झारखंड विधानसभा के 23 साल: झारखंड के पहले विधानसभा स्पीकर का अनूठा सफर

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झारखंड, भारत की एक अद्वितीय भू-भौतिक और सांस्कृतिक धरोहर है. 22 नवंबर 2000 को झारखंड विधानसभा का गठन हुआ था. आज राज्य झारखंड विधानसभा का 23वां वर्षगांठ मना रहा है. इन 23 सालों में झारखण्ड विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर 11 विधानसभा सदस्य विराजमान हुए लेकिन जो मक़बूलियत राज्य के पहले विधानसभा स्पीकर को मिली वह किसी और को नहीं मिली.

आज हम बात करेंगे एक ऐसे सख्सियत के बारे में, जिन्होंने झारखंड विधानसभा के पहले स्पीकर की गद्दी संभाली और अपने हास्यवृत्ति और मजाहिया लहजे से विधानसभा की बहसों को दिलचस्प और मज़ेदार बना दिया.

वह शख्सियत हैं पंद्रहवीं लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर और बिहार के पूर्व मंत्री तथा झारखंड विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष सरदार इंदर सिंह नामधारी.

इन्दर सिंह नामधारी का जन्म 1940 में एक छोटे से गाँव नीशेरा खोजियों में हुआ, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में है. बंटवारे के दौरान लाखों शरणार्थियों की तरह उनका परिवार भी बेघर हो गया। झारखण्ड के पलामू जिला अंतर्गत डालटनगंज उनका आखिरी पड़ाव बना.

1960 के दशक में देश में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के बीच इन्दर सिंह नामधारी की राजनैतिक कहानी लिखी जाने लगी. गोरक्षा आन्दोलन के दौरान वे जनसंघ के क़रीब आ गये और दो बार डालटनगंज से पार्टी के प्रत्याशी बने लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई.

सत्तर के दशक में जेपी आन्दोलन जारी था. देश की कमान संभल रही प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया. बाकियों की तरह इन्दर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें लगभग दो साल जेल की सलाखों के पीछे गुज़ारने पड़े.

भारतीय राजनीती में सन 1980 में भाजपा ने कदम रखा और इन्दर सिंह नामधारी भाजपा की टिकट पर पहली बार डालटनगंज से विधायक चुने गये.

प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की हत्या से भड़के 1984 के सिख विरोधी दंगों में एक हिन्दू-बाहुल्य सीट का सिख प्रतिनिधि होना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण एवं तनावपूर्ण रहा.

1990 का दशक मण्डल बनाम कमण्डल का था नामधारी ने मुस्लिम-यादव (एमवाई) के तुष्टीकरण की राजनीति भी देखी. इन्दर सिंह तीसरी बार डालटनगंज से जीते और मंत्री बन गये.

नामधारी के जीवन का हर दशक उन्हें एक नयी दिशा की ओर ले गया. साल 2000 में झारखण्ड का निर्माण हुआ और वह नवगठित राज्य के पहले स्पीकर बने. वाणी प्रकाशन ग्रुप में छपे एक लेख के मुताबिक झारखण्ड को अलग राज्य बनाने की मांग पहली बार उन्होंने ही आगरा में 1988 में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रखी थी.

साल 2009 में उन्होंने चतरा लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनव लड़ा और उनकी दिल्ली जाने की इच्छा भी पूरी हो गयी.

अब हम रौशनी डालते हैं उनके विधानसभा अध्यक्ष के सफर पर. इंदर सिंह ने झारखंड विधानसभा के पहले स्पीकर के रूप में अपनी दक्षता और समर्पण से लोगों का दिल जीता। उनकी आदर्शवादी और सामराज्यपूर्ण शैली ने उन्हें एक लोकप्रिय विधानसभा स्पीकर बना दिया।

अब तक 11 सदस्यों ने झारखंड विधानसभा स्पीकर के पद को संभाला है. झारखंड के पहले स्पीकर इंदर सिंह नामधारी को छोड़ अन्य किसी को अब तक दोबारा विधानसभा स्पीकर का दायित्व नहीं मिल पाया है. वर्तमान में रवींद्र नाथ महतो झारखंड के स्पीकर हैं.

झारखंड विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर इंदर सिंह नामधारी ने तीन बार दायित्व का निर्वाहन किया. बिहार से झारखंड अलग राज्य बनने के बाद सबसे पहले इंदर सिंह नामधारी झारखंड विधानसभा अध्यक्ष बने. इनका कार्यकाल 22 नवंबर, 2000 से 29 मार्च, 2004 तक रहा. इसके बाद 4 जून, 2004 से 11 अगस्त, 2004 रहा. वहीं, तीसरा कार्यकाल 15 मार्च, 2005 से 14 सितंबर, 2006 तक रहा. वहीं, वर्ष 2008 में इंदर सिंह नामधारी को उत्कृष्ट विधायक के सम्मान से सम्मानित किया गया.

इन्दर सिंह नामधारी के द्वारा ही त्रैमासिक पत्रिका ‘उड़ान’ शुरुआत की गई थी. उड़ान पत्रिका की पहली संस्करण को उन्होंने पहली उड़ान का नाम दिया था और पत्रिका के पहले पन्ने पर उन्होंने एक संदेश लिखा,

माननीय सदस्यगण,

“नव-सृजित झारखण्ड प्रान्त की पहली विधान सभा का प्रथम सत्र कई अर्थों में ऐतिहासिक बनकर रह गया है। इसलिए कई माननीय सदस्यों का सपरामर्श मिला कि इस सत्र की कार्यवाही को एक पुस्तिका के रूप में मुद्रित किया जाए ताकि वह एक दस्तावेज का रूप ले ले. मैंने इस पुस्तिका का नाम “पहली उड़ान” इसलिए रखा है क्योंकि इसी उड़ान से हमें भविष्य में आसमान की बुलंदियों पर उड़कर इस झारखण्ड की विधान-सभा को एक आदर्श विधान सभा बनाना है. एक अजीम शायर के शब्दों में”-
“सितारों के पीछे जहाँ और भी है,
अभी इश्क के इम्तहाँ और भी हैं.
तू शाहीं है परवाज है काम तेरा.
तेरे सामने आसमां और भी हैं.”

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