झारखंड में एक बार फिर मैनहर्ट कंपनी का मामला उठ रहा है. झारखंड हाईकोर्ट ने मैनहर्ट मामले को लेकर एसीबी से नाराजगी जताई है. दरअसल झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने मैनहर्ट घोटाला मामले की एसीबी में दर्ज प्रारंभिक जांच को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की है. सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने एसीबी यानी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की रिपोर्ट पर नाराजगी जताई है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से सीलबंद रिपोर्ट दाखिल किये जाने पर नाराजगी जताते हुए अगली सुनवाई के दौरान एसीबी के एसपी को सशरीर हाजिर होने का निर्देश दिया है.
वहीं इस मामले की अगली सुनवाई आगामी 17 अगस्त को होगी. रिपोर्ट्स के अनुसार एसीबी की ओर से अदालत के समक्ष जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, उसमें स्पष्ट लिखावट नहीं होने के कारण प्रार्थी और उनके अधिवक्ता ही नहीं, कोर्ट भी पढ़ने में सक्षम नहीं था. रिपोर्ट अस्पष्ट होने के कारण कोर्ट ने इस पर नाराजगी जाहिर की है.
दरअसल झारखंड में साल 2005 से ही मैनहर्ट कंपनी घोटाले का मामला चल रहा है. बता दें सरयू राय ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पर इस मामले में गंभीर आरोप लगाए हैं.
पूरे मामले पर एक नजर डाले तो एक साल पहले पूर्वी सिंहभूम से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मैनहर्ट घोटाला मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी. उनका कहना है कि मैनहर्ट घोटाला की जांच में आरोप सिद्ध हो जाने और मुख्य अभियुक्त सहित कई अन्य अभियुक्तों का जवाब आने के बावजूद राज्य सरकार आगे की कार्रवाई नहीं कर रही है. इस वजह से झारखंड हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई है. उन्होंने इस मामले में राज्य सरकार, डीजीपी, एसीबी के एडीजी और एसीबी के एसपी को पार्टी बनाया है. उनका कहना है कि साल 2005 में मैनहर्ट घोटाला हुआ था.
याचिका में कहा गया है कि साल 2003 में हाई कोर्ट ने एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए रांची में सिवरेज-ड्रेनेज की मुकम्मल व्यवस्था करने का आदेश दिया था. इस पर जुलाई 2003 में सरकार ने निर्माण कार्य के लिए परामर्शी के चयन को लेकर टेंडर निकाला था. इसमें ऑपरेशन रिसर्च ग्रुप, ग्रु स्पैन ट्रेवर्समॉर्गन के साथ नगर निगम के बीच एमओयू हुआ था. दोनों कंपनियों को डीपीआर तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास ने पूर्व के एमओयू को रद्द कर दिया था. इसके बाद 21.40 करोड़ देकर मैनहर्ट को जिम्मेवारी दी गई.
यह मामला विधानसभा में भी उठा. तब स्पीकर ने एक समिति बनाई. इस पर नगर विकास विभाग ने अपने ही विभाग के चीफ इंजीनियर के नेतृत्व में एक टेक्निकल कमेटी बना दी. तब विधानसभा की समिति ने मैनहर्ट पर सवाल खड़े किए थे. लेकिन सरकार ने विधानसभा के इंप्लिमेंटेशन कमेटी की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. इन सबके बीच पूर्व में एमओयू करने वाली कंपनी ओआरजी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
सरयू राय का कहना है कि इतना गंभीर मामला अभी तक अटका पड़ा है इसलिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है.
इस मामले में सरयू राय ने कहा था कि मैनहर्ट के नाम से जो टेंडर रांची के सीवरेज-ड्रेनेज की डीपीआर तैयार करने के लिए डाली गयी, वह असली मैनहर्ट सिंगापुर नहीं है, बल्कि इसके लिए भारत में इस नाम की संस्था बनाकर टेंडर डाला गया था. सरयू राय ने मैनहर्ट को रांची में सीवरेज ड्रेनेज के संबंध में परामर्श एवं अन्य कार्य दिए जाने में 21 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया है. राज्य सरकार के निर्देश के बाद दिसंबर 2020 में एसीबी में पीई दर्ज की गई थी. लेकिन उसकी रिपोर्ट अब तक प्राप्त नहीं होने पर सरयू राय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. उनकी ओर से कहा गया है कि ढाई साल बीतने के बाद भी मैनहर्ट घोटाला मामले में पीई में क्या आया, यह अब तक पता नहीं चला है.
अब 17 अगस्त को अगली सुनवाई में ही पता चलेगा कि यह मामला आगे क्या रुख लेगा.