झारखंड में इन पांच सीटों पर हार सकती है BJP, जानिए क्यों ?

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DESK/TFP : झारखंड लोकसभा चुनाव में इस बार सियासी समीकरण जो भी हो, लेकिन वर्तमान परिदृष्य में नजर आ रहा है कि इस बार झामुमो और कांग्रेस की सीटें राज्य में बढ़ेंगी और भाजपा की कम होगी. कितनी कम होंगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इंडिया गठबंधन किस प्रत्याशी को मैदान में उतारती है और सियासी गणित पर वह कैसे और कितने फिट बैठते हैं.

झारखंड में इंडिया गठबंधन की तरफ से इसमें सबसे अहम रोल विधानसभा के परिणामों के हिसाब से झामुमो राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है और फिलहाल राज्य में सबसे अच्छी पकड़ भी इसी की है. एक बात औऱ है, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के राम लीला मैदान से लेकर झारखंड के चुनावी मैदानों में जिस आक्रमकता के साथ कल्पना दहाड़ रही हैं.

वो राज्य में भाजपा के लिए के राजनीतिक संकेत भी है, और संकेत ये कि झामुमो के पास हेमंत सोरेन की गैर मौजुदगी में कल्पना सोरेन वो शानदार और सश्कत विक्लप बनकर उभर सकती हैं. जिसकी कल्पना खुद भाजपा तो छोड़िए झामुमो भी नही की होगी.

बहरहाल, जो भी हो. इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे के तहत झारखंड मुक्ति मोर्चा को पांच सीटें मिली हैं. ये सीटें हैं – राजमहल, दुमका, गिरिडीह, सिंहभूम, और जमशेदपुर.  यदि झामुमो ने सही प्रत्याशी का चयन कर लिया, तो इन पांच में से कम से कम चार सीटों पर झामुमो भाजपा को पछाड़ने का माद्दा रखती है.

कौन सी है वह चार सीटें, जहां भाजपा को झामुमो से बहुत खतरा है, झामुमो के कोटे की कुल पांच सीटों पर कौन होगा झामुमो का उम्मीदवार,  हेमंत की गैर मौजूदगी में कल्पना लेंगी हेमंत सोरेन की जगह. इस अर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि झामुमो अपने उम्मीदवारों की घोषणा कब करने जा रही है. साथ ही झामुमो के खाते में आई पांचों सीटों का संपूर्ण विश्लेषण. इसके अलावे बताएंगे कि टिकट पाने की रेस में कौन प्रत्याशी है सबसे आगे.

झामुमो ने कहा कि है कि वे कांग्रेस की घोषणा के बाद ही अपनी सीटों पर प्रत्याशियों की सूची जारी करेंगे. कांग्रेस ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं, चार सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा शेष है. एक जरुरी बात और, बीते 31 मार्च को ही कांग्रेस की स्क्रिनिंग कमेटी की बैठक होनी थी, जिसमें रांची, धनबाद और गोड्डा सीट पर कांग्रेस कैंडिडेट की आधिकारीक घोषणा होती, पर अचानक स्क्रिनिंग कमिटि की बैठक टल गई.

4 अप्रैल को कांग्रेस इन सीटों पर कर सकती है उम्मीदवारों की घोषणा 

यानि कुल मिलाकर कहा जाए तो 4 अप्रैल को संभवतः कांग्रेस रांची, गोड्डा औऱ धनबाद सीट पर अपने प्रत्याशी का आधिकारीक ऐलान कर सकती है और संभवतः चार अप्रैल के बाद ही झामुमो अपने कोटे की पांच सीटों पर अपने उम्मीदावरों की सूची जारी करेगी. इधर कोडरमा में माले की तरफ से विनोद सिंह का नाम तय हो चुका है. शेष दो सीटें चतरा और पलामू में कांग्रेस और राजद में अभी भी विमर्श जारी है. पर खबर है कि राजद को मात्र 1 सीट चतरा से ही संतुष्ट होना पड़ेगा.

