साल 1967, देश के 16 राज्यों में चुनाव हुए , जिसमे से सिर्फ एक राज्य में कांग्रेस की सरकार बन पाई. इसका कारण था, कांग्रेस के विधायक, जिन्होंने अचानक कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर ली थी. 1967 में विधान सभा के 1900 सदस्य और संसद के 142 सदस्यों ने अपनी पार्टी बदली थी. इतना ही नहीं हद तो तब हो गई जब इनमें हरियाणा के एक विधायक गया राम ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी.
फिर क्या पद और पैसे के लालच में होने वाले इस दल-बदल यानी अगर कोई विधायक या सांसद पद या अन्य किसी प्रलोभन में अचानक अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में चला जाता है, इसे दल बदल कहा जाता है. इसे रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में दल-बदल कानून लेकर आई. इसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वॉइन कर लेता है तो वो दल-बदल कानून के तहत सदन से उसकी सदस्यता जा सकती है. दल-बदल विरोधी विधेयक 1985 में संसद में पारित किया गया था और यह 18 मार्च 1985 को लागू हुआ. दल-बदल विरोधी कानून का प्रावधान भारतीय संविधान की 10 वीं अनुसूची में दिया गया है और इसे 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा सम्मिलित किया गया है.
दरअसल झारखंड के एकलौते एनसीपी विधायक कमलेश सिंह पर एनसीपी शरद पवार गुट के महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र अव्हाड ने कमलेश सिंह के खिलाफ झारखंड विधानसभा के स्पीकर के पास दल-बदल यानी शरद पवाप की पार्टी से अजित पवार की पार्टी में जाने की शिकायत की थी. इसी शिकायत के आलोक में स्पीकर का ट्रिब्यूनल इस मामले में 12 अक्टूबर को पहली सुनवाई करेगा. इसकी सूचना कमलेश सिंह के अलावा शिकायतकर्ता को भी भेज दी गई है. स्पीकर ट्रिब्यूनल ने दोनों पक्षों को पहली सुनवाई में उपस्थित होकर मौखिक या लिखित रूप में स्वयं या अपने अधिवक्ता के माध्यम से जवाब देने को कहा है.
वहीं अब झारखंड के राजनीति के इतिहास में एक नजर डालें तो झारखंड में दल बदल का यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि अब तक कई विधायकों पर दल बदल का आरोप लग चुका है. जिसमें 10 विधायकों ने स्वयं ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया और 10 विधायकों की सदस्यता विधानसभा स्पीकर के द्वारा रद्द की गई है.
रिपोर्ट्स की मानें तो झारखंड की पहली विधानसभा यानी साल 2000 से 2004 तक में 4 विधायकों पर दल बदल का मामला चला है. जिसमें समता पार्टी के विधायक लालचंद महतो, रामचंद्र केसरी, मधु सिंह और बच्चा सिंह पर राजद में शामिल होने के बाद दल-बदल मामले के तहत कार्रवाई के लिए आवेदन दिया गया था. 31 दिसंबर 2004 को विधायक बच्चा सिंह ने झारखंड विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. लेकिन बाकी तीन विधायकों की सदस्यता स्पीकर ने 03 जनवरी 2005 को रद्द कर दी.
वहीं दूसरी झारखंड विधानसभा 2005 से 2009 में विधानसभा में दल बदल की 13 शिकायतें आईं. इनमें से विष्णु प्रसाद भैया, प्रदीप यादव और स्टीफन मरांडी ने स्पीकर के फैसले के पहले ही त्याग पत्र दे दिया. जबकि स्पीकर ने थॉमस हांसदा, रवींद्र राय, कुंती देवी, मनोहर टेकरीवाल, एनोस एक्का समेत 10 विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी.
तीसरी झारखंड विधानसभा यानी 2010 से 2014 तक में 6 विधायकों निजामुद्दीन अंसारी, समरेश सिंह, निर्भय कुमार शाहाबादी, जय प्रकाश भोक्ता. फूलचंद मंडल और साइमन मरांडी पर दल बदल का मामला हुआ था. इस मामले में सभी 6 विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया था.
वहीं चौथे विधानसभा यानी 2015 से 2019 के दौरान झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर जीतकर भाजपा में शामिल हुए 6 विधायक नवीन जयसवाल, गणेश गंझू,अमर कुमार बाउरी,आलोक कुमार चौरसिया,रणधीर कुमार सिंह और जानकी प्रसाद के विरुद्ध दल-बदल का मामला चला .लेकिन लंबी सुनवाई के बाद न्यायाधिकरण ने मामले को खारिज कर दिया और इनकी सदस्यता चली गई.
वहीं फिलहाल पांचवीं विधानसभा यानी 2019 से अब तक में बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव, बंधु तिर्की, डॉ इरफान अंसारी , नमन विक्सल कोंगाडी,और राजेश कच्छप के विरुद्ध दल –बदल का मामला चल रहा है. इसमें बाबूलाल मरांडी के विरुद्ध सुनवाई पूरी हो चुकी है. जबकि बंधु तिर्की की सदस्यता समाप्त हो चुकी है, वहीं डॉ इरफान अंसारी , नमन विक्सल कोंगाडी,और राजेश कच्छप के के विरुद्ध सुनवाई चल रही है.
बता दें दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं. मूल प्रावधानों के तहत अध्यक्ष के किसी निर्णय को न्यायालय की समीक्षा से बाहर रखा गया और किसी न्यायालय को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं दिया गया. अब 12 अक्टूबर को सुनवाई के बाद ही यह तय होगा कि विधायक कमलेश सिंह की विधायिकी बनी रहेगी या उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.