क्या आदिवासी समाज बिरसा मुंडा के विचारों से दूर होता जा रहा है ?

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ओ बिरसा, हमारी जमीन तिर रही है…

नौ जून, सुबह नौ बजे और साल 1900, रांची जेल. बिरसा की सांसें उखड़ गई थीं.बिरसा के शव को कोठरी से बाहर लाया गया. बिरसा के निधन की सूचना पर जेल में हंगामा होने लगा. जेल में बंद बिरसा के सभी अनुयायियों को बुलाया गया कि वे शव की पहचान कर लें, लेकिन डर से कोई भी नहीं आया. रांची जेल अधीक्षक ने 9 जून की शाम पांच बजे अंत्य परीक्षण किया और कोकर स्थित डिस्टिलरी पुल के पास रात में उनका अंतिम संस्कार जेल प्रशासन ने कर दिया. 25 साल की उम्र में बिरसा नश्वर दुनिया को छोड़ गए और छोड़ गए एक प्रखर आंदोलन. इस आंदोलन का ही परिणाम था तब 1908 में छोटानागपुर टीनेंसी एक्ट अस्तित्व में आया.

3 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा गिरफ्तार कर लिए गए थे. पुलिस उनके अनुयायियों की धर पकड़ कर रही थी. जब वह जेल में बंद थे, उस समय उनके 400 अनुयायी बंद थे. 20 मई 1900 को पहली बार तबीयत खराब हुई. इसके बाद धीरे-धीरे खराब होती गई. बीच में कुछ सुधार हुआ लेकिन अंतत: मौत गले पड़ गई. बिरसा मुंडा के आंदोलन से अंग्रेजी सरकार त्रस्त हो गई थी. तरह-तरह इनाम और प्रलोभन से वह इस आंदोलन को कुचल देना चाहती थी. इनाम के लोभ में ही बिरसा मुंडा को पकड़वा दिया गया. बिरसा के बलिदान से एक आंदोलन और एक युग का अंत हो गया.

अपनी छोटी सी उम्र में बिरसा मुंडा बड़े काम कर गए.अपने आंदोलन को एक धार देने के लिए अलग पंथ चलाया-बिरसाइत पंथ. आज कुछ हजार लोग ही बचे हुए हैं. वह केवल जल, जंगल, जमीन की लड़ाई ही नहीं चाहते थे. वह अपने समाज के भीतर सुधार भी चाहते थे. एक गीत में कहा गया है-बिरसा का आदेश है कि हड़िया और शराब न पियो…इससे हमारी जमीन हमने छिन जाती है. भात से बनी हंड़ियां महकती है…शरीर और जीवन क्षीण करती है…तुम्हारा परिवार भूख से तड़पता है, तुम्हारे बच्चे रो-रोकर जान देते हैं. पर, क्या 122 साल बाद भी आदिवासी समाज हंड़िया से मुक्त हो पाया है? आज भी जमीन हड़िया और शराब लील जा रही है. बिरसा मुंडा अपने समाज की कमजोरियों को दूर करना चाहते थे. बिरसाइत पंथ इसीलिए चलाया. पर, आज आदिवासी समाज खुद बिरसा के विचारों से दूर होता जा जा रहा है.आज शहर ही नहीं, देश में भी बिरसा की प्रतिमाएं लग रही हैं. जगहों-संस्थानों के नाम उनके नाम पर रखे जा रहे हैं. लेकिन जो मूल बात है, जो बिरसा के विचार थे, उससे हमने दूरी बना ली है. जयंती और पुण्यतिथि पर केवल पुष्पांजलि से हम बिरसा को जिंदा नहीं रख पाएंगे?

NOTE:वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजय कृष्ण के फेसबुक वॉल से

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