झारखण्ड सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों के बच्चों को तोहफा!!

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राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए झारखण्ड सरकार की ओर से नया तोहफा। एक स्कूल,एक ही योजना लेकिन जात-पात के नाम पर जो भेद भाव हो रहा था,अब उसे हटा दिया गया है. हम बात कर रहे हैं सरकारी स्कूलों में साइकिल के लिए मिलने वाली रक़म कि जो एसटी/एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यक बच्चों को सामान्य वर्ग के बच्चों के मुकाबले अधिक दी जाती थी, लेकिन, अब इस भेदभाव को सरकार ने खत्म करने का फैसला किया है. बता दे कि एसटी/एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यक बच्चों को कल्याण विभाग कि ओर से साईकिल के लिए 4500 व सामान्य वर्ग के बच्चों को झारखंड शिक्षा परियोजना (जेईपीसी) की ओर से 3500 रुपए दिया जाता था. कई लोगों ने इस मामले को लेकर सरकार की तीखी आलोचना की कि सरकार के विभाग खुद ही जात-पात के आधार पर बच्चों के साथ भेद-भाव कर रहे हैं. ऐसे मे बच्चों पर भी इसका असर पड़ेगा.

बहरहाल, अब स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग जेईपीसी के तैयार किए गए प्रस्ताव में ऐसा कहां गया कि या तो एसटी/एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यक बच्चों के खाते में भी सिर्फ 3500 रुपये ही ट्रांसफर करे या फिर प्रत्येक बच्चे के लिए 1000-1000 रुपये अलग से दिये जायें. विभाग इस बारे में गंभीर है क्यूंकि जहां एक ही स्कूल और योजना भी एक हो, वहां ऐसे भेदभाव का बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में दोनो वर्ग के बच्चों को एक समान राशि मिलनी चाहिए. शिक्षा विभाग से जेईपीसी द्वारा कहा गया कि विभाग इस विषय के लिए पैसे का आकलन करे।संभावना है कि मानसून सत्र के दौरान अनुपूरक बजट के जरिये इसके लिए पैसे लेने की व्यवस्था की जायेगी.

यह सोचने वाली बात है कि सामान्य जाति के छात्रों को तीन शैक्षणिक वर्षों 2020-21, 2021-22 और 2022-23 में साइकिल या उसकी राशि नहीं मिली है। इनमें से 2020-21 और 2021-22 शैक्षणिक सत्र के बच्चे मैट्रिक भी पास कर गए हैं। साइकिल देने की योजना हर साल बनती रही, लेकिन समान्य वर्ग के बच्चों को कभी इन योजना का लाभ नहीं मिला। ये बच्चे स्कूल भी छोड़ चुके हैं, और एक बार फिर इन्हें पैसे देने की तैयारी शुरू हुई है।

आपको यह भी बता दे कि कल्याण विभाग ने शैक्षणिक वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए टेंडर निकाला है। वैसी कंपनी इस टेंडर का हिस्सा ले सकती है, जिसे एक साल में 3 लाख साइकिल आपूर्ति करने का अनुभव हो। टेंडर के महत्वपूर्ण शर्त के अनुसार साइकिल का टेंडर उसी कंपनी को मिलेगा, जिसका सालाना टर्नओवर 250 करोड़ और एक साल में आठ लाख साइकिल निर्माण की क्षमता हो। गौरतलब है कि 2020 से ही आठवीं कक्षा के बच्चों को साइकिल नहीं मिली है। कई बार इसकी तैयारी शुरू हुई और हर बार मामला टेंडर में फंस गया है. बहरहाल, अब देखना यह होगा कि संबंधित विभाग इस पूरे मामले को लेकर आखिर कितना गंभीर है, और क्या इस अतिरिक्त गंभीरता से भी बच्चों के हिस्सा साईकिल आ भी पाती है या नहीं.

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