भाजपा आलाकमान ने जैसे ही दीपक प्रकाश को हटाकर बाबूलाल मरांडी को झारखंड प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी. इसके बाद से ही सभी अखबारों से लेकर न्यूज चैनलों तक में झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव की बातें सामने आने लगी. ऐसे में हम आपको बताएंगे कि आखिर क्या सच में झारखंड कांग्रेस अपने प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को हटाने वाली है. और इसके पीछे की वजहें क्या है और उन संभावित नामों पर भी बात करेंगे जिसके प्रदेश अध्यक्ष बनने की चर्चा सबसे ज्यादा है.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के हटाने और कांग्रेस के उन संभावित नामों पर चर्चा से पहले हम बाबूलाल मरांडी के राजनीतिक सफर के बारे में थोड़ा जान लेते हैं. बाबूलाल मरांडी संताल आदिवासी समाज से आते हैं. संताल की आबादी झारखंड समेत सीमावर्ती इलाकों में अच्छी खासी है. ऐसे में ये जानना भी बेहद जरूरी है कि बाबूलाल केवल आदिवासी नेता ही नहीं हैं बल्कि उनकी जमीनी पकड़ भी काफी अच्छी है. इसके अलावा बाबूलाल मरांडी, अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके हैं. वहीं, बिहार से विभाजित होने के बाद जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन हुआ तो बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए. हालांकि 2003 में इनके हाथ से सत्ता निकल गई. बाद में इनका भाजपा से मोहभंग हो गया. भाजपा से रिश्ता तोड़ने के बाद मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा ( प्रजातांत्रिक) का गठन किया. लगभग 14 साल तक वे भाजपा से अलग रहे. झारखंड की राजनीति पर इनकी गहरी पकड़ है. 2019 में विधानसभा चुनाव के बाद इन्होंने अपने दल का भाजपा में विलय कर दिया. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि भाजपा ने इतने कद्दावर आदिवासी नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपकर बड़ा दांव चला है तो कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल भी बाबूलाल मरांडी जैसे ही अपने पार्टी के कद्दावर नेता पर ही दांव लगाने की फिराख में होगी.
ऐसे में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के उन संभावित उम्मीदवारों के जिक्र से पहले कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के बारे में जान लेते हैं. राजेश ठाकुर को 25 अगस्त, 2021 में प्रदेश की कमान सौंपी गई थी. अब लगभग जब उनके कार्यकाल को दो साल पूरे होने वाले हैं तब उन्हें हटाने की बात सामने आ रही है. ऐसे में हमें ये भी देखना जरूरी होगा कि झारखंड में कांग्रेस पिछले कुछ सालों से अपने प्रदेश अध्यक्षों का बदलाव कितने सालों में करती है. डॉ. अजय से लेकर डॉ रामेश्वर उरांव तक की बात करें तो कांग्रेस ने इन्हें लगभग दो सालों तक ही कार्यकाल दिया है. ऐसे में राजेश ठाकुर को हटाने की पहली वजह ये भी है. वहीं, अगर दूसरी वजह की बात करें तो कांग्रेस झारखंड में भाजपा की तरह ही किसी बड़े आदिवासी चेहरे को सामने ला सकती है. ऐसे में पहले उन संभावित उम्मीदवारों के नाम जान लेते हैं जो झारखंड कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं. उसके बाद उनकी राजनीतिक जीवन पर एक नजर डालेंगे. अध्यक्ष की रेस में पूर्व विधायक कालीचरण मुंडा, पर्वू मंत्री बंधु तिर्की, सांसद गीता कोड़ा, पूर्व सांसद प्रदीप कुमार बलमुचू, सुखदेव भगत और सुबोधकांत सहाय के नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है.
