अगला महिना यानी नवंबर का महिना झारखंड के लिए बेहद ही खास होता है, खासकर 15 नवंबर. 15 नवंबर ही वह दिन है जब झारखंड को अलग राज्य की पहचान मिली थी, झारखंड अलग राज्य बना था. यह दिन इसलिए भी खास है क्योंकि 15 नवंबर को ही धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती है.
झारखंड में इस दिन अलग ही उत्साह होता है, रंगारंग कार्यक्रम होते हैं और राज्यवासियों को तरह तरह के योजनाओं का सौगात दी जाती है. और इस साल यह मौका और भी खास होने वाला है क्योंकि 15 नवंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड दौरे पर आएंगे. पीएम मोदी 15 नवंबर को बिरसा मुंडा के गांव उलिहातु जाकर उन्हें नमन करेंगे. हांलांकि राज्य सरकार के द्वारा इस कार्यक्रम की अब तक आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है.
हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि पीएम मोदी का यह झारखंड का दौरा आगामी चुनावों में झारखंड में भाजपा की स्थिति मजबूत करने में कारगार साबित हो सकता है. राजनीतिक दृष्टिकोण से पीएम मोदी का यह दौरा भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
राज्य सरकार के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री इस मौके पर जनजातीय समुदाय के लिए कई योजनाएं भी शुरू करने की घोषणा कर सकते हैं. यह भी कहा जा रहा है कि पीएम के झारखंड दौरे से न सिर्फ झारखंड केंद्रित योजनाओं का ऐलान कर सकते है बल्कि ओडिशा, छत्तीसगढ़, मप्र को भी कई सौगात दी जा सकती है.
झारखंड में फिलहाल एसटी सीट में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है. हालांकि झारखंड स्थापाना के बाद से ही भाजापा अधिक एसटी सीटों पर अपना कब्जा नहीं जमा पाई है. आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2000 का चुनाव एकीकृत बिहार के समय हुआ था. उस समय भाजपा को एसटी के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 12 सीटें मिलीं थी. फिर 2005 के चुनाव में यह संख्या 8 हो गयी. 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 7 एसटी सीटों पर जीत हासिल हुईं. 2014 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर 11 हो गयीं थी और 2019 के विधानसभा चुनाव में ये आंकड़े गिर कर केवल 2 पर आ गए.
ऐसे में भाजपा झारखंड में एसटी सीट पर अपनी पैठ जमाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने की तैयारी में हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम मोदी का बिरसा मुंडा की जयंती पर झारखंड दौरे पर आना एसटी वोट बैंक पर भाजपा की पकड़ बनने की रणनीति में शामिल हो सकता है.
झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं. जिनमें 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं जिसमें संताल परगना में 7, कोल्हान में 9, दक्षिणी छोटानागपुर में 11 और पलामू में एक सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरिक्षित हैं. झारखंड में इन सीटों पर अलग अलग पार्टियों का दबदबा है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने संताल परगना को अपना गढ़ बना लिया है और लगातार सीटें जीत रहा है. झामुमो ने पिछले दो चुनाव में अपना और विस्तार कर कोल्हान और दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों पर भी कब्जा कर लिया. कांग्रेस को भी दक्षिणी छोटानागपुर, कोल्हान और पलामू मिलाकर छह सीटें मिलीं थी.
भाजपा को 2019 के विधानसभा चुनाव में मात्र 25 सीटें हासिल हुईं थीं. इनमें सर्वाधिक नुकसान अनुसूचित जनजाति की सीटों का हुआ था. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से भाजपा को मात्र दो सीटें (तोरपा और खूंटी) मिली थीं.और यह झारखंड में भाजपा की हार की यह बड़ी वजह बनी.
भाजपा को झारखंड में फिर से सत्ता तक पहुंचने के लिए जनजातीय सीटों पर कब्जा करना एक बड़ी चुनौती होगी. लेकिन 2024 के चुनाव में भाजपा पूरी कोशिश में है कि अधिक से अधिक एटसी सीटों पर अपनी जगह बना पाए.