विश्व हाथी दिवस विशेष :पिछले 5 सालों में हाथी के चपेट में आने से 510 लोगों की गई जान

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आज विश्व हाथी दिवस के मौके पर आपको ढेर सारी शुभकामनाएं. लेकिन झारखंड में हाथियों और इंसानों का रिश्ता संघर्षपूर्ण रहा है. लगभग हर साल जब भी हाथियों और इंसानों का सामना हुआ है. इंसानों को नुकसान हुआ है. चाहे वो घर का हो, घर में रखे अनाज का हो, फसल का हो, पशुओं का हो या फिर अपने जान का हो.

रिपोर्ट्स की माने तो हर साल करीब 100 लोगों की जान हाथियों के चपेट में आने के कारण हो रही है. 2017 से लेकर पिछले 2022 तक 510 लोगों की जान हाथियों के वजह से चली गई है. लेकिन इस टकराव में 7 हाथियों ने भी अपनी जान गवाई हैं.

लेकिन ये आंकड़े हमेशा ने ऐसे नहीं थे. साल 2009-2010 में हाथियों और इंसानों में जितने भी टकराव हुए उसमें 54 लोगों ने अपनी जान गवाई थी. वहीं साल 2015-16 में 66 लोगों ने अपनी जान गंवाई. लेकिन पिछले साल यानी की 2022 के 1 अप्रैल से  मार्च 2023 तक कुल 96 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इन सब से हमें ये भी समझना होगा की ये आंकड़े आखिर बढ़ते क्यों जा रहे हैं.

राज्य का गठन साल 2000 में हुआ. मतलब बीते 23 सालों में ऐसी 1.6 लाख घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें जान माल का नुकसान हुआ है. ऐसे मामलों में अब तक कुल 45. 75 करोड़ रुपए का मुआवजा भी दिया गया है. इनमें  फसल क्षति के 5637 मामले हैं, पशु क्षति के 107 मामले हैं. 1940 मकान क्षतिग्रस्त हुए और अनाज क्षति के 1260 मामले सामने आए हैं.

आपको याद होगा इसी साल फरवरी में एक हाथी अपने झुंड से बिछड़ गया था. जिसके बाद 12 दिनों में उस हाथी के चपेट में आने से 16 लोगों की जान चली गई थी. जिसके बाद कई इलाकों में धारा 144 लगानी पड़ी थी.

अब हम ये समझते हैं कि आखिर इंसानों और हाथियों का टकराव इनता कैसे बढ़ रहा है. झारखंड में फिलहाल 23 हजार 721 वर्ग किलोमीटर फॉरेस्ट एरिया है. अब इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट सर्वे रिपोर्ट 2021 के अनुसार झारखंड में 110 किलोमीटर जंगल बढ़े हैं. लेकिन जो चिन्हित वन भूमि है उसमें जंगल घटे हैं. राजय में 22 हजार 390 वर्ग किलोमीटर चिन्हित वन क्षेत्र है. लेकिन जो कुल जंगल क्षेत्र 23 हजार 721 वर्ग किलोमीटर है उसमें से 48 फिसदी वन चिन्हित क्षेत्र से बाहर है. मतलब कुल मिलाकर कर ये बात है कि झारखंड में जंगल तो बढ़ा है लेकिन वैसे क्षेत्र में जो चिन्हित वन क्षेत्र नहीं हैं. और जो चिन्हित वन क्षेत्र हैं वहां इंसानों का कब्जा बढ़ता जा रहा है. इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि साल 2019 के बाद जो ज्यादा घने वन क्षेत्र हैं उसमें 2 फिसदी की कमी आई है.

अब ये समझते हैं कि हाथी इंसानों को नुक्सान क्यों पहुंचाते हैं.

हमें ये समझना होगा कि हम इंसानों ने उनके हैबीटाट को नुकसान पहुंचाया है. हमनें जंगल को नष्ट कर दिया है. उनके कॉरिडोर को खराब कर दिया है. ऐसे में वो भोजन के तालाश में भटक जाते हैं और इंसानों से उनका सामना हो जाता है. हाथी अमुमन किसी को मारता नही है. इंसान अपनी गलती के कारण उनके चपेट में आ जाते हैं.

ऐसी घटानाएं ना हो इसके लिए इंसानों को इस पर बैठकर सोचने की जरुरत है. ताकी आने वाले समय में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.

 

 

 

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