मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर हमला बोला है. हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए एक ट्वीट किया है. ट्वीट में खेलो इंडिया स्कीम के तहत राज्य को केंद्र के तरफ से आवंटित राशि पर सीएम ने सवाल किया है. हेमंत सोरेन ने झारखंड को बेहद कम फंड मिलने पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने पोस्ट कर कहा कि झारखंड को सिर्फ नौ करोड़ रुपये मिलना सरासर अन्याय है.हेमंत सोरेन ने इस योजना के तहत राज्यों को मिलने वाली राशि की लिस्ट भी शेयर की है. लिस्ट में राज्यों के सामने आवंटित राशि अंकित है. लिस्ट में एक जगह पर हॉकी का चिन्ह है. वहां 426.13 करोड़ रुपये दर्ज है. यह राशि गुजरात सरकार को दी गयी है. यह राशि उत्तर प्रदेश को आवंटित राशि 438.27 करोड़ से 12 करोड़ कम है. इन दो राज्यों के अलावा किसी भी राज्य की राशि इतनी अधिक नहीं है.
अब न केवल झारखंड सरकार बल्कि कई राज्यों जैसे हरियाणा और तमिलनाडु में भी केंद्र सरकार के द्वारा आवंटित इस राशि को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं. केंद्र सरकार द्वारा गुजरात को सबसे ज्यादा फंड देने पर सोशल मीडिया में सवाल उठाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि गुजरात सरकार को इतनी अधिक राशि दी जाती है, जबकि शायद ही वहां का कोई खिलाड़ी ओलंपिक में उल्लेखनीय प्रदर्शन कर पा रहा है. जबकि हरियाणा और मणिपुर जैसे राज्य, जहां के कई खिलाड़ी अच्छे प्रदर्शन करते हैं,उन्हें गुजरात की तुलना में काफी कम फंड दिया गया है जो बिल्कुल गलत है.
बता दें खेलो इंडिया, साल 2017-18 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ज़मीनी स्तर के एथलीटों को एक मंच प्रदान करने तथा संपूर्ण भारत में खेल के बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिये परिकल्पित एक योजना है. इसके तहत राज्यों को खेल में बच्चों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के तरफ से फंड दी जाती है.
2024 के बजट सत्र में इस फंड की घोषणा की गई जिसमें सबसे अधिक गुजरात को 426.13 करोड़ रुपए दिए गए हैं. उत्तर प्रदेश को गुजरात के बाद सबसे अधिक 438.27 करोड़ के फंड मिले हैं. वहीं सबसे कम फंड गोवा को मिला है जो सिर्फ 4.24 करोड़ हैं. वहीं पुड्डुचेरी को 8.75 करोड़ और झारखंड को 9.63 करोड़ की राशि आवंटित की गई है.
हरियाणा को 66.59 करोड़ का फंड मिला है जो गुजरात की अपेक्षी बहुत ही कम है. हरियाण के खिलाड़ी ओलंपिक से लेकर कई बड़े खेल प्रतियोगिता में दोश के लिए पदक लेकर आते हैं और देश को रिप्रेजेंट करते हैं. अब हरियाण के सांसद भी इसका विरोध कर रहे हैं. रोहतक सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हरियाणा की अनदेखी सिर्फ इस बार के केंद्रीय बजट में नहीं हुई, बल्कि हर मौके पर भाजपा का हरियाणा विरोधी चेहरा देखने को मिला है। पूरी दुनिया में देश का तिरंगा लहराने वाले व देश में सबसे ज्यादा मेडल जीतने वाले हरियाणा के खिलाड़ियों को केंद्र सरकार ने खेलो इंडिया के तहत सिर्फ तीन फीसदी बजट दिया है। यह हरियाणा के साथ भेदभाव नहीं है तो क्या है.
वहीं तमिलनाडु को 20 करोड़ की राशि की घोषणा पर तमिलनाडु के युवा कल्याण एवं खेल विकास मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है , उन्होंने कहा उत्तर प्रदेश और गुजरात को 400 करोड़ रुपये से अधिक का उदार आवंटन मिला है, जबकि तमिलनाडु को 20 करोड़ रुपये की मामूली राशि दी गई है। तमिलनाडु ने शतरंज ओलंपियाड, हॉकी चैम्पियनशिप टूर्नामेंट, वर्ल्ड सर्फिंग लीग, स्क्वैश वर्ल्ड कप, खेलो इंडिया यूथ गेम्स आदि का आयोजन किया है. तमिलनाडु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खेल क्षेत्र का चेहरा बन रहा है। खेल क्षेत्र में इन रचनात्मक गतिविधियों के बावजूद, तमिलनाडु को केवल 20 करोड़ रुपये मिले हैं। यह तमिलनाडु के खिलाड़ियों के साथ किया गया बहुत बड़ा अन्याय है। मैं तमिलनाडु के लिए धन आवंटित करने में भाजपा के फासीवादी दृष्टिकोण की कड़ी निंदा करता हूं,”
पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से सांसद कीर्ति आजाद ने भी सोशल मीडिया एक्स पर इस आवंटन लिस्ट को जारी किया है. उन्होंने सवाल उठाया था कि मणिपुर व हरियाणा राज्य, जहां के ओलंपियंस सबसे अधिक मेडल देश के लिए लाते हैं, उन्हें कितनी कम राशि मिलती है और गुजरात को कितनी अधिक, जहां से कोई भी खिलाड़ी कभी उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं करता (क्रिकेट को छोड़ कर).
वापस झारखंड के मामले पर आते हैं. हेमंत सोरेन का केंद्र सरकार से सवाल करना जायज है. झारखँड खेल क्षेत्र में उभरता हुआ राज्य है, वूमेन हॉकी में झारखंड की 6 प्लेयर हैं. इंडियन क्रिकेट टीम से लेकर आईपीएल तक में झारखंड के खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं अन्य कई खेलों में भी झारखंड के खिलड़ी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. झारखंड अन्य राज्यों के अपेक्षाकृत कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाला राज्य भी है, यहां के खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए मुलभूत सुविधाओं भी नहीं मिल पाती है. ऐसे में कई टैलेंट पैसे की वजह से भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं. उसमें राज्य के साथ केंद्र सरकार की भेदभाव चिंतनीय है.