असम नेशनल फिल्म फेस्टिवल में फिल्म ‘लखी माई’ की हुई स्पेशल स्क्रीनिंग

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हर इंसान में सृजनात्मक क्षमता होती है. सामाजिक गतिविधियों और दैनिक जीवन से प्रेरणा लेकर सृजनात्मक क्षमता को निखारने का हम हर रोज प्रयास करते हैं. जब यह प्रयास फलीभूत होता है, तो कहानियां, कविताएं और फिल्मों की पटकथाएं लिख डालते हैं. हम हर रोज खुली आंखों से दुनिया देखते हैं. हजारों लोग हर रोज एक ही सामान को देखते हैं. लेकिन लोगों की नजरें अलग-अलग होती हैं और हर किसी के देखना का नजरिया भी अलग होता है. तभी तो कोई किसी वस्तु को उपयोगी मान बैठता है, तो कोई उसी वस्तु को अनुपयोगी.

झारखंड और किसान

झारखंड राज्य कृषि प्रधान राज्य है. राज्य में 43 प्रतिशत भूमि खेती योग्य है. किसानों की एक बड़ी जनसंख्या कृषि कार्य पर निर्भर है. जो कि मुख्य रूप से बरसात के मौसम में खेतों में धान की बुआई करते हैं और हिन्दी माह के मुताबिक अगहन मास में धान की कटाई करते हैं. धान की रोपाई से धान की कटाई तक कई प्रक्रियाएं, सांस्कृतिक रीति-रिवाज, पूजा-पाठ अन्य गतिविधियां होती हैं. जो कि पूरे झारखंड में प्रचलित हैं. चाहे वह धन रोपनी के समय सामूहिक लोकगीत हो या फिर समय-समय पर पूजा-पाठ.

लोग चावल कहते हैं, हमारे लिए ‘लखी माई’ – दामोदर यादव

झारखंड प्रांत में हजारीबाग जिला है. जहां बरही अनुमंडल क्षेत्र में रसोइया धमना पंचायत है. पंचायत के अधीन पुरहरा गांव आता है. जहां से होरिल यादव फिल्म प्रोडक्शन के निदेशक नितेश कुमार आते हैं. किसान परिवार में जन्मे नितेश ने बचपन से नाना-नानी के साथ मिलकर खेती की, धान की बालियों से चावल निकाली. धनरोपनी से धन कटनी तक के सफर को देखा. जिसका विस्तृत विवरण उन्होंने डॉक्यूमेट्री फिल्म ‘लखी माई’ के जरिए प्रदर्शित किया है. इस फिल्म में पार्श्व संगीत (Background Music) का काफी प्रयोग किया गया है. नीतेश के नाना दामोदर यादव और नानी जामनी देवी ने ‘लोक गीत’ के माध्यम से पूरी प्रक्रिया को दर्शाने का प्रयास किया है. इस बीच दामोदर यादव आम नागरिकों से कहते हैं कि “लोग इसे चावल कहते हैं, लेकिन हमारे लिए लखी माई”. दरअसल, झारखंड में किसानों की अर्थव्यवस्था का मुख्य श्रोत चावल ही हैं. जिसे वे लक्ष्मी मानते हैं. ‘लक्ष्मी’ को खोरठा भाषा में ‘लखी’ कहा गया है और ‘मां’ को ‘माई’ की संज्ञा दी गयी है.

धनरोपनी से धनकटनी तक पूजा की परंपरा

यूं तो हम रोज देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं. लेकिन किसान धनरोपनी से धनकटनी तक विभिन्न तरह की पूजा-अर्चना करते हैं. जिसकी शुरुआत धूरिया पूजा से होती है. जो कि खेती शुरु होने के पहले की जाती है. जो कि तीन चरणों में होती है. पहले चरण में गावां देती की पूजा, दूसरे चरण में मंडपा पूजा और तीसरे चरण में कुम्भराइन बाबा की पूजा होती है. ये तीनों पूजन अलग-अलग समय में की जाती है. हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से पूजा की जाती है…

असम नेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘लखी माई’ की स्क्रिनिंग

होरिल यादव फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘लखी माई’ की स्पेशल स्क्रिनिंग दो दिवसीय फिल्म फेस्टिवल “चलचित्रम् नेशनल फिल्म फेस्टिवल असम” में हुई. झारखंड में धान की खेती को लेकर दिखायी गयी प्रक्रिया की लोगों ने काफी सराहना की. पुरहरा गांव में बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म की लोगों ने जमकर तारीफ की. क्योंकि इसमें सारे दृश्य असली (original) हैं. फिल्म का निर्देशन, कैमरा, वीडियो संपादन और वॉइस ओवर खुद नीतेश ने किया है. मुख्य किरदार के रूप में नीतेश के नाना दामोदर यादव और नानी जामनी देवी नजर आ रही हैं. ‘लखी माई’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म को झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित ‘चित्रपट झारखंड’ में 60 फिल्मों में 13 फिल्मों का चयन हुआ था. जिनमें से एक ‘लखी माई’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी थी.

प्रणय प्रबोध ने लिखी ‘लखी माई’ की पटकथा

धान से निकलने वाले चावल के दाने पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म की पटकथा लिखना आसान नहीं था. लेकिन इतना कठिन भी नहीं था. कृषि कार्य को बचपन से देखता आया हूं. किसान भाईयों के साथ उठना-बैठना, उनसे खेती के संबंध में जानकारी लेना, रीति-रिवाज, परंपरा और संस्कृति को जानना अच्छा लगता है. अनुभव के आधार पर एक रूपरेखा तैयार की. रूपरेखा को शब्दों की मदद से वाक्यों में पिरोया. चावल के दाने को उपजाने में जो मेहनत लगती है, उसे किसानों की आंखों से देखने का प्रयास किया. तब जाकर ‘लखी माई’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की पटकथा तैयार हुई. हालांकि इस बीच शुरुआत और अंत करना काफी मुश्किल लग रहा था. लेकिन लैपटॉप के बदन दबते गए और ‘लखी माई’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म की पटकथा तैयार हो गयी.

श्रेय और सहयोग

नीतेश फिल्म निर्माण का श्रेय अपने नाना दामोदर यादव और नानी जामनी देवी को दिया है. साथ ही गुरु प्रकाश, बीजू टोप्पो, मेघनाथ, रूपेश साहू, तुषार, पुरुषोत्तम, रोहित पांडे, हिमांशु, रौशन समेत पूरे ग्रामवासियों का सहयोग करने के लिए आभार जताया है.

प्रणय प्रबोध
(स्वतंत्र पत्रकार/पटकथा लेखक)

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