अब आईए उस लखटकिया सवाल पर जिसका अपना अपना जवाब हर किसी के पास मौजूद है. सवाल यह कि अगर झामुमो अपने कोटी की पांच सीटों पर ढंग से कैंडिडेट का चयन करे तो कमसेकम 4 सीटों पर झामुमो भाजपा को सीधे टक्कर देने की स्थिति में आ सकती है. झारखंड की वो चार सीटें जहां भाजपा को झामुमो से खतरा हो सकता है.

इन सीटों पर BJP को JMM से हो सकता खतरा 

इनमें से पहली सीट है दुमका – दुमका दिशोम गुरु शिबू सोरेन की पारंपरिक सीट है और यहां से वे लगातार जीतते भी आए हैं. हालांकि पिछले चुनाव में वे भाजपा के सुनील सोरेन से लगभग 47 हजार वोट से हार गए थे. इस सीट पर भाजपा ने अपना सबसे बड़ा पासा फेंका है – सीता सोरेन को खड़ा कर के.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सीता सोरेन झामुमो परिवार की बड़ी बहु है और कम से कम अपने विधानसभा जामा में अच्छी पकड़ रखती हैं. लेकिन यह सीट झामुमो की पारंपरिक सीट है और शिबू सोरेन आज भी यहां गेम चेंजर हैं. झामुमो के कोर वोटर सीता सोरेन के साथ जाएंगे, इस बात पर बहुत संशय है.

विधानसभा के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पता चलता है कि पिछली बार दुमका की छह विधानसभा सीटों में से चार पर झामुमो, एक पर कांग्रेस और एक पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इस लिहाज से भी झामुमो दुमका सीट पर मजबूत नजर आती है.

बीबीसी के लिए झारखंड के जाने माने पत्रकार रवि प्रकाश ने दुमका के वरिष्ठ पत्रकार आरके नीरद के हवाले से लिखा है कि “सीता सोरेन का राजनीतिक वजूद शिबू सोरेन की बहू होने की वजह से है. इसके बावजूद जामा सीट से पिछला विधानसभा चुनाव सीता सोरेन ने मामूली अंतर से जीता था.

दुमका के लोग शिबू सोरेन के वोटर हैं, न कि सीता सोरेन के. उनके लिए जेएमएम से भी बड़ा नाम शिबू सोरेन का है. लिहाज़ा, सीता सोरेन को कोई चमत्कार ही दुमका लोकसभा सीट से जीत दिला पाएगा.

sita soren joined bjp

“जेएमएम के वोटर सीता सोरेन के ख़िलाफ़ वोट करेंगे. बीजेपी के वोटरों का एक वर्ग सुनील सोरेन का टिकट कटने से नाराज़ होगा और वो बीजेपी के खिलाफ वोट करेगा, जिसका सीधा फायदा झामुमो को होगा. बीजेपी को बस इतने भर से संतोष करना पड़ेगा कि उसने शिबू सोरेन के परिवार में फूट डाली है. यह सीट निकाल पाना भाजपा  के लिए बेहद मुश्किल होगा.”

लेकिन सवाल है कि दुमका से झामुमो का दावेदार होगा कौन। अब तक तो इनपुट था कि हेमंत खुद ही यहां से खड़े होंगे. लेकिन सीता सोरेन के आने के बाद कुछ जानकारों का मानना है कि पार्टी पारिवारिक कलह को तुल देने से बचना चाहेगी. ऐसे में हो सकता है कि हेमंत चुनाव लड़ने से खुद को पीछे कर लें.

एक बात और है. हेमंत की अब तक की छवि परिवार को लेकर चलने वाले एक व्यहारिक सद्सय के तौर पर रही है, सीता सोरेन से लाख मतांतर होने के बावजूद वे कई पारिवारिक कार्यकर्मों में एक साथ दिखे हैं. ऐसे में हेमंत अब शायद सीता सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़कर बीजेपी को चुनावी मुद्दा देने से बचना चाहेंगे. लेकिन फिर सवाल वही है हेमंत नही तो कौन.

सनद रहे कि दुमका सीट से नलीन सोरेन भी जोर आजमाइस में लगे हैं. लेकिन फिर शिबू सोरेन की पारंपरिक सीट पर पार्टी किसे खड़ा करना चाहेगी यह सवाल कायम है. हालांकि यदि हेमंत यहां से चुनाव लड़ते हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि वे जेल में रहते हुए भी दुमका सीट पर जीत दर्ज कर पाने में सक्षम होंगे.

