झारखंड सरकार मनसून सत्र में लाएगी हिंसा/हत्या की रोकथाम विधेयक-2023, जानिए पिछली बार से कितना होगा अलग

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21 दिसंबर, 2021 को झारखंड सरकार ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के  लिए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक-2021 पास कराया था. सदन से विधेयक पास होने के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा गया था. लेकिन तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने 18 मार्च 2022 को कुछ आपत्तियों के साथ इस विधेयक को सरकार को वापस लौटा दिया था. झारखंड सरकार लगभग 18 महीने बाद अब एक बार फिर सदन में मॉब लिंचिंग विधेयक लाने जा रही है. विधेयक को सबसे पहले कैबिनेट से पास कराया जाएगा. इसके बाद विधेयक को आने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में लाने की तैयारी है. ऐसे में हम आपको बताएंगे कि आखिर साल 2021 में भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक-2021 को राज्यपाल ने क्यों वापस किया था. उस समय सजा का क्या प्रावधान था. उस दौरान भाजपा विधायकों ने इस पर क्या बयान दिए थे. झारखंड में पिछले कुछ सालों में मॉब लिचींग के कितने मामले सामने आए हैं. और अब नए विधेयक में क्या-क्या बदलाव किया गया है.

सबसे पहले बात करते हैं कि झारखंड के तत्कालीन राज्यपाल रमेस बैस भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक-2021 को वापस क्यों किया था. दरअसल, तत्कालीन राज्यपाल को विधेयक में कुछ आपत्तियां थी. चलिए अब बताते हैं कि आखिर राज्यपाल ने विधेयक के किन बिंदुओं पर आपत्ति जताई थी.

पहले बिंदु पर बात करते हैं. विधेयक के अंग्रेजी संस्करण में धारा दो के उपखंड (1) के उपखंड-12 में गवाह संरक्षण योजना का जिक्र किया गया था. लेकिन हिंदी संस्करण में इसका जिक्र ही नहीं था.

अब दूसरे बिंदू पर बात करते हैं. राज्यपाल रमेश बैस ने इसी धारा के उपखंड (1) के उपखंड 6 में दी गई भीड़ की परिभाषा पर भी आपत्ति की थी. कहा गया था कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को अशांत भीड़ नहीं कहा जा सकता. इन्हीं वजहों से तत्कालीन राज्यपाल रमेस बैस ने विधेयक को राज्य के पास वापस भेज दिया था.

अब बात करते हैं साल 2021 में लाए गए विधेयक में सजा और जुर्माना के बारे में

पहला- मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक-2021 में दोषी पाए जाने पर तीन साल से सश्रम आजीवन कारावास और 25 लाख रुपए जुर्माने के साथ संपत्ति की कुर्की तक का प्रावधान था.

दूसरा- गंभीर चोट आने पर भी 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया था. वहीं, भीड़ को उकसाने वालों को दोषी मानते हुए उन्हें तीन साल की सजा देने की व्यवस्था थी.

तीसरा- विधेयक में पीड़ित परिवार को मुआवजा देने और पीड़ित के मुफ्त इलाज की व्यवस्था का प्रावधान भी किया गया था.

साल 2021 में जब यह विधेयक विधानसभा में लाया गया था. तब भाजपा विधायकों ने इसे काला कानून बताते हुए जमकर हंगामा किया था और विधायक वेल तक पहुंच गए थे. उन्होंने कहा था कि इस कानून के जरिए सरकार तुष्टिकरण की राजनीति करना चाहती है. भाजपा के तीन विधायक अमर बाउरी, अमित मंडल और रामचंद्र चंद्रवंशी ने संशोधन प्रस्ताव भी लाया था लेकिन सभी के प्रस्ताव खारिज कर दिए गए थे. भाजपा विधायक अमित मंडल ने विरोध जताते हुए कहा था कि ये विधेयक हड़बड़ी में लाया गया है, इसमें कई त्रुटियां हैं. उन्होंने कहा कि 2 व्यक्तियों को यदि मॉब का रूप दिया जाएगा तो घरेलू विवाद को भी मॉब लिंचिंग कहा जाएगा और इस कानून का दुरुपयोग होगा. इससे पुलिस की लालफीताशाही बढ़ जाएगी. उन्होंने संख्या को 2 से बढ़कर 10 करने का संशोधन सदन में रखा. विधायक अमर कुमार बाउरी ने कहा कि ये बिल झारखंड विरोधी, आदिवासी विरोधी है. एक विशेष वर्ग को खुश करने के लिए बिल लाया गया है. भाजपा के विधायक इस विधेयक को प्रवर समिति में सौंपने की मांग कर रहे थे, लेकिन ये मांग खारिज कर दी गई थी. जिसके बाद भाजपा के सदस्यों ने सदन से वॉकआउट कर दिया था. इसके बाद विपक्ष की अनुपस्थिति में सदन ने विधेयक को पारित कर दिया था.

अब आखिरी बिंदु पर बात करते हैं. और जानते हैं कि इस बार राज्य सरकार ने विधेयक में क्या-क्या बदलाव किए हैं. बता दें कि राज्य सरकार ने महाधिवक्ता की राय के बाद तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस द्वारा उठाई गई आपत्तियों को दूर कर लिया है. राज्य सरकार का मानना है कि मॉब लिंचिंग पर रोक जरूरी है, इसलिए यह विधेयक फिर से लाया जा रहा है. ताकि मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर रोक लग सके. हालांकि, ये कहना गलत नहीं होगा कि  भाजपा इस बार भी विधेयक का समर्थन सदन में नहीं करेगी. बाबूलाल मरांडी के ट्वीट से तो ऐसा ही प्रतीत होता है.

अब बात करते हैं राज्य में हुए मॉब लिंचीग की घटनाओं के बारे में. संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा था कि झारखंड में 2016 से लेकर अब तक यानी साल 2021 में जब विधेयक सदन में पेश किया गया था. तब तक मॉब लिंचिंग की 56 घटनाएं हुई थी. वहीं, राज्यपाल के 18 मार्च 2022 को विधेयक लौटाने के बाद कुल 7 घटनाएं घटी हैं. जिसमें पहली घटना

11 जनवरी, 2022 को हुई. जहां गिरिडीह के सरलाडीह में जय मुर्मू को लोगों ने पीटकर मार डाला.

दूसरी घटना 6 मई 2022 को हुई. जहां गुमला के भरना थाना क्षेत्र में लकड़ी माफिया ने पेड़ काटने का विरोध करने पर शमीम अंसारी नामक युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी.

तीसरा घटना 11 जून 2022 को हुई. जहां लोहरदगा के गणेशपुर गांव में भीड़ ने डायन के शक में महिला को लाठी-डंडों से पीटा, जबरन जहर पिलाया. मौत के बाद बोरी में बंद कर झरने में फेंक दिया.

चौथी घटना 3 अक्टूबर 2022 को हुई. जहां गुमला के तिगरा गांव में उग्र भीड़ ने एजाज खान को पीट-पीटकर मार डाला.

पांचवीं घटना 7 अक्टूबर 2022 को हुई. इसमें बोकारो के धवैया गांव में भीड़ ने इमरान अंसारी की पीट-पीटकर हत्या कर दी.

छठी घटना 17 अक्टूबर 2022 को हुई. जहां दुमका के तालझारी थाना क्षेत्र में चोरी के आरोपी सुरेश यादव को भीड़ ने पेड़ से बांधकर पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई.

वहीं, सांतवीं घटना 12 मई 2023 को हुई. इसमें रांची के होरेदाग में भीड़ ने चोरी के आरोपी मिथुन सिंह खरवार को लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला.

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