हमारे देश में जहां एक ओर जाति रहित राजनीति की बात की जाती है वहीं फिलहाल देश में जाति की ही राजनीति खुलेआम की जा रही है. देश में अब जातीय जनगणना की मांग बढ़ती हुई दिख रही है और बिहार,राजस्थान के बाद अब यह मांग झारखंड की राजनीतिक गलियारों तक में प्रवेश कर चुका है. अब झारखंड में भी बिहार के तर्ज पर जाति आधारित जनगणना होगी,दरअसल ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में जातीय आधारित जनगणना का मामला तेजी से उठ रहा है. कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव ने झारखंड में भी बिहार के तर्ज पर जातीय जनगणना कराने की मांग सदन में रखी है. प्रदीप यादव के इस सवाल पर राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा कि झारखंड में जाति आधारित जनगणना कराने का विचार किया जा रहा है, इसे जल्द केंद्र तक पहुंचाया जाएगा.
बता दें कि झारखंड में लंबे समय से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग उठ रही है.भारत में हर एक दशक यानी 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है.इससे सरकार को विकास योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है. लेकिन जातिगत जनगणना का मतलब होता है जाति के आधार पर लोगों की गणना करना. जाति आधारित जनगणना के दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाती है. इससे देश की आबादी के बारे में पता चलेगा ही, साथ ही इस बात की जानकारी भी मिलेगी कि देश में कौन सी जाति के कितने लोग रहते हैं.
जातीय जनगणना के बाद ये भी साफ हो सकता है कि कौन सी जाति आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ी हुई है। ऐसे में सरकार उन जातियों के विकास के लिए नए सिरे से योजनाएं बना सकती हैं . और ऐसे जातियों को समाज में उचित जगह दिलाने की कोशिश में ये जनगणना मददगार साबित हो सकती है.
बता दें कि आजादी के बाद से जनगणना के दौरान अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के अलावा अन्य आबादी की जाति-वार गणना नहीं की गई है। राजनीतिक पार्टियां यह मांग मुख्यत ओबीसी कौटेगरी में आने वाले लोगों के लिए कर रही है.
विधानसभा में कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि राज्य में पिछड़ों की आबादी लगभग 50 से 60 प्रतिशत है फिर भी सरकारी सेवाओं में इनको मात्र 14 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, वहीं जिला कोटी की नौकरियों में नौ जिलों में ओबीसी का आरक्षण शून्य क्यों है. एसे में जातीय जनगणना कराने की खासा जरुरत है.
बता दें झारखंड में फिलहाल ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता है इसे 27 प्रतिशत करने की मांग हो रही है,वहीं एसटी को 26 प्रतिशत एससी को 10 प्रतिशत ओबीसी -1 को 8 प्रतिशत औबीसी- 2 को 6 प्रतिशत और आर्थिक रुप से कमजोर को 10 प्रतिशत का आरक्षण प्राप्त है.
झारखंड में महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस और राजद पार्टी ने जाति आधारित जनगणना का समर्थन किया है.
राष्ट्रीय जनता दल के वरीय नेता और पूर्व मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि झारखंड की सामाजिक संरचना आरक्षण के अनुकूल है। राजद का स्पष्ट मानना है कि अति पिछड़ों के आरक्षण पर आधारित जनगणना हो। इससे वंचित तबके का स्तर बेहतर करने के साथ-साथ सामाजिक उत्थान में मदद मिलेगी। उन्होंने राज्य सरकार को सुझाव दिया कि जातिगत जनगणना के पक्ष में विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक पारित कराया जाए।
इसके अलावा आजसू पार्टी ने भी जातीय जनगणना की मांग की है. मुख्य प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने कहा कि आजसू पहले से ही जातिगत जनगणना की मांग करती रही है। इससे पता चलेगा कि झारखंड में कौन सी जाति घट रही है और कौन बढ़ रही है। जातिगत जनगणना होना ही चाहिए।
लेकिन देश के कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने जाति आधारित जनगणना को सही नहीं माना है. उनका मानना है कि जातिगत जनगणना से आरक्षण का मुद्दा तूल पकड़ सकता है. इसके होते ही फिर देश में तूफान खड़ा होने की संभावना है. अगर इससे आरक्षण के मुद्दा को हवा मिली तो ‘अपर कास्ट’ इसके खिलाफ खड़ा हो सकता है.
एक बार ये जनगणना आ जाएगी तो वो जातियां जो 1931 की जनगणना के बाद अब पिछड़ी हुई पाई जाएंगी, वो राजनीतिक दलों के सीधे टार्गेट पर होंगी। यूं कहिए कि वोट बैंक, ऐसे में करीब-करीब सभी दल सिर्फ उसी वोट बैंक को हासिल करने की होड़ में लग जाएंगे। परिणाम ये होगा कि समावेशी यानि सबके विकास की अवधारणा को गहरी चोट पहुंचेगी।
इसके अलावा जातीय जनगणना से परिवार नियोजन कार्यक्रम को भी नुकसान की आशंका है। जनगणना के बाद अगर किसी जाति या समाज को पता चला कि उनकी तादाद कम है, तो वो अपनी जनसंख्या बढ़ाने की होड़ में लग सकते हैं। जाहिर है कि इसका सीधा असर परिवार नियोजन कार्यक्रम पर पड़ेगा और इसका प्रतिकूल असर भारत की आबादी पर भी पड़ेगा.
हालाँकि 2011-12 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार ने पहली बार सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना की थी, लेकिन सरकार के भीतर डेटा के बारे में अलग-अलग राय के कारण इसके आंकड़े कभी जारी ही नहीं किए गए.
इसके बावजूद कुछ दिनों पहले बिहार में जातीय जनगणना को बिहार हाईकोर्ट ने हरी झंडी दिखा दी है. बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक में भी जातीय जनगणना हो चुकी है. हालाँकि, केंद्र की भाजपा सरकार का कहना है कि प्रशासनिक, कानूनी और तकनीकी मुद्दों के कारण राष्ट्रीय जनगणना के दौरान जाति सर्वेक्षण करना चुनौतीपूर्ण है. अब देखना होगा कि झारखंड के संदर्भ में जाति आधारित जनगणना की मांग कहां तक पहुंच पाती है और यह सफल होता है या नहीं.