Ranchi : झारखंड में आपका घर का सपना कहीं सपना ही न रह जाये. यदि आप मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं तो एक अदद पक्के मकान का ख्वाब तो भूल ही जाइये. यह कहने के लिए माफी चाहूंगी लेकिन मौजूदा हालात में यही हकीकत है. दरअसल, एक मकान बनाने में लाखों रुपये का खर्च आता है.
ऐसे में जब निर्माण सामग्रियों की कीमतें भी आसमान छुएंगी. घर बनाने के लिए जरूरी चीजों की किल्लत हो जायेगी तो क्या करिएगा. अब कोई भी घर बिना बालू के तो नहीं बन सकता. लेकिन, झारखंड में बालू की कीमतें जैसे बढ़ी है, एक आम आदमी वह कीमत कहां से अदा करेगा.
यदि आपके मकान की अनुमानित लागत जितनी है, उसका आधा पैसा यदि बालू में ही खप जाये तो क्या किया जा सकता है. सवाल हमने छोड़ा है. जवाब आप कमेंट बॉक्स में दीजिएगा.
खैर! हम अपने मुद्दे पर वापस आते हैं. झारखंड में बालू की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है. एक मध्यम वर्गीय परिवार को घर बनाने में काफी परेशानियां आ रही है. इस मुद्दे पर अब राज्य में सियासत भी तेज हो गई है. आज तो सदन के अंदर भी बालू के मुद्दे पर खूब हंगामा हुआ. इस वीडियो में हम बालू के कीमतों में वृद्धि और उसके कारणों पर चर्चा करेंगे. जानेंगे कि बालू की किल्लत से आम जन-जीवन कैसे प्रभावित हुआ है.
बालू माफिया बसूल रहे हैं मुंहमांगी कीमत
दैनिक भारस्कर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में बालू की किल्लत ऐसी बढ़ गई है कि अपार्टमेंट, निजी घर से लेकर सरकार की पीएम आवास और अबुआ आवास जैसी योजनाएं भी ठप पड़ गई है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राज्य में बालू की किल्लत इतनी बढ़ गई है कि अब बालू बोरी में भरकर बेचा जा रहा है. कई जिलों में तो 20-25 रुपए बोरी की दर से बालू ब्लेक में बेचा जा रहा है. इतना ही नहीं! बालू माफिया लोगों से मुंहमांगी कीमत वसूल रहा है.
50 हजार तक बढ़ गई कीमत !
आपको बता दें कि पिछले 10 दिनों में ही बालू की कीमत में प्रति हाइवा 12 हजार रूपए से अधिक की बढ़ोतरी हो गई है. माने 10 दिन पहले एक हाइवा बालू 38 हजार रूपए मिल रहा था. लेकिन अब 38 हजार से बढ़कर 50 हजार रूपए तक पहुंच गया है.
2 हजार में एक ट्रैक्टर बालू की कीमत बढ़ कर 4 हजार हो गई है जबकि सात हजार एक टर्बो बालू की कीमत अब 10 से 11 हजार तक बढ़ गई है. यही नहीं कीमत बढ़ने के बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि बालू आपको मिल ही जाए.
अब आप ही सोचिए 50 हजार सिर्फ बालू खरीदने में एक मध्यम वर्ग का परिवार पैसे लगा सकता है क्या.. जो परिवार अपना रोजी रोटी एक बंधुआ मजदूरी करके घर चला रहा हो. क्योंकि बालू की कीमत बढ़ने से तो सरकार की अबुआ आवास भी ठप पड़ी हुई है.
पूरे राज्य में 444 बड़े बालू घाट
बहराहल, पूरे राज्य में 444 बड़े बालू घाट है.. एक साल पहले इन घाटों का टेंडर किया गया. लेकिन अब तक सिर्फ 51 घाटों से ही बालू खनन की पर्यावरण स्वीकृति मिली है. इनमें से 24 घाटों से बालू का उठाव हो रहा है. वहीं रांची में कुल 19 बालू घाट है , जिनमें सिल्ली के 3 घाटों को ही पर्यावरण स्वीकृति मिली है.
लेकिन वहां से भी बालू का उठाव नहीं हुआ है. क्योंकि अब तक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कंसेंट टू ऑपरेट की अनुमति नहीं मिली है. इससे रांची के किसी भी घाट से बालू का उठाव नहीं हो रहा है.
नतीजा यह है कि अपार्टमेंट से लेकर अबुआ आवास तक का काम ठप पड़ गया है. घर बना रहे लोगों ने भी काम रोक दिया है. बालू एसोसिएनशन के अनुसार बाबू नहीं मिलने से निर्माण क्षेत्र से जुड़े पांच लाख से अधिक कामगार बेरोजगार हो गए है.
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि बालू की कीमतें बढ़ने से इन दिनों बिहार से बडे पैमाने पर बालू मंगाया जा रहा है. रांची खूंटी, रामगढ़, हजारीबाग कोडरमा, पलामू में बिहार से रोजना 100 ट्रक से अधिक बालू आ रहा है.
व्यापारियों का कहना है कि झारखंड के घाट से बालू का उठाव करना मुश्किल हैं पैसे भी ज्यादा बांटने पड़ते हैं. बिहार से आने वाले बालू में मिट्टी का अंश मिल रहा है. जिसकी गुणवत्ता भी ठीक नहीं है.
बाबूलाल ने सदन में उठाया आवाज
वहीं बालू की बढ़ती कीमत और हो रही कालाबाजारी को लेकर सदन के अंदर बाबूलाल मरांडी ने आवाज उठाया और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अपील करते हुए कहा कि यदि संकट का समाधान नहीं किया गया तो राज्य में विकास के काम प्रभावित होंगे.
उन्होंने कहा कि बालू घाटों की सही ढंग से नीलामी नहीं होने के कारण इसकी कालाबाजारी हो रही है. राज्य में निर्माण कार्य ठप हो गये हैं. खैर अब देखना होगा कि बालू की बढ़ रही किमतो पर हेमंत सरकार रोक लगाने के लिए क्या कुछ करती है