करने की जरूरत है. यह मुद्दे राजनीतिक नहीं है. सभी की धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन इसे सिर्फ इसी से जोड़ कर नहीं देख सकते हैं. हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि इस मांग के पीछे उनकी मंशा क्या है. वे आदिवसियों को एकजुट देखता चाहते हैं कि नहीं? इस विषय पर वृहत फोरम पर बात करनी चाहिए. सिर्फ एक राज्य की बात करना सही नहीं होगा.