जयंती विशेष पर जाने जयपाल सिंह मुंडा से जुड़े कुछ अनछूएं पहलुंओं के बारे

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हम आदिवासियों में जाति, रंग, अमीरी-गरीबी या धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता. आपको हमसे लोकतंत्र सीखना चाहिए. हमको किसी से सीखने की जरूरत नहीं.” यह बात जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान निर्माण के समय संविधान सभा में कही थी. और आज उनके जंयती पर हम उनसे जुड़े कुछ अनछूएं पहलुओं के बारे..

आज मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की 121वीं जयंती है. आज के दिन हीं यानी 3 जनवरी 1903 को खूंटी जिले के एक छोटे से कस्बे में उनका जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम अमरू पहान और माता का नाम राधामणी था. जयपाल सिंह मुंडा बचपन से ही खेल के क्षेत्र में अधिक दिलचस्पी रखते थे. उनका बचपन का नाम “प्रमोद पाहन” था, और जब वो स्कूली शिक्षा लेने के लिए अपना दाखिला लेने स्कूल पहुंचे तब उनका नाम प्रमोद पाहन से जयपाल सिंह मुंडा में बदल गया.
जयपाल सिंह मुंडा देश के संविधान निर्माण में आदिवासियों की लाखों आबादी में पहले ऐसे नेतृत्वकार्ता बने जिन्होने संविधान सभा में आदिवासीयों के हक के लिए उस वक्त निडरता से अपनी दहाड़ लगाई थी. और इस वजह से लोग उन्हे प्यार से मरंग गोमके कह कर पुकारने लगे. मरंग गोमके मुंडारी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है सर्वोच्च नेता. जयपाल सिंह मुंडा ने ही सबसे पहले झारखंड अलग राज्य कि परिकल्पना की थी. जिन्होने देश के लिए अपनी आई.सी.एस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी तक छोड़ दी.

बता दें कि मरांग गोमके गुलाम भारत में ब्रिटिश कंपनी में काम करने वाले पहले भारतीय थे. उन्होने अपनी कप्तानी से 1928 में देश को हॉकी में पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलाया था.
देश के पहले भारतीय आदिवासी थे जिन्होने ‘लो बिर सेंद्रा’ नाम से खुद की ऑटो बायोग्राफी लिखी थी. जिसे प्रभात खबर में 2004 में रश्मि कात्यायन द्वारा प्रकाशित किया गया था. भारत की देशी रियासत में विदेशी मंत्री का पद पाने वाले पहले भारतीय थे. जयपाल सिंह मुंडा ने ही 2 दिसंबर 1948 को संविधान से आदिवासी शब्द हटाने का विरोध किया था. सबसे खास बात तो यह है कि जयपाल सिंह मुंडा से पढ़ने के लिए कभी भारत के राजा रजवाड़े लालयित रहते थे.

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