झारखंड में आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा तरह-तरह की रणनीतियों के साथ सामने आ रही है. महाजनसंपर्क अभियान, संकल्प यात्रा के बाद अब भाजपा माटी-बेटी-रोटी बचाव अभियान चलाने की तैयारी में है. इस अभियान के तहत भाजपा झारखंड में सभी 5 एसटी लोकसभा सीट पर कब्जा करने की कोशिश करेगी.
बता दें झारखंड में कुल 14 लोकसभा सीट हैं जिसमें 5 सीट एसटी के लिए रिजर्व है वहीं अनुसूचित जाति के लिए 1 सीट आरक्षित है, अब इन एसटी और एससी के लिए रिजर्व सीटों पर संबंधित जाति के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं. वहीं बाकी बचे 8 सीटों में किसी भी जाति का उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है.
झारखंड में जनरल सीट की बात करें तो रांची जमशेदपुर, धनबाद, हजारीबाग, कोडरमा, चतरा, गोड्डा और गिरिडीह की सीट पर किसी भी जाति का उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है. वहीं, पलामू अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. अब एसटी यानी अनुसूचित जनजाति की सीट की बात करें तो इसमें लोहरदगा ,चाईबासा,खूंटी,दुमका और राजमहल की सीट शामिल है.
इन 5 सीटों पर फिलहाल भाजपा के पास लोहरदगा, खूंटी और दुमका की सीट है. जबकि राजमहल में जेएमएम और चाईबासा की सीट कांग्रेस के पास है. भाजपा इस बार इन दोनों चाईबासा और राजमहल की सीटों को भी अपनी झोली में डालना चाह रही है. और अब भाजपा अनुसूचित जनजातियों के वोट हासिल करने के लिए नये हंथकंडे अपनाने वाली है.
रिपोर्ट के अनुसार भाजपा अगले महिने यानी सितंबर से इन 5 लोकसभा सीटों में रोटी–बेटी-माटी बचाव अभियान चलाने वाली है. इस अभियान का नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, आशा लकड़ा, भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव और शिवशंकर उरांव करेंगे.
इस अभियान के तहत आदिवासियों को बताया जाएगा कि कांग्रेस और झामुमो के शासन में आदिवासियों की ना तो जमीन सुरक्षित है न उनकी बेटियां. इस अभियान के प्रचार प्रसार हेतू भाजपा गांव-गांव जाएगी और अपनी पकड़ जमीनी स्तर पर मजबूत करेगी.
बाबूलाल मरांडी की अगुवाई में बीते सोमवार को इस विषय पर महत्वपूर्ण बैठक हुई है. बाबूलाल मरांडी लगातार झारखंड में हो रहे आदिवासियों के अत्याचार पर अपनी आवाज उठाते रहते हैं चाहे वो रुबिका पहाड़िया हत्याकांड हो या फिर नेता सुभाष मुंडा की हत्या. बाबूलाल बांग्लादेशी घुसपैठिए को लेकर भी काफी आक्रोशित रहते हैं उनका मानना है कि बांग्लादेशी झारखंड के आदिवासियों की जगह ले रहे हैं जिसके कारण मूलवासियों को पलायन का दंश झेलना पड़ रहा है.
रिपोर्ट्स बताती है कि संथाल के कई गांवों में पहाड़िया जनजाति की संख्या में लगातार कमी आ रही है. जो एक चिंता का विषय है, खासकर के संथाल के गांवों में सबसे पहले सर्वे किया जाएगा कि डेमोग्राफी में कितना बदलाव हुआ है. लोगों के साथ बैठक कर उनको, उनके अधिकारों को लेकर जागरुक करते हुए आंदोलन के लिए तैयार किया जाएगा.
अब देखना होगा कि बीजेपी का यह आंदोलन आदिवासियों को कितना लुभाता है और आदिवासी बीजेपी के पक्ष में वोट डालते हैं या नहीं. अब ये तो आगामी लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा.