द. अफ्रिका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने कहा था कि –’Education is the most powerful weapon which you can use to change the world.यानी ‘शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं. जी हां , यदि आप आगे बढ़ना और सफल होना चाहते हैं तो आपको शिक्षित होने की आवश्यकता है. किसी भी समाज में शिक्षित लोगों का होना उसके लिए सबसे बड़ी पूंजी होती है. लेकिन क्या होगा जब आप इस मूल अधिकार से ही वंचित हो जाएंगे. क्या हम मान सकते हैं जिस राज्य में आधे से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते वह राज्य कितना विकसित हो सकता है. इससे पहले भी हम कई बार हम अपनी वीडियों में राज्य में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल उठा चुके हैं और अब एक बार फिर हम राज्य की दयनीय शिक्षा व्यस्था पर चर्चा करने करने वाले हैं.
झारखंड में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं दिखाई पड़ रही है.बीते 7 अगस्त 2023 को दैनिक अखबार प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट के आंकड़े डरावने हैं. रिपोर्ट की मानें तो राज्य के विद्यालयों में प्रतिदिन 15 लाख से अधिक बच्चे अनुपस्थित रहते हैं.यानी राज्य भर में रोजाना 15 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की ओर से जिलों को भेजी गयी रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त महिने में स्कूलों नहीं आने वाले बच्चों की संख्या में 1,90,027 बच्चों की बढ़ोतरी हुई है. यह आंकड़े 2023 के ही हैं.
बच्चों के स्कूल नहीं जाने के पीछे कई कारण हैं, जैसे राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी और स्कूल में सही प्रबंधन की कमी इसके बड़े कारणों में से हैं.
आज जो रिपोर्टस प्राप्त हुए हैं वो बताती हैं कि राज्य के सरकारी स्कूलों में प्रबंधन की स्थिति जर्जर है. बता दें झारखंड में कुल सरकारी स्कूलों की संख्या करीब 35,438 है जिसमें से 3,680 सरकारी विद्यालयों में शौचालय की सुविधा नहीं है. इनमें से 925 स्कूल ऐसे हैं, जहां शौचालय तो है ही नहीं, जबकि 2758 स्कूल ऐसे हैं, जहां शौचालय तो बनाया गया था, पर अब यह उपयोग के लायक रहा नहीं. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 314 विद्यालय में लड़की व 611 विद्यालय में लड़कों के लिए शौचालय नहीं हैं. इन विद्यालयों में शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है. वहीं 1171 विद्यालय में लड़कियों व 1557 विद्यालय में लड़कों के लिए बना शौचालय उपयोग के लायक नहीं है.
इन स्कूलों में सिर्फ शौचालय ही समस्या नही है. शौचालय के साथ-साथ विद्यालयों में पेयजल की भी सुविधा नहीं है. राज्य के कुल 656 विद्यालय में पेयजल की सुविधा नहीं है.
शौचालय और पीने का पानी किसी भी स्कूल की आधारभूत जरुरतें हैं, जितना किताब और यूनिफॉर्म जरुरी है उतना ही ये सुविधाओं की भी जरुरत है.
2022 की रिपोर्ट की मानें तो झारखंड के सरकारी स्कूलों में रंगरोगन, साफ-सफाई एवं जरूरी चीजों की खरीद के लिए यानी पूरे प्रबंधन के लिए समग्र शिक्षा अभियान के तहत 125 करोड़ रुपए दिए गए हैं. लेकिन अभी तक इनमें विभिन्न स्कूलों द्वारा 26 प्रतिशत ही राशि खर्च की जा सकी है.
रिपोर्ट की मानें तो राज्य के सरकारी विद्यालयों को प्रति वर्ष अनुदान दिया जाता है. विद्यालयों को विद्यार्थियों की संख्या के अनुरूप अधिकतम एक लाख रुपये तक अनुदान दिया जाता है. स्कूलों को इस राशि का खर्च स्कूल प्रबंधन को बेहतर करने के लिए किया जाना है, लेकिन जो आंकड़े सामने आए हैं उससे यह तो स्पष्ट है कि ये पैसे स्कूल की जरुरत पर नहीं खर्च हो पा रहे हैं.
अब सवाल उठता है कि अगर सरकार इन सुविधाओं पर खर्च कर रही है. तो फिर ये स्कूल इनती बेसिक सुविधाओं से वंचित कैसे हो जा रहा है. इन 15 लाख बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी कौन लेगा. क्या स्कूल प्रबंधन ही इसके लिए जिम्मेवार है या शिक्षा विभाग या फिर राज्य सरकार . फिलहाल झारखंड में शिक्षा मंत्री का पदभार स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास ही है. फिर भी राज्य में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली चिंता का विषय है. अगर बच्चे इन छोटी-छोटी मूलसुविधाएं नहीं मिलने के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं तो यह राज्य के लिए बेहद ही शर्म की बात है.आने वाले समय में राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा तभी राज्य का विकास संभव हो पाएगा.