ऐसे में शुरूआत सुखदेव भगत से करते हैं. सुखदेव भगत के पास झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व का अनुभव है. उन्होंने साढ़े 4 साल तक मई 2013 से लेकर नवंबर 2017 तक प्रदेश का नेतृत्व किया है. ऐसे में उनके पास संगठन चलाने का अनुभव भी है. वो आदिवासी समाज से भी आते है. ऐसे में उनका नाम भी काफी प्रमुख माना जा रहा है. हांलाकि, सुखदेव भगत का भी कांग्रेस से मोह भंग हो चुका है. साल 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले वो भाजपा में शामिल हुए थे और लोहरदगा सीट से चुनाव लड़े. हालांकि, उन्हें हार का साना करना पड़ा. जिसके लगभग दो साल बाद सुखदेव भगत ने वापस कांग्रेस ज्वाइन की.
अब बात झारखंड के पूर्व मंत्री बंधु तिर्की की करते हैं. बंधु तिर्की ट्राइबल क्रिसचन समाज से आते हैं. वहीं, अगर बात बंधु तिर्की के राजनीतिक सफर की करें तो वो पहली बार 2000 में लालू यादव की पार्टी आरजेडी के टिकट पर मांडर से चुनाव लड़े और हार गए. 2005 में वह यूजीडीपी पार्टी से चुनाव लड़े और मांडर से पहली बार विधायक बने़. इसके बाद वह 2009 में झारखंड जनाधिकार पार्टी से चुनाव लड़े और जीते. उसके बाद साल 2014 में भाजपा के गंगोत्री कुजूर से चुनाव हार गये. इसके बाद 2019 में तीसरी बार चुनाव जीत कर विधायक बने. वहीं, आय से अधिक संपत्ति के मामले में सजा के बाद बंधु तिर्की के राजनीतिक कैरियर को फिलहाल विराम लग गया है. ऐसे में पार्टी उन्हें भी संगठन की जिम्मेदारी सौंप सकती है.
अब बाद सिंहभूम लोकसभा सीट से सांसद और झारखंड प्रदेश की इकलौती कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा की करते हैं. गीता कोड़ा, झारखंड की पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी है. इसके अलावा उन्होंने 2019 में सिंहभूम लोकसभा सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा को हराया था. ऐसे में कांग्रेस एक आदिवासी महिला को आगे कर महिला और आदिवासी वोटरों को अपने पाले में लाने की सोच सकती है.
अब बात करते हैं इस रेस में शामिल पूर्व सांसद प्रदीप कुमार बलमुचू की. उनके नाम की भी चर्चा काफी हो रही है. ऐसे में उनके राजनीतिक करियर के बारे में जानते हैं. झारखंड के कद्दावार कांग्रेस नेता रहे बलमुचू 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले आजसू में शामिल होकर घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. चुनाव हारने के बाद झारखंड की राजनीति में अलग-थलग पड़े थे. जिसके बाद से वो कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे. जिसके बाद उन्होंने 31 जनवरी 2022 को सुखदेव ङगत के साथ ही कांग्रेस में वापसी की थी.
अब बात सुबोध कांत सहाय के राजनीतिक जीवन की करते हैं. उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन संपूर्ण क्रांति (संपूर्ण क्रांति) आंदोलन के दौरान डोरंडा (रांची) से शुरू किया, जिसे तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन के रूप में जाना जाता है. बाद में, वह पूर्व पीएम चन्द्रशेखर के साथ भी जुड़े, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी वफादारी कांग्रेस में बदल ली. उन्हें लगातार तीन बार बिहार विधान सभा का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया. 1989 में, वह रांची निर्वाचन क्षेत्र से नौवीं लोकसभा के लिए चुने गए और अपने दूसरे कार्यकाल के लिए 14वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए. उन्होंने दो साल तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सचिव और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य के प्रभारी का पद भी संभाला. ऐसे में सुबोधकांत कांग्रेस के काफी पुराने नेताओं में से एक है. पार्टी उनपर भी दांल लगा सकती है.
अब बात आखिरी और सबसे ज्यादा चर्चा हो रहे चेहरे की करते हैं. आखिरी नाम तमाड़ के पूर्व विधायक कालीचरण मुंडा का है. कालीचरण मुंडा की पकड़ रांची, बुंडू और तमाड़ जैसे इलाकों में अच्छी खासी है. इसोके अलावा वो आदिवासी समाज से भी आते हैं तो कांग्रेस को उनपर दांव खेलने में कोई परहेज नहीं होगी.