अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय और फाउंडेशन की ओर से रांची में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आगाज

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‘भारत में स्थानीय लोकतांत्रिक शासन’ के तीस सालों के सफर और भविष्य को केंद्र में रखते हुए अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की ओर से रांची के चाणक्य बीएनआर, होटल में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज हुआ. इसके उद्घाटन सत्र में भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के सचिव सुनील कुमार ने अध्यक्षता की.

इनके साथ ही थॉमस आइज़ेक, केरल सरकार के पूर्व वित्त मंत्री, विजयानंद केरल सरकार के पूर्व मुख्य सचिव और उमा महादेवन, अतिरिक्त मुख्य सचिव कर्नाटक ने शिरकत की और स्थानीय लोकतान्त्रिक शासन के 3 दशकों के सफर पर अपने विचार व्यक्त किए.

अज़ीम प्रेमजी विश्विविद्यालय के प्रोफेसर अशोक सरकार ने इस आयोजन की पृष्ठभूमि(Background) पर बोलते हुए कहा कि पंचायती राज, पेसा और वनाधिकार कानून संयुक्त रूप से स्थानीय लोकतंत्र को मजबूत करते हैं इसलिए इन्हें एक साथ देखा जाना चाहिए. झारखंड में पंचायती राज कतिपय नया है इसलिए इस आयोजन को यहां किया जा रहा है.

अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के ज़ुल्फिकार हैदर ने इस आयोजन की पृष्ठभूमि और इसे झारखंड में आयोजित किए जाने को लेकर कहा कि झारखंड सरकार, स्थानीय लोकतंत्र को लेकर गंभीर प्रयास कर रही है. यहां कि 26 प्रतिशत आबादी आदिवासी हैं जो ऐतिहासिक रूप से एक समृद्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानते हैं और इसके अलावा, रांची में जल्द ही अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय शुरू होने जा रहा है. इसलिए यह आयोजन कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है. इस आयोजन में देश के 11 राज्यों के करीब 270 प्रतिनिधि हैं, जिनमें चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि हैं तो विश्वविद्यालयों से जुड़े लोग भी हैं, सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और एनजीओ से जुड़े लोग भी हैं. सरकार के अधिकारी भी हैं और इन मुद्दों को कानूनी ढंग से समझने वाली जमात के लोग भी आए हैं.

ज़ुल्फिकार ने कहा कि पंचायती राज व्यवस्था अब स्थापित हो चुकी है और पूरी व्यवस्था का एक अभिन्न अंग बन गया है लेकिन पेसा कानून और वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन में अभी भी बहुत चुनौतियां हैं. तीन दिवसीय इस आयोजन में हम इन्हीं चुनौतियों और उनके समाधान की दिशा में सामूहिक चिंतन करेंगे.

थॉमस आइज़ेक ने कहा कि पंचायती राज व्यवस्था के सामने कई संकट हैं. इनमें सबसे बड़ा संकट तो शुरू से रहा है कि राज्य खुद इस व्यवस्था को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं है. इसके अलावा राज्य का वित्त आयोग भी कई मामलों में सक्रिय नहीं है.

उमा महादेवन ने स्थानीय लोकतंत्र और पंचायती राज के बारे मे तीन शब्दों में कहा कि तीन दशकों का यह सफर मुश्किल रहा, रोचक रहा और सबसे बड़ी बात यह सफर जारी है. भारत जैसे काम्प्लेक्स देश में ऐसे कानून और ऐसी व्यवस्था का सफर शायद ऐसा ही होना था. इस आयोजन में शामिल हुए हम लोगों का दायित्व है कि जमीनी स्तर पर लोगों को सशक्त करने वाली इस व्यवस्था को मजबूत करें. कोविड महामारी के दौरान सभी राज्यों में पंचायतों और प्रतिनिधियों ने जिस तरह से स्थानीय स्तर पर काम किया उसकी सराहना सब तरफ हो रही है. कोविड के दौरान स्थानीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के महत्व को स्थापित किया.

वहीं, विजयानंद ने भी पंचायतों में निहित संभावनाओं को केंद्र में रखते हुए इसके सशक्तिकरण के लिए सभी को एक साथ आने का आव्हान किया.

भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के मुख्य सचिव सुनील कुमार ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पंचायती राज व्यवस्था अब इस देश में पूरी तरह स्थापित हो चुकी है. अब इसे बदला नहीं जा सकता. इन तीन दशकों में करीब 6 चुनाव हो चुके हैं, हर नए चुनाव यानी पांच सालों में नए-नए पंचायत प्रतिनिधियों को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब यह व्यवस्था समाज के हर तबके को प्रतिनिधित्व दे रही है. आज देश में 31 लाख पंचायत प्रतिनिधि मौजूद हैं जिनमें 46 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि है. अब इस विकेंद्रीकृत व्यवस्था को संविधान का मूल ढांचा माना जाना चाहिए और इसके बिना देश में गवर्नेंस की कल्पना करना मुश्किल है.

इन 30 सालों में पंचायतों ने असाधारण काम किया है, जिन्हें ठीक तरह से राज्य सरकारों, एनजीओ और अज़ीम प्रेमजी जैसे विश्वविद्यालयों को दस्तावेज़ करना चाहिए ताकि आने वाले प्रतिनिधियों को इससे प्रेरणा मिले.

उद्घाटन सत्र का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ

यह संगोष्ठी 23 जून तक जारी रहेगी. विभिन्न सत्रों के माध्यम से इन तीनों क़ानूनों के विभिन्न पहलुओं पर चिंतन किया जाएगा और भावी रणनीति भी बनाई जाएगी.

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