जगन्नाथ यात्रा के पांचवें दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ जी की रथ तोड़ती हैं आज हम आपको इस स्टोरी में इसके बारे में विस्तार से बताएंगे लेकिन उससे पहले समझते हैं कि रथ और रथ यात्रा के बारे में. तो बता दें, पुराणों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी की बहन सुभद्रा को एक बार नगर देखने का मन हुआ. बहन की बात पर भगवान जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन के रथ पर बैठकर नगर घूमने गए. इस दौरान अपनी मौसी के घर गुंदेचा भी गए और नौ दिनों तक रुकने का निर्णय लिया और वहां रुक गए. तब से यह रथ यात्रा निकालने की परंपरा चलती आ रही है.
इस रथ यात्रा का पावन आयोजन हर साल आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि सनातन धर्म में इस यात्रा का काफी महत्व है. रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. रथ खींचने से श्रद्धालुओं को 100 यज्ञ करने का फल मिलता है. इस यात्रा को लेकर यह भी मान्यताएं हैं कि इसमें शामिल होने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मान्यताओं से परिपूर्ण इस रथ को आखिर मां लक्ष्मी क्यों तोड़ देती हैं और इसके पीछे का कारण क्या है?
भगवान जगन्नाथ जी के पावन पूजन आयोजन में हर साल आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती हैं जिस रथ को खींचने के लिए श्रद्धालु देश-विदेश से मनोकामनाएं लेकर आते हैं. सनातन धर्म में इस रथ को लेकर काफी आस्थाएं और श्रद्धाएं जुड़ी हुई है. इस रथ को बनाने से पहले और बनाने के बाद मंदिरों के पूजारियों और श्रद्धालुओं के द्वारा इसका पूजन किया जाता है. इतना कुछ होने के बावजूद इस भव्य रथ को मां लक्ष्मी तोड़ क्यों देती है?
बात करें, मां लक्ष्मी के द्वारा रथ तोड़ने की तो यह भी भगवान जगन्नाथ जी की पूजन का एक हिस्सा है, जिसे रथ भांगिनी कहते है. रथ भांगिनी का आयोजन परंपरागत रथ यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी के दिन देर शाम को वहां के पूजारियों द्वारा मनाया जाता है. इस पूजन को क्यों किया जाता है इसके पीछे भी एक कहानी है. तो आईए समझते हैं-
बता दें, मां लक्ष्मी जी के पति प्रभु जगन्नाथ जी हैं. जब भगवान जगन्नाथ जी बलभद्र और बहन सुभद्रा को लेकर अपने नंदिघोष नामक रथ में बैठ कर नगर घुमाने ले गए और नगर घूमने के बाद वें अपनी मौसी के घर गुंदेचा चले गए. वहां वे नौ दिनों तक रूकने का मन बनाया पर इस बात की खबर मां लक्ष्मी को नहीं थी, जब मां लक्ष्मी अपने पति प्रभु जगन्नाथ जी को अपने घर में नहीं देखती हैं तो उनको खोजने उनकी मौसी के यहां जाती है.
मौसी के घर मुख्य द्वार पर जब माता नंदिघोष रथ को बाहर खड़ा देखती है तब माता लक्ष्मी का क्रोध और बढ़ जाता है. क्रोधित हुई मां लक्ष्मी जी अपने पति प्रभु जगन्नाथ के रथ ‘नंदिघोष’ की एक लकड़ी निकालकर उसका पहिया तोड़ देती हैं. मां लक्ष्मी के क्रोध को शांत करने के लिए वहां के पंडित और पूजारियों के दल माता को मंत्रोच्चार कर, वंदना करते है और उनका गुस्सा शांत करते हैं. जिसके बाद माता वापस अपने घर चली जाती हैं. रथ तोड़ने वाला रिवाज मंदिर के पुजारी द्वारा किया जाता हैं. बता दें, रथ भांगिनी का रिवाज एक तब से आज तक चलता आ रहा है इसे हर साल बड़े हर्ष एवं उल्लास के साथ हर साल बनाया जाता है.