झारखंड के इन तीन अधिकारियों के खिलाफ कार्मिक विभाग ने जारी की अधिसूचना, तीनों अधिकारियों की है भ्रष्टाचार में संलिप्तता

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झारखंड और भ्रष्टाचार का रिश्ता दिन ब दिन गहराता जा रहा है. यहां भ्रष्टाचार में सबसे अधिक संलिप्तता अधिकारियों की ही देखी जा रही है. जब राज्य के आला अधिकारी आईएएस पूजा सिंघल और छवि रंजन इतना बड़ा घोटाला कर भ्रष्टाचार में राज्य का नाम आगे बढ़ा ही दिया है तो फिर राज्य के बीडीओ, सीओ पीछे कैसे रह सकते हैं. दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट राज्य के तीन बीडीओ सीओ का किया धरा का बखान करती है,इतना ही नहीं इन तीनों अधिकारियों को लेकर झारखंड कार्मिक विभाग ने अधिसूचना भी जारी कर दी है.

सबसे पहले हम बात करते हैं रांची जिला के कांके अंचल के अंचलाधिकारी अनिल कुमार की, अनिल कुमार पर आरोप लगा था कि उन्होंने जमीन माफिया से मिल कर जुमार नदी को भरकर बेचने में अहम भूमिका निभाई.हमारे राज्य में ऐसे सीओ हैं जो गलत काम को रोकने के बजाय ,बहती गंगा में हाथ धोना पसंद कर रहे हैं.

दरअसल साल 2020 में सीओ अनिल कुमार पर कांके अंचल स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के पीछे जुमार नदी को भरकर बेचने की तैयारी में जमीन माफिया से मिलीभगत और सरकारी जमीन घोटाले में संलिप्तता का आरोप लगा था.
हालांकि इस मामले में कार्मिक विभाग ने अनिल कुमार पर एक्शन लेते हुए असंचायत्मक प्रभाव से एक वेतन वृद्धि पर रोक लगा दी है.

दूसरा भ्रष्टाचार का मामला है दुमका के जामा के तत्कालीन बीडीओ विवेक कुमार सुमन का. विवेक कुमार सुमन सुमन के विरुद्ध प्रखंड अंतर्गत पंचायत स्तर की योजनाओं का प्रखंड स्तर से एफटीओ करने, बिना काम कराए कुल 9,73,500 की राशि पंचायत एवं प्रखंड से निकासी करने और साथ ही साथ मनरेगा एक्ट का खुलेआम उल्लंघन करने का आरोप लगा था.
अब बीडीओ विवेक कुमार सुमन के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही संचालित करने का निर्णय लिया गया है.

तीसरा मामला है साहिबंगज के पतना के तत्कालीन बीडीओ मुकेश कुमार का. मुकेश कुमार पर आरोप लगा था कि उन्होंने मनरेगा के तहत संचालित परियोजनाओं में वित्तीय अनियमितता बरती थी. उनके खिलाफ कुल 14 आरोप लगाए गए थे.
अब कार्मिक विभाग ने इस मामले में उनके खिलाफ दो वेतन वृद्धि पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्णय लिया है.

सीओ, बीडीओ,डीसी ,आइएएस बनने के लिए बच्चे दिन रात एक कर के पढ़ाई करते हैं. तैयारी करते समय इनके मन में देश को आगे बढ़ाने की प्रबल इच्छा होती है, लेकिन पदस्थापित होने के बाद ऐसा क्या हो जा रहा है कि यही लोग इतनी घृणित कामों को करने के लिए विवश हो जाते हैं, जो काम इनके द्वारा किया जा रहा है उसमें कहीं से भी देश हित नहीं दिखता है. इसमें सिर्फ इनका स्वार्थ निहित है. लेकिन गड़बड़ी हो कहां से रही है, सिस्टम में क्या बदलाव की जरुरत है. सरकार को व्यवस्था में सुधार लाना ही होगा. इन अधिकारियों को अपनी शक्तियों का सही उपयोग करना होगा तभी समाज से कर्प्शन फ्री हो पाएगी, अन्यथा चीजों का बद् से बद्तर होने में समय नहीं लगेगा.

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