Jama विधानसभा सीट पर BJP से Sita Soren नहीं बल्कि ये हैं दावेदार, 15 सालों बाद यहां खिल पाएगा कमल ?

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क्या जामा विधानसभा सीट पर 15 सालों के बाद खिलने वाला है कमल, क्या जामा से झामुमो का किला गिराने में सफल होगी भाजपा-आजसू, क्या इस बार जामा से हारने वाली है झारखंड मुक्ति मोर्चा.

जामा विधानसभा सीट पर साल 2009 से 2019 तक यानी 3 टर्म से झारखंमुक्ति मोर्चा का ही कब्जा रहा है. सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन 3 बार से यहां विधायक रही हैं. लेकिन अब सीता सोरेन भाजपा का दामन थाम चुकी हैं. जामा विधानसभा में झामुमो के लिए प्रत्याशी चयन भी बड़ी चुनौती होने वाली है.

हालांकि हम अपने सीरिज में आपके साथ वैसी सीटों की चर्चा कर रहे हैं जहां 2019 के चुनाव में आजसू और भाजपा अगर एक साथ चुनावी मैदान में होते तो नतीजे कुछ और भी हो सकते थे. हालांकि अब 2024 में भाजपा आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली है. इससे पहले हम आपके साथ 2 सीटों के बारे में चर्चा कर चुके हैं, इसी सीरिज में आगे बढ़ते हुए आज हम बात करेंगे दुमका जिले की जामा विधानसभा सीट की.
नजर डालते हैं 2019 के आंकड़ों पर.

चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जामा में झामुमो की प्रत्याशी सीता सोरेन को 60 हजार 925 वोट मिले थे. वहीं भाजपा के सुरेश मुर्मू को 58 हजार 499 वोट मिले. आजसू प्रत्याशी स्टेफी टेरेसा मुर्मू को 3 हजार 351 वोट मिले थे. यानी भाजपा और आजसू के वोट को मिला दिया जाए इनका टोटल 61 हजार 850 वोट हो जाता है. जो झामुमो के कुल वोट से 925 अधिक है. यानी अगर भाजपा और आजसू एक साथ चुनावी मैदान में होते तो एनडीए को जामा को लगभग 1 हजार वोट की लीड मिल जाती. गांडेय और ईचागढ़ की तरह जामा भी झामुमो की हाथ से निकल कर भाजपा की झोली में चली जाती.

2019 में गघुबर सरकार की एंटी एंकंबेंसी थी उसके बावजूद झारखंड की 13 सीटों पर भाजपा आजसू एक होते सरकार बनाने में सफल हो सकते हैं.

अब सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने से जामा में स्थितियां बदल सकती हैं. लेकिन इस बार चर्चाएं तेज हैं कि जामा से सीता सोरेन की बड़ी बेटी जयश्री चुनाव लड़ना चाहती हैं.

जयश्री ने वकालत की पढ़ाई की है. ओर वे राजनीति में भी काफी दिलचस्पी रखती है. जयश्री सोरेन डीएसएस यानी दुर्गा सोरेन सेना की अध्यक्ष है. 15 अक्टूबर 2021 को सीता सोरेन की दो बेटियां जयश्री और राजश्री सोरेन ने मिलकर अपने पिता के नाम पर दुर्गा सोरेन सेना का गठन किया था. सीता सोरेन ने झामुमो छोड़ने से पहले ही जयश्री सोरेन के लिए जामा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था. उन्होने पार्टी छोड़ने से पहले यह भी कहा था कि आने वाले समय में उनकी बेटियां राजनीति में प्रवेश कर सकती है. दुमका से चुनाव हारने के बाद बीते 18 जून को सीता सोरेन ने प्रेस कांफ्रेस कर पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह एलान कर दिया था कि उनकी बेटी जयश्री सोरेन इस बार जामा विधानसभा से चुनाव लड़ने वाली है. हालांकि भाजपा ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

वहीं झामुमो से जामा सीट पर कौन होगा चुनावी मैदान में इस पर आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है.
जामा सीट के इतिहास पर एक नजर डाले तो

2005 में जामा से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन झामुमो के दुर्गा सोरेन को हरा कर विधानसभा पहुंचे.

2009 के विधानसभा चुनाव में सीता सोरेन ने भाजपा से हार का बदला लिया 38 हजार 505 वोटों के साथ विजयी हुई.

2014 और 2019 में सीता सोरेन के जीत का सिलसिला जारी रहा. सीता सोरेन तीन टर्म लगातार झामुमो को टिकट से जामा की विधायक बनी.

अब 2024 में जामा से किसकी जीत होगी. झामुमो का झंडा बुलंद रहेगा या इस बार यहां से एनडीए बाजी मार जाएगी ये तो वक्त आने पर ही पता चलेगा.

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