वेश्यावृति कोई अपराध नहीं, एक वयस्क सेक्स वर्कर को बिना किसी कारण के हिरासत में रखना आर्टिकल-19 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. इस बात को मुंबई के सत्र न्यायालय ने अपने एक सुनवाई के दौरान कहा है. दरअसल, सत्र न्यायालय ने इस बात को तब कहा जब अदालत में पीआईटीए की धारा 17 (6) के तहत एक 37 वर्षीय महिला की अपील पर सुनवाई कर रही थी. उस अपील की अंतिम सुनवाई तक पीआर बॉन्ड निष्पादित कर महिला को रिहा करने का अनुरोध किया गया था.
बता दें कि 15 मार्च, 2023 को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने इस महिला को एक साल के लिए हिरासत में लेने का आदेश दिया था, लेकिन गिरफ्तार किए गए बाकी दो अन्य पीड़ितों को रिहा करने की अनुमति दे दी थी. दरअसल, 15 मार्च, 2023 को इस महिला की गिरफ्तारी हुई थी. जिसके बाद उसे नवजीवन महिला वस्तिगृह में एक साल तक रखने का आदेश गया था.
इस पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सीवी पाटिल ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि बिना उसके मर्जी के उस महिला को कोई भी सुधार गृह में रखना आर्टिकल-19 के तहत उसके हक का हनन है. जज ने सुनवाई के दौरान ये भी कहा कि इस महिला के दो बच्चे हैं. ऐसे में इस महिला को बिना मर्जी के सुधार गृह में रखना गलत होगा.
वहीं, सरकारी वकील के तरफ से यह दलील आया कि पीड़िता सिरियल ऑफेंडर हैं. पिछले दफा भांडुप पुलिस को ये लिखित में देने के बावजूद की ये वेस्यावृति में शामिल नहीं होगी, उसके बाद भी मुलुंड पुलिस द्वारा उसे फिर से सेक्स वर्क में लिप्त पाया गया है. इस पर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल जजमेंट को आधार बनाकर बताया गया कि उस केस में यौनकर्मियों के अधिकार पर चर्चा की गई थी और राज्य सरकार को सर्वेक्षण करने और सुरक्षात्मक घरों में उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में पाए गए वयस्क पीड़ितों को रिहा करने के निर्देश भी दिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौनकर्मी सामान सुरक्षा के हकदार हैं. स्वैच्छिक यौन संबंध बनाना अवैध नहीं है. किसी वैश्यालय पर छापा इसलिए छापा मारा जाता है, क्योंकि वैश्यालय चलाना गैर-कानूनी है. दूसरी तरफ पीड़िता के पति ने उसकी कस्टडी के लिए आवेदन दिया था. जिसे कोर्ट ने ठुकराते हुए कहा कि महिला वयस्क है और आर्टिकल-19 के तहत वो अपनी मर्जी से जहां जाना चाहती है, जा सकती है.