झारखंड में नगर निकाय चुनाव की राह नहीं होने वाली है आसान, जानें फिर से कहां फंस सकता है पेंच

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बीते कल झारखंड हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. राज्य में लंबे समय से रुके हुए नगर निकाय चुनाव के लिए हाईकोर्ट ने हरी झंडी दिखा दी है. झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को सरकार को तीन सप्ताह में चुनाव की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में सरकार को चुनाव कराने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने आदेश की कॉपी चुनाव आयोग, मुख्य सचिव और नगर विकास सचिव को भेजने का भी निर्देश दिया है.
लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद भी झारखंड में नगर निकाय चुनाव का रास्ता इतना आसान नहीं होने वाला है.
हाईकोर्ट ने चुनाव कराने के आदेश तो दे दिए लेकिन यहां बार बार पेंच ओबीसी आरक्षण के मामले पर फंस रहा है. राज्य सरकार ने कहा है कि ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट कराने के बाद ही चुनाव होंगे. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि ट्रिपल टेस्ट कराना एक कॉमप्लेक्स प्रोसेस और निरंतर प्रक्रिया का हिस्सा है. राज्य सरकार ने शपथ पत्र के जरिए तर्क रखा था कि एक कमीशन बनाएंगे, उसको पिछड़ा वर्ग आयोग हेड करेगा. लेकिन अभी तक आयोग में चेयरमैन की नियुक्तिभी नहीं हुई है.

बता दें कि राज्य में कुल 48 नगर निकाय हैं. इनमें 9 नगर निगम, 20 नगर परिषद और 19 नगर पंचायत हैं. सभी निकायों का कार्यकाल 2022 से2023 के बीच अलग-अलग माह में पूरा हो गया था. अब अदालत ने राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने के संबंध में आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया. यह भी कहा कि ओबीसी सीट अभी रिजर्व नहीं रहेगी. सामान्य कैटेगरी की सीट के रूप में नोटिफाई होगी, क्योंकि अभी ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला लागू नहीं है.
लेकिन राज्य में विपक्ष हाईकोर्ट के इस फैसले से खुश नहीं है. राज्य की आजसू पार्टी बिना ट्रिपल टेस्ट कराए चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है। पार्टी, सुप्रीम कोर्ट का रुख भी कर सकती है। दरअसल, आजसू पार्टी का मानना है कि बिना ट्रिपल टेस्ट के चुनाव कराना ओबीसी वर्ग के साथ अन्याय होगा।
लेकिन ये ट्रिपल टेस्ट होता क्या है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला लागू करने का फैसला सुनाया था. इस फॉर्मूला को लागू करने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक आयोग का गठन किया जाता है उसके सिफारिश पर ही ओबीसी आरक्षण लागू होता है.
विशेषज्ञों की मानें तो ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले के मानको में सबसे पहली शर्त यह है कि राज्य सरकार एक कमीशन का गठन करेगी, यह आयोग निकायों में पिछ़ड़पेन की प्रकृति का आकलन करेगा और सीटों के लिए आरक्षण प्रस्तावित करेगा.

आसान शब्दों में कहे तो यह आयोग पिछले इलेक्शन का रिकॉर्ड देखेगी और पिछले इलेक्शन में ओबीसी वर्ग की भागीदारी पर विश्लेषण करेगी. अगर बीते चुनाव में ओबीसी वर्ग की भागीदारी पर्याप्त हैं तो कमीशन यह भी कह सकती है कि आरक्षण की कोई जरुरत नहीं है.
वहीं दूसरी शर्त यह है कि यह कमीशन राज्य सरकार को स्टडी के बाद सिफारिश करेगी. कमीशन की सिफारिश के आधार पर राज्य सरकार उन्हीं जातियों को आरक्षण देगी जो ओबीसी में कम है.शिक्षा के क्षेत्र की तरह राजनीति में भी ओबीसी को 27 प्रतिशत का आरक्षण मिले यह जरुरी नहीं है. यह जरुरत के हिसाब से आरक्षण की सीमा तय की जाती है.
वहीं तीसरी शर्त में इस आयोग को इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक न हो. ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले यह ध्यान रखा जाए कि एससी-एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी से ज्यादा न हों.
बता दें कि न सिर्फ झारखंड बल्कि पहले भी कई राज्यों में नगर निकाय चुनाव से पहले ट्रिपल टेस्ट का पेंच फंस चुका है. महाराष्ट्र में साल 2022 की शुरुआत में बिना ट्रिपल टेस्ट लागू करके ओबीसी आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को अदालत ने खारिज कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने भी बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. तब राज्य सरकार पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए अध्यादेश ले आई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अध्यादेश को भी खारिज कर दिया। अंत में राज्य सरकार को पिछड़ा आयोग का गठन करना पड़ा और उसकी सिफारिशों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अनुमति दी. बिहार सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह पहले से काम कर रहे अति पिछड़ा आयोग को ओबीसी आरक्षण की रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंप दिया. इस फैसले को यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई कि यह समर्पित पिछड़ा आयोग नहीं है.

हालांकि, कोर्ट ने आयोग की रिपोर्ट के आधार पर जारी चुनाव कार्यक्रम में कोई दखल नहीं दिया। लेकिन, आयोग की वैधता पर जरूर जनवरी में सुनवाई हुई.
वहीं मध्य प्रदेश में भी नगर निकाय का चुनाव अदालत में फंसा था. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला लागू किए चुनाव कराने के सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी.

मई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए चुनाव कराने का आदेश दे दिया। हालांकि, बाद में सरकार ने राज्य पिछड़ा आयोग का गठन किया और उसकी सिफारिशों के आधार पर ही चुनाव हुए. उत्तर प्रदेश में भी ट्रिपट टेस्ट के बाद ही नगर निकाय के चुनाव कराए गए थे. झारखंड हाईकोर्ट ने तीन सप्ताह के अंदर सरकार को अधिसूचना जारी करने को कहा है और इतने कम समय में ट्रिपट टेस्ट कराना संभव नहीं है.
अब आने वाले समय में ही देखना होगा कि झारखंड में इस बार चुनाव संभव होते हैं या नहीं.

रिपोर्ट- अंवतिका राज चौधरी 

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