सरहुल आदिवासियों का प्रमुख त्योहार है. झारखंड में सरहुल पर्व की छुट्टी 24 मार्च को है, लेकिन यह त्योहार पूरे महीने चलता है. यह पर्व पेड़ में नए पत्ते के आने से शुरू होता है और पूरे महीने चलता है.
सरहुल में धरती मां को पूजा जाता है. आदिवासी समुदाय के लोग इस दिन प्रकृति को पूजते हैं. रबी फसल कटने के बाद इस पर्व को मनाया जाता है. सरहुल के पर्व के बाद ही लोग नई फसल का उपयोग शुरू करते हैं. एक तरह से ये पर्व आदिवासियों के लिए नए वर्ष की शुरुआत होती है.
झारखंड में सरहुल की खास मान्यता
झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. यही कारण है कि झारखंड में सरहुल बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है. छोटा नागपुर पठार और संथाल परगना ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां आदिवासी जंनसख्या बहुत ज्यादा हैं.
खूंटी में 73.3, सिमडेगा 70.8, गुमला 68.9, पश्चिम सिंहभूम में 67.3, लोहरदगा में 56.3, लातेहार 45.5, दुमका 43.2, पाकुड़ 42.1, रांची 35.8, सरायकेला 35.2, जामताड़ा 30.4, पूर्वी सिंहभूम 28.5 प्रतिशत है. अब जिस राज्य में आदिवासियों की जंनसख्या में इतनी हो वहां इन पर्व का महत्व बढ़ जाता है.
इस बार सरहुल में क्या खास
रांची में इस बार सरहुल को लेकर लोगों के बीच काफी उत्साह देखा जा रहा है. इस सरहुल पर्व को लेकर बाजार में झारखंडी परिधानों की मांग बढ़ी है. आदिवासी समुदाय के लोग अपने संस्कृति के प्रति अपना प्रेम और पर्व के प्रति अपनी आस्था को ध्यान में रखते हुए सरहुल के दिन पारंपरिक कपड़े पहन कर पूजा में शामिल होते हैं.
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