झामुमो के लिए दूसरी सबसे महत्वपूर्ण सीट राजमहल है – राजमहल झामुमो की सबसे मजबूत सीटों में से एक है. 2019 के चुनाव में जब शिबू सोरेन भी अपनी सीट नहीं बचा पाए, तब भी राजमहल पर झामुमो की तरफ से विजय हांसदा ने लगभग 1 लाख के मार्जिन से जीत दर्ज किया था.

यहां की भी छह में से पांच विधानसभा सीटों पर झामुमो और कांग्रेस के विधायक हैं. साफ है कि झामुमो की पकड़ इस सीट पर भी मजबूत है. बात सिर्फ 2019 के चुनावी नतीजों की नही है. झामुमो के प्रत्याशी विजय हांसदा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद राजमहल सीट निकाल ली थी. जाहिर है कि राजमहल के मतदाता का रुख फिलहाल झामुमो की तरफ झुका हुआ ज्यादा दिखता है. बहरहाल, इस बार राजमहल सीट पर.

भाजपा की तरफ से यहां ताला मरांडी को उतारा गया है और पूरी संभावना है कि इस बार भी झामुमो अपने पुराने प्रत्याशी विजय हांसदा को ही रिपिट करेगी. दोनों नेता संताली हैं और संताल की राजनीति करते रहे हैं। लेकिन वर्तमान परिदृष्य में विजय हांसदा का पलड़ा भारी लग रहा है.

भाजपा के ही कई नेता दबे जबान में कहते हैं कि भाजपा ने राजमहल सीट पर कमजोर कैंडिडेट उतार दिया है. ताला मरांडी कि छवि हमेशा पाला बदलने वाले नेता की रही है. वे कभी आजसू में रहे, कभी कांग्रेस में रहे, कभी झामुमो रहे और अब वे आखिरकार भाजपा में हैं. जाहिर है कि बार बार पाला बदलने में माहिर रहे ताला के पास अपना कोई विशेष जनाधार नही है.

ताला मरांडी का विवादों से भी गहरा नाता रहा है. सीएनटी-एसपीटी एक्ट के बारे में पार्टी लाइन के खिलाफ बयान देने और बेटे की शादी 11 साल की नाबालिग लड़की से कराने के बाद वे पूरे देश में वे सुर्खियों में आ गए थे. ताला मरांडी की तब चौतरफा किरकिरी भी हुई थी. बहरहाल,जो भी हो पर ताला मरांडी के समक्ष अपने नाराज लोगों को मनाने की चुनौती भी है. यदि कोई बड़ा बदलाव नहीं होता है, तो झामुमो इस सीट पर भी भाजपा को मात देने में सक्षम हो सकती है.

तीसरी सीट है सिंहभूम – यह सीट है हाल में सबसे चर्चित सीटों में से एक सिंहभूम, जिसे चाईबासा भी कहा जाता है. सिंहभूम सीट कोल्हान की सबसे हॉट सीट है. यहां पिछली बार गीता कोड़ा कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीती थीं, लेकिन उनके भाजपा में जाने के बाद यह सीट झामुमो के खाते में आ गया है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सिंहभूम में गीतो कोड़ा की मजबूत पकड़ है.

खासकर मधु कोड़ा का प्रभाव आज भी वहां मौजूद है. ऐसे में झामुमो के लिए मुकाबला आसान तो बिल्कुल नहीं होने वाला है। लेकिन जब हम सिंहभूम संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले विधानसभा सीटों पर गौर करें, तो पाते हैं कि यहां की छह विधानसभा सीटों में से सभी पर झामुमो और कांग्रेस के विधायक हैं. यानी भाजपा का एक भी विधायक यहां से नहीं है.

सिंहभूम सीट के लिए झामुमो से जो नाम यहां सबसे आगे चल रहा है, वह है दीपक बिरुआ का. दीपक बिरुआ हो समाज से आते हैं और वर्तमान में  चंपाई कैबिनेट में मंत्री भी हैं.

