Ranchi: झारखंड के 23 लड़के आंध्र प्रदेश में फंस गये हैं. ये सभी लोग तिरुपति जिला के सुलुरपेटा नाम की जगह पर डेक्किन एयर कंडीशन इंडिया कंपनी में फंसे हैं. ये लोग अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मदद की गुहार लगा रहे हैं. लड़कों का दावा है कि ट्रेनिंग और प्लेसमेंट के नाम पर उनको फंसा दिया गया है. उनके पास खाना खाने तक के पैसे नहीं हैं.
ये सभी लड़के डीडीयूजीकेवाई यानी दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना के तहत औद्योगिक प्रशिक्षण और फिर नौकरी की खातिर वहां गये थे. डीडीयूजीकेवाई कार्यक्रम दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित किया जाता है. रौशनी कार्यक्रम के जरिये इन ग्रामीण लड़कों का चयन ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए किया गया था. वादा नौकरी का था लेकिन आरोप है कि इनका शोषण किया जा रहा है. लड़कों ने सेंटर मैनेजर पर कई गंभीर आरोप लगाये हैं.
लड़कों ने वीडियो जारी करके बताया है कि झारखंड के अलग-अलग जिलों से 23 लड़कों का चयन डीडीयूजीकेवाई कार्यक्रम के तहत किया गया था. उनको 3 महीने ट्रेनिंग दी गई. ट्रेनिंग के दौरान बताया गया था कि पुणे की किसी कंपनी में प्लेसमेंट मिलेगा लेकिन, उनको आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिला स्थित सुलुरपेटा भेज दिया गया. लड़कों ने बताया कि उनको कहा गया था कि नौकरी के दौरान प्रतिमाह 15,500 रुपये तनख्वाह मिलेगी.
हॉस्टल में रहने का खर्चा जोकि 2600 रुपये प्रतिमाह है, सेंटर मैनेजर द्वारा दिया जायेगा. अब इन लड़कों का आरोप है कि उनको 15,500 की जगह केवल 12,000 रुपये ही मिलते हैं. उन्हें हॉस्टल फीस के रूप में प्रति व्यक्ति 6,000 रुपये मांगा जा रहा है. इनका कहना है कि अभी पहले महीने की सैलरी भी नहीं मिली और हॉस्टल का मालिक लगातार पैसों की डिमांड कर रहा है. हालत ऐसी है कि दो वक्त का भोजन करने तक का पैसा नहीं है.
छात्रो ने आरोप लगाया कि ट्रेनिंग के दौरान भी उनके लिए भोजन और रहने की अच्छी व्यवस्था नहीं की गई. सेंटर मैनेजर शिकायतों पर ध्यान नहीं देता.
गौरतलब है कि डीडीयूजीकेवाई यानी दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना के तहत 15 से 25 वर्ष के ग्रामीण युवक-युवतियों को उनकी रूचि के हिसाब से ट्रेनिंग दिया जाता है. ट्रेनिंग सेंटर से ही विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों में उनको नौकरी दी जाती है जहां न्यूनतम मजदूरी के समकक्ष या फिर इससे ज्यादा वेतन मिलता है.
राष्ट्रीय ग्रामीम आजीविका मिशन के तहत संचालित डीडीयूजीकेवाई कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देकर आजीविका कमाने लायक बनाना था. इस कार्यक्रम के तहत पहले समुदाय के भीतर जागरूकता पैदा की जाती है. गरीब ग्रामीण युवाओं की पहचान की जाती है. फिर विभिन्न कामों में रूचि रखने वाले युवाओं को जुटाया जाता है. योग्यता के आधार पर उनका चयन किया जाता है.
युवाओं और उनके माता-पिता की काउंसिलिंग की जाती है. रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए जरूरी ट्रेनिंग दी जाती है और फिर नौकरी भी दी जाती है.
योजना अच्छी है लेकिन उसकी ढंग से मॉनिटरिंग भी होनी चाहिए. सरकार प्रायोजित इस योजना में व्यवस्था ऐसी हो कि लड़के-लड़कियां धोखाधड़ी का शिकार न हो जायें. सेंटर संचालकों पर कड़ी निगरानी होनी चाहिए. दरअसल, यह पहला मामला नहीं है जबकि झारखंड के लोग बाहर किसी दूसरे प्रदेश अथवा देश में फंस गये हों.
अभी हाल ही में झारखंड के 27 प्रवासी श्रमिक फंस गये थे. सीएम हेमंत सोरेन और विदेश मंत्रालय की पहल से उनको वापस लाया गया. तब सीएम ने कहा भी था कि मजदूर सही तरीके से विदेश जायें. अपना निबंधन करायें. सही बात है लेकिन, यहां तो लड़के सरकारी योजना के तहत गये थे फिर भी फंस गये.