झारखंड के इन गांवों में अब तक नहीं पहुंची बिजली !

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पूरा देश दीवाली की तैयारियों में लगा है। हम सभी अपने घरों को सजाने के लिए दिया और झालरें खरीद रहे हैं। झालरें और तमाम तरह की लाइटें बिजली से चलती हैं। क्या हो, अगर दीवाली के दिन आपके गांव या शहर में बिजली ही नहीं रहे? झारखंड में ऐसे ही कई गांव है, जो सालों से अंधेरे में है और इस दीवाली भी शायद वहां के लोगों को अंधेरे में रहना पड़े। हम आपको बता रहे हैं ऐसे ही तीन गांवों की कहानी.

झारखंड के बोकारो जिले में ये तीनों आदिवासी गांव हैं – बिरहोर डेरा, काशीटांड़ और असनापानी.

रिपोर्टस् के मुताबिक असनापानी गांव में करीब 25 परिवार, बिरहोर डेरा में 20 परिवार और काशीटांड़ गांव में 20 आदिवासी परिवार रहते हैं। लगभग 70 परिवारों का यह इलाका सिर्फ दीवाली ही नहीं बल्की रोज़ मर्रा की जिंदगी के लिए भी बिजली को तरसता रहता है। ग्रामीणों का कहना हैं कि हमने अब बिजली की रोशनी में रहने की उम्मीद भी छोड़ दी है। हमारे बीच बड़ी समस्या यह भी है कि मिट्टी का तेल इतना महंगा है कि उसे खरीद पाना हम लोगों के लिए संभव नहीं है। वहीं दूसरी तरफ मिट्टी का तेल अब बाजार में मिलता भी नहीं है। ऐसे में हम लोग सूखी लकड़ी जलाकर रोशनी करते हैं। हमारे लिए दीये भी जलाना भी संभव नहीं। एसे में हम दीवाली मनाने के बारे में हम सोच भी नहीं सकते। आदिवासी ग्रामीणों ने कहा हमारे बच्चे बिजली न होने के कारण पढ़ भी नहीं पाते हैं.

बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के असनापानी गांव में संताल आदिवासी समुदाय के 25 परिवार रहते हैं। आजादी के 75 वर्ष और झारखंड राज्य गठन के 22 साल बाद भी यहाँ के ग्रामीणों को बिजली नसीब नहीं हुई। जबकि इस गांव से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन (टीटीपीएस) अवस्थित है जिसके विद्युत परियोजना में उत्पादित बिजली से कमोबेश पूरा झारखंड रोशन होता है। अपने चारों ओर बिजली की चकाचौंध के बीच यहाँ के निवासी आदिम युग की तरह लकड़ी जलाकर रात के अंधेरे से मुक्ति पाता हैं। अपने दिन भर कि जरुरते जैसे खाना बनाने या जरूरी कामों के लिए लकड़ी जलाकर रोशनी करते हैं और सोने के पहले अंधेरा कर लेते हैं। जिसकी वजह से सांप, बिच्छू जैसे जहरीले जीवों का अक्सर शिकार हो जाते हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यहां केरोसीन का तेल उपलब्ध भी नहीं है.

वहीं बंगल के गांव बिरहोर डेरा और काशीटांड़ में बिजली का कनेक्शन तो है, लेकिन तकनीकी खराबी और SYSTUM की लापरवाही के कारण इन गांवों के लोग पिछले तीन साल से अंधेरे में रहने को बेबस हैं। इसकी जानकारी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को भी है, लेकिन इसका समाधान करने की कोशिश नहीं हुई.

21वीं सदी में आधुनिक भारत का गांव बिजली से अछूता है। जबकि सरकारों का दावा है कि देश का कोई भी गांव या कोई भी घर बिना बिजली के नहीं है। झारखंड की यह कहानी हकीकत बयां कर रही है। जरूरत है कि तुरंत संज्ञान लेते हुए इस गांव में बिजली मुहैया कराई जाए, जिससे हमारी तरह इन 70 परिवारों की भी दीवाली भी जगमग हो सके।

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