जानें ,क्या है करम पर्व मनाने के पीछे की कहानी

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करम मुख्यता ‘भाई-बहन’ के प्यार का त्यौहार है. हालांकि, ज्यादातर उद्देश्यों में युवतियां अपने भाइयों के स्वास्थ्य की कामना, अपने लिए अच्छे वर की कामना, अच्छे फसल की कामना और पारिवारिक सुख शांति की कामना करती हैं.
करम पर्व न केवल झारखंड में बल्कि झारखण्ड के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा और बांग्लादेश में भी मनाया जाता है.

बता दें कि करम एक प्रकार का वृक्ष है, जिसे आदिवासी समुदाय के साथ साथ हिंदुओं के द्वारा भी भादो महीने की एकादशी को पूजा जाता है. इस दिन श्रद्धालु उपवास रहते हैं और पूजा के पश्चात् रात भर नृत्य करते हैं जिसे करम नाच कहा जाता है. फिर सुबह में युवक-युवतियां नदी या किसी तालाब में करम डाली को विसर्जित कर देते हैं. ‘करम त्यौहार’ महज एक वृक्ष की पूजा नहीं है, बल्कि समस्त प्रकृति की उपासना है.

विभिन्न आदिवासी समुदायों में ‘करम’ की कहानी थोड़े-बहुत फर्क के साथ प्रचलित है, लेकिन कमोबेश कहानी का आधारभूत ढांचा एक ही है. लोगों के बीच जो प्रमुख किंवदंती प्रसिद्ध है आज हम उसके बारे में चर्चा करेंगे.

करमा पर्व की कहानी सात भाई और सात गोतनी पर आधारित है. सात भाइयों में सबसे छोटा ननका और उसकी पत्नी ननकी धन दौलत से काफी धनवान थे, लेकिन शादी के लंबे समय के बाद उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं होने से दोनों काफी चिंतित रहते थे, एक दिन ननका को स्वप्नमें गांव देवती प्रकट होती है. जिन्होंने उन्हें करमा की पूजा करने की सलाह देती है. जिसके पश्चात दोनों पति पत्नी भादो एकादशी तृतीय शुक्ल पक्ष के दिन कर्मा की डाली को लाकर पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं और संतान प्राप्ति की कामना करते हैं. देखते ही देखते 1 साल के भीतर ही उन्हें जुड़वा संतान की प्राप्ति होती है. कर्म और धर्म करने के अनुरूप संतान की प्राप्ति होने को लेकर दोनों पति-पत्नी ने बड़े बेटे का नाम करमा और छोटे बेटे का नाम धर्मा रख देते हैं, दोनों भाई बहुत मेहनती और दयावान थे. वहीं, करमा की पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी. यहां तक कि धरती मां का भी अपमान कर देती थी जिससे करमा बहुत दुखी हो गया और वह एक दिन घर छोड़कर चला गया. करमा के जाते ही पूरे इलाके के कर्मों-किस्मत उसके साथ चला गया. पूरे इलाके में अकाल पड़ गया. सभी जीव-जंतु परेशान रहने लगे. इसको देख धर्मा अपने भाई करमा को ढूंढने निकल गया. जब धर्मा अपने भाई करमा को ढूंढ कर गांव वापस आने लगा तो सभी जीव-जंतु अपनी पीड़ा बताने लगे. तभी करमा ने सभी को अपना कर्म बताया और दूसरों को परेशान नहीं करने की सलाह दी. घर लौटने के बाद करमा ने डाल को पोखर में गाड़कर पूजा की. उसके बाद पूरे इलाके में खुशहाली लौटाई और सभी खुशी-खुशी आनंद से रहने लगे. इसी को याद कर प्रत्येक वर्ष करमा पूजा मनाया जाने लगा. इससे यह स्पष्ट होता है कि सभी को अपने कर्म के अनुरूप ही फल मिलता है.

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