झारखंड में 14 लोकसभा सीटों के लिए चार चरणों में संपन्न हुए चुनावों में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान हुआ है। इस बार नक्सल प्रभाव वाले इलाकों में भी लोगों ने मतदान किया, जहां पिछले सालों में वोट बहिष्कार की गूंज के बीच लोकतंत्र की स्याही सूखी रह जाती थी। नक्सल उन्मूलन के बाद वहां लोकतंत्र गुलजार हुआ है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बूढ़ापहाड़ जैसे माओवादियों के गढ़ में जम कर वोटिंग हुई है। 30 सालों के बाद यहां मतदान का उत्साह रहा है, वहीं झारखंड के पहले चरण के मतदान में 13 मई को पलामू लोकसभा इलाके के महुदंड, कालापहाड़, नौडीहा के डगरा में जम कर वोटिंग हुई थी.
वर्तमान में चाईबासा का टोंटो इलाका भी माओवादियों के प्रभाव में है, लेकिन नक्सलियों के प्रभाव से मुक्ति की राह देख रहे ग्रामीणों ने यहां भी 20 सालों के बाद मतदान किया है। टोंटो प्रखंड के रेंगडाहातू में 20 सालों बाद ग्रामीणों ने मतदान किया है। वहीं, पहले चरण में खूंटी के पीएलएफआई व माओवाद प्रभावित इलाकों में भी उत्साहजनक वोटिंग हुई थी, पत्थलगड़ी प्रभावित खूंटकटी गांवों में भी 2019 में जहां वोट का बहिष्कार हुआ था, वहां लोगों ने जम कर वोट डाले हैं। दूसरे चरण में भी चतरा के टीपीसी प्रभावित इलाकों में मतदान का प्रतिशत ठीक-ठाक रहा है। संताल के दुमका का शिकारीपाड़ा का इलाका माओवादियों के लिहाज से चुनौतीपूर्ण होता था, लेकिन यहां भी अब माओवाद की कोई आहट नहीं रही है.
राज्य पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2014 के चुनाव में सर्वाधिक नक्सल हिंसक वारदातें हुई थीं। 24 अप्रैल 2014 को दुमका से चुनाव कार्य संपन्न करा कर लौट रहे चुनावकर्मियों पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था। पांच पुलिसकर्मी समेत आठ लोग मारे गए थे। चुनाव हिंसा की ये सबसे बड़ी वारदात थी। साल 2014 में कुल 13 नक्सल कांड राज्यभर में हुए थे। इस साल चुनाव में चार विस्फोट, पांच पुलिस मुठभेड़, एक पुलिस आक्रमण, 2 मिसचीफ, एक मारपीट की घटना हुई थी। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में 10 नक्सल वारदातें हुई थीं। चार पुलिस मुठभेड़, एक पुलिस आक्रमण, पांच आगजनी की वारदातें हुई थीं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में माओवादियों ने पलामू और खरसावां में भाजपा के कार्यालय को उड़ा दिया था। जबकि विस चुनाव में चंदवा में तीन पुलिसकर्मियों पर हमला कर मौत के घाट उतार दिया गया था.
झारखंड में बीते 10 सालों में चुनावों में हिंसा की स्थिति का आकलन करें तो साल 2014 के चुनाव में सर्वाधिक नक्सल हिंसक वारदातें हुई थीं। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में 10 नक्सल वारदातें हुई थीं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में माओवादियों ने पलामू और खरसावां में भाजपा के कार्यालय को उड़ा दिया था। जबकि विस चुनाव में चंदवा में तीन पुलिसकर्मियों पर हमला कर मौत के घाट उतार दिया गया था.