झारखंड के आईएएस आधिकारियों पर कुछ महीनों से ईडी की गाज गिर रही है. इसी कड़ी में बीते कल यानी 04 मई को आईएएस छवि रंजन को दूसरी बार पूछताछ के लिए ईडी दफ्तर बुलाया गया. जहां उनसे घंटों पूछताछ हुई, जिसके बाद रात के 9 बजकर 55 मिनट में उन्हें ईडी ने गिरफ्तार कर लिया. अब आज यानी 5 मई को ईडी के अधिकारी उन्हें ईडी की विशेष अदालत में पेश करेंगे और कोर्ट से पांच दिन की रिमांड की मांग करेंगे. ताकि उनसे सेना जमीन घोटाले मामले में और पूछताछ हो सके. मिली जानकारी के अनुसार ईडी छवि रंजन को लेकर कोर्ट के लिए थोड़ी देर में निकल सकती है.
पूरा मामला समझिए
13 अप्रैल की अहले सुबह झारखंड समेत कई राज्यों में ED की दबिश दी थी. ये कार्रवाई रांची के पूर्व डीसी और वर्तमान में समाज कल्याण विभाग के निदेशक IAS छवि रंजन के खिलाफ हुई थी. जमशेदपुर स्थित उनकी पत्नी लवली के घर के ठिकानों सहित कुल 22 ठिकानों पर ED की रेड चली थी. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक छवि रंजन के आावास पर इसलिए छापेमारी की जा रही थी क्योंकि जब रांची के बारियातू स्थित सेना की जमीन को गैरकानूनी तरीके से बेचा गया था तब वो रांची के डीसी थे. इस गैरकानूनी काम में इनकी संलिप्ता की बात सामने आई थी. ऐसे में यह छापेमारी उसी मामले को लेकर की गई थी. छवि रंजन के अलावा ईडी के निशाने पर कई जमीन कारोबारी भी हैं. कई जिलों के सीओ और जमीन कारोबारियों के खिलाफ भी छापेमारी हुई थी.
क्या है मामला
IAS छवि रंजन झारखंड कैडर के 2011 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। ये आईएस अपने कारनामों के कारण शुरू से ही विवादों में रहे हैं। 2011 में IAS बने। आइएएस में चयन के बाद उन्हें झारखंड कैडर मिला था। झारखंड में उनकी पहली पोस्टिंग चक्रधरपुर में SDO पद पर हुई थी। जानकारी के मुताबिक, जब छवि रंजन रांची के DC थे, तब उनके कार्यकाल में बड़े पैमाने पर फर्जी कागजात के आधार पर जमीन की खरीद-फरोख्त की गई। इनमें बरियातू स्थित सेना की जमीन भी शामिल थी। बता दें इस जमीन पर सेना का करीब 90 साल से कब्जा था, इसके बाद अचानक 2021 में प्रदीप बागची ने जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए जगतबंधु टी एस्टेट के डायरेक्टर दिलीप कुमार घोष को जमीन बेच दी। इस जमीन की सरकारी रेट 20 करोड़ 75 लाख 84200 रुपये थी, लेकिन बिक्री महज 7 करोड़ की दिखाई गई। उसमें भी महज 25 लाख रुपये ही प्रदीप बागची के खाते में गए, बाकी पैसे चेक के जरिए भुगतान की जानकारी डीडी 6888/2021 में दी गई। लेकिन जब ईडी ने चेक की जांच की तो पता चला कि खातों में पैसे पहुंचे ही नहीं। ईडी को पता चला कि चेक के भुगतान की गलत जानकारी डीडी में दी गई, ताकि खरीद-बिक्री सही लगे.