झारखंड के सरकारी अस्पतालों में फार्मासिस्टों की भारी कमी, 70% पद खाली

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झारखंड में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली से तो आप सभी रुबरु हैं ही आज हम झारखंड के स्वास्थ्य व्यवस्था के भी कुछ कमी से आपको परिचित करवाएंगे. आज 25 सितंबर है और आज वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे है . फार्मासिस्ट कहने का मतलब है जो अस्पतालों में डॉक्टरों की पर्ची के आधार पर मरीजों को दवा देने व उसे खाने का परामर्श देने का काम करते हैं इसके साथ ही दवा के रखरखाव व सरकारी अस्पतालों में दवा खरीद में भी इनकी भूमिका होती है. सभी सरकारी अस्पतालों में इनकी एक निश्चित संख्या में सीट होती है. केंद्र सरकार द्वारा लागू फार्मेसी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार हर हाल में अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में फार्मासिस्ट द्वारा ही दवा का रखरखाव व वितरण सुनिश्चित करना है.

लेकिन अगर बात झारखंड के सरकारी अस्पतालों के फार्मासिस्टों की करें तो, राज्य के अस्पतालों में इनकी संख्या ना के बराबर है. रिपोर्ट्स की मानें तो राज्य के सरकारी अस्पतालों में फार्मासिस्ट के 70 प्रतिशत पद खाली हैं. इतना ही नहीं इन फार्मासिस्ट की जगह एएनएम से काम लिया जाता है.

अब एएनएम कौन होते हैं, तो बता दें कि एएनएम सहायक नर्स होती हैं. जो भारत में एक ग्रामीण स्तर की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता है. इनके पास दवाओं की कुछ खास जानकारी नहीं होती है, इनसे ही फार्मासिस्ट का काम लिया जाता है. यह मरीजों के लिए घातक भी साबित हो सकता है.

अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन झारखंड प्रदेश महासचिव अमित कुमार ने झारखंड के हर एक जिले के सिविल सर्जन से आरटीआई के तहत यह जानकारी मांगी है कि संबंधित जिले के सरकारी अस्पताल में फार्मासिस्ट के कितने पद स्वीकृत हैं और कितना रिक्त. अब तक 11 जिलों के सिविल सर्जन ने जानकारी उपलब्ध कराई है, जिसमें 289 स्वीकृत पद में 202 फार्मासिस्ट का पद रिक्त है. यानी करीब 70% फार्मासिस्ट का पद खाली पड़ा है.

हिंदुस्तान अखबार में छपी रिपोर्ट के आंकड़ों की मानें तो
पलामू में फार्मासिस्टों के लिए 33 पद सृजित हैं और 08 पद रिक्त हैं, उसी प्रकार राजधानी रांची में 37 में 22 पद खाली हैं. पश्चिमी सिंहभूम में 30 में से 21 पद खाली है. दुमका में 42 में 39 पद खाली है. लोहरदगा में तो 16 में से 16हों पद खाली है. देवघर में 25 में से 19 पद रिक्त पड़े हैं. रामगढ़ में 18 में से 11 पद, गढ़वा 40 में 36 ,जामताड़ा में 20 में 14, साहेबगंज में 15 में से 09 और पूर्वी सिंहभूम में 10 में से 07 पद खाली है.

एसोसिएशन का कहना है कि झारखंड बने हुए 23 साल होने जा रहे हैं, लेकिन अब तक फार्मासिस्ट की स्थायी बहाली नहीं हो पाई है. इससे पता चल रहा है सरकार की तरफ से फार्मेसी एक्ट का उल्लंघन हो रहा है. फार्मासिस्ट का जगह दूसरा कोई अन्य कर्मचारी से सरकारी अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र में दवा वितरण का काम करवाया जा रहा है, जिनके पास कोई योग्य डिग्री नहीं है.
झारखंड के सरकारी अस्पतालों में फार्मासिस्टों की स्थिति कई वर्षों से ऐसी ही है. साल 2014 से इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं किया गया है. वहीं 2016 में भी आइपीएच मापदंड के अनुसार राज्य के सरकारी अस्पतालों में लगभग 84 प्रतिशत से भी अधिक फार्मासिस्टों की सीट खाली थे.जहां 1452 फार्मासिस्टों की जरूरत थी, वहां कार्यरत फार्मासिस्ट की संख्या मात्र 239 ही थी.

हर साल झारखंड में हजारों बच्चे बी फार्मा और डी फार्मा की डिग्री लेकर निकलते हैं और सरकारी नौकरी की आश में रहते हैं लेकिन सरकार का इनकी तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं है. किसी भी राज्य के विकास में वहां की हेल्थ सेक्टर का बड़ा योगदान होता है. अगर राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था ही सहीं नहीं होगी तो ये विकास पथ पर बाधा डालेंगी ही. सरकार को इन रिक्त पदों पर भर्ती के बारे में जरुर विचार करना चाहिए.

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