“झारखंड में सिर्फ झारखंडियों को मिलेगी नौकरी” : हेमंत सोरेन

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अब झारखंड में सिर्फ झारखंडियों को ही नौकरी मिलेगा. जी हां बिल्कुल सही सुना आपने , मुख्यमंत्री ने झारखंड विधानसभा में राज्य के युवाओं को रोजगार की गारंटी देते हुए एक बड़ा ऐलान कर दिया है कि अब झारखंड में किसी बाहरी व्यक्ति को रोजगार नहीं दिया जाएगा. बीते कल यानी 4 अगस्त को झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र का अंतिम दिन था.सत्र के समापन भाषण में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के छात्र-छात्राओं के लिए बड़ी खुशखबरी का ऐलान किया है. मुख्यमंत्री ने समापन भाषण में ऐलान किया कि झारखंड में किसी बाहरी व्यक्ति को नौकरी नहीं देंगे. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में 1932 खतियान आधारित नियोजन नीति का भी जिक्र किया, उन्होंने कहा कि 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति को हमने विधानसभा से पास कर राजभवन भेजा था,उसे उलझाकर रख दिया गया, लेकिन हमारा प्रयास कम नहीं हुआ है, विश्वास रखें, हम इसे फिर से लाएंगे.

मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में यह भी कहा कि राज्य में एसटी-एससी और ओबीसी को 50% और ईडब्ल्यूएस के लिए 10% नौकरियां आरक्षित हैं. ऐसा नहीं होगा कि शेष 40% में सभी बाहरी ही नौकरी पाएँगे . उन्होंने पूर्व की रघुवर सरकार से तुलना करते हुए कहा कि पूर्व की सरकार में तो 75% तक बाहरी नौकरी पा रहे थे. अभी भी 15-20% बाहरी राज्य की नौकरियों में अपनी जगह बना लेते हैं लेकिन हम इसे भी जल्दी ही जीरो कर देंगे.

सीएम सोरेन ने कहा-1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति और पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण वाले विधेयक को पारित कराकर राजभवन भेजा गया था, जहां राज्यपाल ने एन विधेयकों को लटका दिया. मुझे पूरा यकीन है कि संविधान के आर्टिकल 200 के तहत राज्यपाल द्वारा संदेश के साथ ये बिल विधानसभा को नहीं भेजना साजिश का हिस्सा है. ताकि हम ये दोनों विधेयक फिर विधानसभा से पारित कराकर उसे राज्यपाल को न भेज पाएं.

बता दें संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल की शक्तियों की बात कहता है. अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यों की विधायिका द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा. राज्यपाल विधेयक पर अपनी सम्मति दे सकते हैं या इसे अस्वीकृत कर सकते हैं. राज्यपाल इस विधेयक को संदेश के साथ या बिना संदेश के पुनर्विचार किए ही विधायिका को वापस भेज सकते हैं, पर पुनर्विचार के बाद दोबारा विधेयक आ जाने पर वह इसे अस्वीकृत नहीं कर सकते. इसके अतिरिक्त वह विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भी भेज सकते हैं.

जहां एक तरफ राज्य सरकार कह रही है कि सिर्फ झारखंडियों को नौकरी दी जाएगी और एक तरफ सरकार कह रही है कि 60-40 वाली नियोजन नीति पर ही नियुक्तियां की जा रही है. बता दें राज्य में इस समय सहायक आचार्य नियुक्ति के साथ-साथ आठ विभिन्न पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है, इसके तहत 35 हजार से अधिक पदों पर बहाली होगी, इन बहालियों को लेकर विपक्ष सरकार पर हमेशा हमलावार रहा है. नियोजन नीति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं परीक्षार्थियों के साथ-साथ भाजपा ने भी इस पर सवाल खड़ा किए हैं कि आखिर किस नियोजन नीति के तहत राज्य सरकार नियुक्तियां कर रही है. बता दें मानसून सत्र में नियोजन नीति को सदन में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने सरकार से सवाल किया कि राज्य सरकार आखिर किस नियमावली पर नियोजन कर रही है.

इस पर सरकार के संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने सरकार के तरफ से जवाब में कहा कि जो भी नियुक्तियां हो रही हैं, जिनकी प्रक्रिया चल रही है वो सभी 2019 के नीति से ही प्रभावित होंगी. सरकार ने 60-40 के जरिए नियोजन की बात कही है.मंत्री आलमगीर आलम ने अपने जवाब में कहा कि 60 प्रतिशत सीट झारखंड के स्थानीयों के लिए आरक्षित होगी और 40 प्रतिशत बहाली मेरिट के आधार पर होगी.

अगर बात करें झारखंड की स्थानीय और नियोजन नीति की तो राज्य में स्थानीय और नियोजन नीति हमेशा विवादों में रहा है. 23 सालों के झारखंड में अब तक स्थानीय और नियोजन नीति एक निश्चित पैमाना नहीं बनाया जा सका है. 23 सालों में तीन बार स्थानीय और नियोजन नीति बनाई गई और रद्द हुई हैं. सबसे पहले राज्य बनने के बाद राज्य के पहले बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर राज्य में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की. स्थानीय और नियोजन नीति में खामियों की वजह से झारखंड हाई कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. जिसके बाद साल 2016 में रघुवर सरकार ने फिर से नियोजन नीति लेकर आई. जिसके तहत राज्य के 13 जिलों को अनुसूचित क्षेत्र और 11 जिलों को गैर-अनुसूचित श्रेणी में बांटकर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की. यह नियोजन नीति भी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रद्द कर दी गयी.फिर साल 2019 में हेमंत सरकार ने रघुवर शासनकाल में बनी नियोजन नीति को खारिज करते हुए वर्ष 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाई. जिसके तहत झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास की अनिवार्यता और प्रत्येक जिला में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल होने के बाद कोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया.

नियोजन नीति की लड़ाई राज्य में लंबे समय से चल रही है. अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का झारखंडियों को नौकरी देने के पीछे क्या मास्टरप्लान है और यह कितना सकसेस फुल हो पाता है.

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