झारखंड में शिक्षा व्यवस्था चिंताजनक, 86 हजार बच्चे आउट ऑफ स्कूल

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झारखंड में स्कूली शिक्षा से संबंधित डराने वाले आंकड़े सामने आए हैं. स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के सरकारी स्कूलों के 86,636 बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं. बता दें ये बच्चे आउट ऑफ स्कूल हैं यानी इनका नामांकन स्कूल में एक बार हो चुका है और अब ये बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं.

विभाग को सभी जिलों से मिली रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक स्कूलों में 66,568 बच्चों को और हाईस्कूलों के 20,068 बच्चों को स्कूली शिक्षा नहीं मिल पा रही है.
जिलावार ऐसे बच्चों की बात करें जो शिक्षा से वंचित हैं उनमें दुमका जिले में सबसे ज्यादा 15,249 बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं, जबकि जामताड़ा में 9,550 और पाकुड़ में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चो की संख्या 9,501 है. राज्य के 24वों जिलों में इसी तरह की स्थिति बनी हुई है.

अब राज्य के सरकारी स्कूलों में ऐसी स्थिति क्यों बनी है अगर इसकी बात करें तो बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है.रिपोर्ट के अनुसार ”झारखंड में भारत के अन्य राज्यों के तुलना में शिक्षकों की सबसे ज़्यादा कमी है. लगभग एक तिहाई प्राथमिक विद्यालयों में एक ही शिक्षक होता है, आमतौर पर एक पारा-शिक्षक पर औसतन 51 छात्र हैं. राज्य में शिक्षकों के लगभग 90 हज़ार पद खाली हैं.हाल ही में हुए सर्वे के मुताबिक़ पूरे राज्य के 20 प्रतिशत स्कूलों में मात्र एक शिक्षक हैं. राज्य के बहुत से स्कूलों में हफ़्ते में केवल तीन दिन ही सही से पढ़ाई हो पाती है. बाक़ी कभी दो तो कभी तीन घंटे मात्र पढ़ाई होती है. ऐसे में बच्चे स्कूल जाने को लेकर उत्सुकता नहीं दिखा पाते हैं.

बीबीसी की रिपोर्ट यह भी बताती है कि राज्य में साल 2016 में आख़िरी बार सरकारी शिक्षकों की भर्ती हुई थी. वह भी क्लास एक से आठ तक के लिए. इसके बाद से शिक्षकों की कोई भर्ती नहीं हुई है. वहीं हाई स्कूलों के लिए साल 2018 में आख़िरी बार शिक्षक भर्ती किए गए थे.

2019 में जब झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनी तो सरकार शिक्षक बहाली पर जोर देते हुए नजर आई. लेकिन सरकार की नियुक्ति नियामावली से असंतुष्ट होकर झारखंड हाईकोर्ट ने बार-बार नियुक्ति प्रक्रिया रोक दी. हाल ही में झारखंड में 26001 सहायक आचार्यों की भर्ती प्रक्रिया शुरु हुई थी. बीते अगस्त से इसके लिए ऑनलाइन आवेदन लिए भी जा रहे थे लेकिन एक बार फिर झारखंड हाईकोर्ट ने इस नियुक्ति की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है.

राज्य के बहुत से स्कूल खासकर गांवों में काफी दूरी पर है , जिसके कारण बच्चे स्कूल नहीं जाना चाहते. कुछ इलाकों में तो पानी भी बड़ी समस्या है. बच्चों को स्कूल कैंपस से बाहर जाकर पानी लाना पड़ता है. पानी नहीं होने के कारण बच्चे शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते. उन्हें खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है.

स्कूलों में बिजली और पानी की उचित सुविधा नहीं होने के कारण भी बच्चे स्कूल नहीं जाना चाहते हैं. इतना ही नहीं झारखंड के 64 प्रतिशत स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है और 37 प्रतिशत में तो लाइब्रेरी में किताबें ही नहीं है.
राज्य में सरकारी स्कूलों की स्थिति चिंताजनक है.

झारखंड में आउट ऑफ स्कूल कबच्चों के आंकड़े बेहद गंभीर हैं.झारखंड स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग के सचिव के रवि कुमार ने इस पर नाराजगी जताई है.

उन्होंने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि विशेष अभियान चलाकर सभी आउट ऑफ स्कूल बच्चों को स्कूलों में नामांकन कराया जाए. सरकार द्वारा लगातार अभियान चलाने और शिशु पंजी अपडेट करने के बाद भी बच्चे आउट ऑफ स्कूल कैसे हो जा रहे हैं, शिक्षा विभाग ने घर-घर जाकर इसे सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है.

राज्य के सभी सरकारी स्कूलों को आगामी 30 सितंबर तक ऐसे बच्चों को स्कूल से जोड़ने को कहा गया है. इसमें स्कूली शिक्षक, विद्यालय प्रबंधन समिति, बाल संसद की टीम सहयोग करेगी. स्कूल अवधि के पूर्व और बाद में ऐसे बच्चों को चिह्नित कर उनके घर जाएंगे और स्कूल से जोड़ने की पहल करेंगे.

अब देखना होगा कि शिक्षा सचिव की यह पहल कितनी कारगार साबित होती है. अब आने वाला समय ही बताएगा कि राज्य में स्कूली शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो पाता है या नहीं. कितने बच्चे स्कूलों की तरफ अपने कदम बढ़ाते हैं. अगर बच्चे फिर से स्कूल आने के लिए तैयार हो जाते हैं तो बच्चों के साथ साथ राज्य का भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा, क्योंकि पढ़ेगा झारखंड तभी तो बढ़ेगा झारखंड.

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