भारत की नई संसद का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई यानी विनायक दामोदर सावरकर की जयंती के दिन करेंगे. हालांकि इस तारीख को लेकर देश की विपक्षी दलों में घमासान मचा हुआ है. और इसी घमासान के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कल यानी बीते बुधवार एक ऐसी अनोखी चीज के बारे में देश को बताया जिसके बारे में देश के अधिकतर विद्वानों तक को कोई जानकारी नहीं थी. अमित शाह ने कल भारतीय परंपरा से जुड़ी उस अनमोल चीज को संसद भवन में स्थापित करने की बात कही है. शाह ने कल प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि आजादी के बाद भुला दिए गए सेंगोल की भारत के नए संसद भवन में स्थापना होगी. अमित शाह द्वारा दी गई जानकारी के बाद तो मानो लोग इंटरनेट पर सेंगोल के इतिहास को ही खंगालने लगे. पर सेंगोल होता क्या है, सेंगोल शब्द का मतलब आखिर है क्या . देश के पहले प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहर लाल नेहरु को अंग्रजो द्वारा सत्ता हस्तांतरण के चिन्ह के तौर पर दिया गया सेंगोल इलाहाबाद में अब त कहां रखा था.
सेंगोल शब्द संस्कृत के सुंक शब्द से बना है. जिसका अर्थ होता शंख. शंख को राज्य के विस्तार, प्रभाव और संप्रभुता से भी जोड़ कर देखा जाता है. ठीक इसी प्रकार परंपराओं में सेंगोल भी राज्य की संप्रभुता, प्रभाव, विस्तार और पौरुष के प्रतीक के रुप में वर्णित है. परंपरा में सेंगोल को राजदण्ड कहा जाता है, जिसे राजपुरोहितों के द्वारा यज्ञोपवित संस्कार के दौरान राजा को दिया जाता था. रिपोर्ट्स यह भी बताते हैं कि सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से निकला है,जिसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा.
इसके पीछे का इतिहास क्या है
गृह मंत्री अमित शाह ने सेंगोल के इतिहास की जानकारी देते बताया कि- 14 अगस्त 1947 को 10 बजकर 45 मिनट के करीब तत्कालिन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया था। जानकारों कि माने तो यह संगोल औपनिवेशिक अंग्रेजी हुकूमतों से इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था.
इतिहास बताते हैं कि भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरु को पीएम बनने के कुछ समय पहले पूछा कि आप देश की आजादी को किसी खास तरह के प्रतीक के जरिए स्वीकार करना चाहते हैं. इस सवाल के जवाब के लिए पंडित नेहरु ने राजगोपालाचारी (राजाजी) से सलाह मांगी. मालूम हो कि राजगोपालाचारी मद्रास के मुख्यमंत्री रह चुके थे और उन्हें परंपराओं की विशेष पहचान भी थी. भारतीय परंपराओं पर गहन जानकारी रखने वाले राजगोपालाचारी ने पंडित नेहरु को चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया। दरअसल, चोल वंश में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपते वक्त शीर्ष राजपुरोहितों द्वारा आशीर्वाद दिया जाता था जिसमें उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण किया जाता था. चोल काल में सेंगोल को अधिकार और शक्ति का प्रतीक माना जाता था. राजाजी यानी राजगोपालाचारी ने नेहरु जी से कहा कि –आपके प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण से पहले, वायसराय माउंटबेटेन आपको यह राजदंड संगोल सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रुप में दे सकते हैं. राजाजी का सुझाव नेहरु जी को पसंद आया और वे राजी भी हो गए और राजाजी को इसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंप दी गई.
राजगोपालाचारी ने इस काम के लिए तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ, थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया. ये अधीनम मठ से जुड़े संस्थान हैं जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं. उनकी विशेषज्ञता और न्याय और धार्मिकता के सिद्धांतों के गहरे जुड़ाव को स्वीकार करते हुए, राजाजी ने सेंगोल की तैयारी में उनकी सहायता मांगी.
इस प्रकार तिरुवदुथुराई अधीनम के शीर्ष पुजारी की मदद से एक सेंगोल का निर्माण किया जिसकी लंबाई लगभग पांच फीट थी। विशेष रूप से, इसके शीर्ष पर स्थित नंदी प्रतीक था जो न्याय और निष्पक्षता को दर्शाता है। सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था, जिनको इस क्षेत्र में महारत हासिल थी। रिपोर्ट्स बताते हैं कि सेंगोल राजदंड आखिरी बार मुगल साम्राज्य द्वारा इस्तेमाल किया गया था. मुगल बादशाहों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेंगोल राजदंड का इस्तेमाल किया. इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (1600-1858) द्वारा भारत पर अपने अधिकार के प्रतीक के रूप सेनगोल राजदंड का भी उपयोग किया गया था.
बता दें आजादी के समारोह के बाद ये राजदंड इलाहाबाद यानि नेहरु के घर आनंद भवन में रखा गया था, जो अब संग्रहालय बन चुका है. संग्रहालय में इसे नेहरु की सोने की छड़ी के रूप में जाना जाता रहा है. हाल में ही चेन्नई की एक गोल्डन कोटिंग कंपनी ने इलाहाबाद संग्रहालय प्रशासन को इस स्टिक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी थी. कंपनी का दावा है कि यह कोई स्टिक नहीं बल्कि सत्ता हस्तांतरण का दंड है. गोल्डन ज्वेलरी कंपनी वीबीजे (वूम्मीदी बंगारू ज्वैलर्स) का दावा है कि 1947 में उनके वंशजों ने ही इस राजदंड को अंतिम वायसराय के आग्रह पर बनाया था. तो ये थी भारत के नए संसद भवन में लगने वाली उस सेंगोल की कहानी जिसे नेहरु ने अंग्रेजो से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था.