लेकिन इस सीट पर सबसे बड़ा खेला कोई कर सकता है तो वे हैं झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन. जी हां, चंपाई सोरेन कोल्हान के कद्दावर नेता हैं और उनका प्रभाव इतना है कि उनकी रैलियों और कार्यक्रमों से परिणाम में फर्क पड़ सकता है. मुख्यमंत्री की हैसियत से उनका चुनावी रैलियों में जाना भी काफी कुछ बदल सकता है.

हालांकि दुमका और राजमहल की तरह यहां मुकाबला आसान तो नहीं है, लेकिन झामुमो इस सीट पर भी अपना परचम लहरा सकती है अगर कायदे से अच्छी रणनीति से साथ चुनाव लड़ा जाए तब.

अब हम आते हैं चौथी सीट जमशेदपुर में – जमशेदपुर में झामुमो, आस्तिक महतो, स्नेहा महतो या सौरभ तिवारी में से किसी एक को चुनावी मैदान में उतार सकती है. और भाजपा की तरफ से यहां के प्रत्याशी हैं दो बार यहां से जीत दर्ज कर चुके वर्तमान सांसद विद्युत वरण महतो. विद्युत वरण महतो यहां एक मजबूत नेता हैं, लेकिन दिलचस्प ये भी है कि वर्तमान में जमशेदपुर लोकसभा सीट की छह विधानसभा सीटों में से किसी एक पर भी भाजपा के विधायक नहीं है.

इनमें में चार पर झामुमो, एक पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय चुनाव लड़े सरयू राय हैं. सिंह, महतो और मुस्लिम वोटर यहां निर्णायक भूमिका में हैं.  इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इतना जरूर है कि यदि झामुमो यहां पूरी ताकत से लड़े, तो बाजी पलटी जा सकती है.

पांचवी सीट है गिरिडीह – यूं तो गिरिडीह की भी छह में से चार विधानसभा सीटें झामुमो-कांग्रेस का पास हैं और पूरे लोकसभा सीटों पर झामुमो मजबूत है. लेकिन इस सीट पर महतो प्रभाव अधिक है और इस लिहाज से आजसू यहां मजबूत नजर आती है. चंद्रप्रकाश चौधरी ने पिछली बार यहां से लगभग ढाई लाख वोट से जीत दर्ज की थी. यह अंतर बड़ा है. इस बार भी चंद्रप्रकाश चौधरी ही मैदान में हैं.

इधर झामुमो की तरफ से पूरी संभावना है कि पार्टी मथुरा महतो को टिकट दे. यहां तक कि उन्होंने अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. दिलचस्प है कि झामुमो ने भी यहां से महतो उम्मीदवार को ही खड़ा किया है. जयराम महतो भी इसी जाति से आते हैं और चुनाव पर निश्चत तौर पर उनका भी प्रभाव रहेगा. गिरिडीह में पूरी बात शायद इस बात पर निर्भर करेगी कि महतो वोटर किसके तरफ जाते हैं या किस अनुपात में बंटते हैं.

हालांकि अभी तक झामुमो से यहां से सीधे तौर पर जीतती नजर तो नहीं आ रही, वो भी तब जब जयराम महतो भी गिरिडीह सीट के लिए जीह जान से लगे हुए हैं. लेकिन राजनीति में कुछ भी हो सकता है.

जिन पांच सीटों का हमने विश्लेषण किया, उनपर परिणाम बिल्कुल उलट भी हो सकते हैं. लेकिन आज के परिदृष्य में जो स्थितियां बन रही हैं,  यह आकलन सूत्रों के आधार पर ही किया गया है.

वहीं झामुमो इस बार के लोकसभा को लेकर सीरियस है. हेमंत के जेल जाने को लेकर लोग भावुक भी हैं. अगर इस भावना को वोट में तब्दील करने में झामुमो सफल होती है, कल्पना सोरेन चुनावी मंचो से संवेदना की लहर अगर पैदा कर सकती है, तो हम जिस तरफ इशारा कर रहे हैं, यह होना संभव है. लेकिन आपकी तरह हम भी इंतजार कर रहे हैं पहले प्रत्याशियों की घोषणा का.

 

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